उत्तराखंड में 2011 के बाद से आयी आपदाओं से 318 गांवों को खतरे की जद में बताया जा रहा है। राज्य आपदा विभाग ने सरकार को सचेत किया है कि इन गांवों के परिवारो को हटा कर कहीं और बसाने की तत्काल जरूरत है। ऐसा नहीं किया गया तो जान-माल का ज्यादा नुकसान हो सकता है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी को काम करने के लिए कुल छह महीने मिले हैं। उनके पिछले मुख्यमंत्रियों की उदासीनता के चलते उनके सामने कई चुनोतियां आ रही हैं। ऐसी ही एक चुनौती आपदा प्रभावित परिवारों के पुनर्वास से जुड़ी हुई है।
दरक रहे हैं पहाड़
उत्तराखंड में 2011 से आपदाओं का दौर शुरू हुआ था। केदारनाथ आपदा 2013 में आई। इसके बाद से लगातार हर साल उत्तराखंड के पहाड़ दरक रहे हैं। प्राकृतिक आपदा और जल विद्युत परियोजनाओं के कारण 401 गांव आपदा प्रभावित चिन्हित हुए, जिसमें से केवल 83 गांवों के 1447 परिवारों को वहां से हटा कर दूसरी जगह बसाया गया। अभी भी 318 गांवों को कहीं और बसाना जरूरी है। आपदा प्रभावित गांवों में बसे हुए नौ हजार से ज्यादा परिवारों की जान जोखिम में है। इनमें से ज्यादातर गांव उत्तराखंड के सीमांत पिथौरागढ़, चमोली, उत्तरकाशी, बागेश्वर जिलो में हैं।
ये वो हिमालयी गांव हैं जहां ऑल वेदर रोड और जल विद्युत परियोजनाओं की वजह से ब्लास्टिंग का काम चल रहा है। रैणी गांव में इसी साल ऋषिगंगा में ग्लेशियर टूटने की घटना ने 55 परिवारों को बेघर कर दिया। सुमायी गांव और नीति घाटी के 467 परिवारों के पास भी कोई घर नहीं बचा। मुख्यमंत्री धामी के सामने चुनौती इन गांवों के परिवारो के पुनर्वास की है। उन्होंने आपदा प्रभावित गांवों से आबादी को हटा कर नए स्थान पर बसाने के लिए मुख्य सचिव को तत्काल बैठक करने को कहा है। मुख्यमंत्री धामी चाहते हैं कि शरद ऋतु से पहले इन परिवारों के लिए कोई व्यवस्था तय हो जाये। इस दिशा में शासन स्तर और जिला प्रशासन के साथ तालमेल करके गंभीरता से काम करने की जरूरत है।
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