भारत-नेपाल मैत्री परियोजना के रूप में महाकाली नदीं पर बन रहे दुनिया के सबसे ऊंचे बांध पंचेश्वर बांध पर चीन ने नजरें गड़ा दी हैं। इसके लिए नेपाल के साथ भारत में भी चीन समर्थक लॉबी को सक्रिय कर दिया गया है। बीते सप्ताह अल्मोड़ा से गिरफ्तार माओवादी भास्कर पाण्डेय के पास से बरामद पेन ड्राइव से इस पूरी साजिश का पदार्फाश हुआ
दिनेश मानसेरा
क्या चीन भारत-नेपाल के साझे में बन रही पंचेश्वर बांध परियोजना में अड़ंगा लगाने की साजिश रच रहा है? भारत-नेपाल सीमा पर बहने वाली महाकाली नदी पर बन रहे इस बांध और साझा बिजली परियोजना से दोनों देशों को न सिर्फ आर्थिक लाभ होंगे बल्कि बाढ़ से बचाव समेत अन्य कई लाभ भी होंगे। अभी तक तो विरोध की बातें नेपाल में बैठे चीन समर्थक माओवादियों तक दिख रही थीं। परंतु अब यह सामने आ रहा है कि चीन इस परियोजना को बाधित करने के लिए भारत के भीतर उत्तराखंड के माओवादियों को साथ लेने का षड्यंत्र रच रहा है।
इस षड्यंत्र का खुलासा उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में गत सप्ताह पकड़े गए माओवादी भास्कर पाण्डेय ने किया। भास्कर पाण्डेय से पूछताछ में पुलिस को अहम जानकारियां मिली हैं। इसके अनुसार माओवादियों के उद्देश्यों में पंचेश्वर बांध का विरोध करना भी शामिल है। भास्कर के पास से एक पेन ड्राइव बरामद हुई है। भास्कर ने बताया कि यह पेन ड्राइव उसे खिम सिंह बोरा ने दी थी। अल्मोड़ा के पुलिस अधीक्षक पंकज भट्ट के अनुसार इस पेन ड्राइव में निमार्णाधीन पंचेश्वर जलविद्युत परियोजना का विरोध उकसाने की पूरी साजिश मौजूद है। पकड़ा गया माओवादी पांडेय भी पंचेश्वर बांध के विरोध की बातें कर रहा है।
भारत-नेपाल की चीन लॉबी सक्रिय
पंचेश्वर बांध परियोजना भारत नेपाल की मैत्री परियोजना है। 1996 में प्रारंभ हुई इस परियोजना को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2014 में नेपाल दौरे के बाद से पंख लगने शुरू हुए। लेकिन नेपाल की चीन लॉबी ऐसा होने देना नहीं चाहती जिससे भारत-नेपाल, दोनों देशों को फायदा हो। जैसे ही यह योजना आगे बढ़ने लगी, चीन समर्थक लॉबी दोनों देशों में विरोध के लिए सक्रिय हो गई। जब भी नेपाल में चीन समर्थक सरकार आती है, वह चीन के इशारे पर इसपर काम धीमा कर देती है। जब वहां भारत से मैत्रीभाव रखने वाली सरकार आती है तो काम तेज हो जाता है औरतब नेपाल और भारत में सक्रिय चीन समर्थक लॉबी, जिसमें वामपंथी पत्रकार, एनजीओ, सामाजिक संगठन शामिल हैं, विरोध करते हुए लाल झंडे उठा लेती है।
मोदी के नेपाल दौरे के बाद आई काम में तेजी
पंचेश्वर बांध परियोजना भारत-नेपाल की मैत्री परियोजना है। पंचेश्वर बांध परियोजना 1996 में शुरू हुई थी। वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब नेपाल दौरे पर गए थे, उसके बाद से इस परियोजना को पंख लगने शुरू हुए। प्रधानमंत्री मोदी ने नेपाल की संसद को संबोधित करते हुए कहा था कि नेपाल के हिमालय की तरफ से भारत की ओर आने वाली नदियों पर यदि जलविद्युत परियोजनाएं बनेंगी तो इससे दोनों देशों के आर्थिक संबंध मजबूत होंगे। भारत इसके लिए नेपाल को आर्थिक मदद देकर बिजली खरीद सकता है, साथ ही बिहार और उत्तरप्रदेश में हर साल आने वाली की बाढ़ को भी नियंत्रित किया जा सकता है।
20 हजार का इनामी है भास्कर
पेन ड्राइव से यह भी पता चला है कि भास्कर माओवादी सेंट्रल कमेटी आॅफ इंडिया से संबद्ध है। पेन ड्राइव से उत्तराखंड में भास्कर द्वारा सोमेश्वर द्वारा हाट में गतिविधियां संचालित किए जाने का विवरण भी मिला है। माओवादी खिम सिंह बोरा 2019 में यूपी एटीएस के हाथ लगा था। उसी दौरान भास्कर फरार हो गया था और बिहार, झारखंड में कभी भुवन तो कभी अन्य छद्म नामों से छुपता रहा। उत्तराखंड पुलिस ने भास्कर पर 20,000 का इनाम रखा था। भास्कर पांडेय पर सोमेश्वर, द्वारा हाट आदि क्षेत्रों में अपनी गतिविधियों को चलाने के आरोप हैं।
देश-विदेश के स्टडी रिसर्च सेंटर में काम करने वाले चीन समर्थक तथाकथित पर्यावरणविदों के बयान मीडिया में एक साजिश के तहत सुर्खियां बटोरने लगे। इस बांध के विरोध में द वायर, एनडीटीवी, टाइम्स आॅफ इंडिया आदि के वामपंथी पत्रकारों की रिपोर्ट्स देखें जो 2019 से अब तक क्रमवार छप रही हैं। इन सभी रिपोर्ट्स में इंस्टीट्यूट फॉर एनवॉयरमेंटल साइंस के मार्क एवर्ड और गौरव कटारिया की रिपोर्ट का ही हवाला दिया जाता रहा है। अब माओवादी भास्कर पांडेय ने जो सच उगला है, वह यह साबित करता है कि चीन नहीं चाहता कि भारत-नेपाल मिलकर दुनिया का सबसे ऊंचा बांध बनाएं।
डूब क्षेत्र के लोगों को उकसाने की कोशिश
पिछले दिनों चीनी लॉबी के इशारे पर बहुत से मीडिया घरानों ने पंचेश्वर जाकर अपने वामपंथी पत्रकारों से खबरें बनवाई थीं। उत्तराखंड में ऐसी खबरें भी आईं कि माओवादी संगठनों ने डूब क्षेत्र में जाकर प्रभावित लोगों को भड़काया और उन्हें अपने साथ आंदोलन में शामिल करने की कोशिश की। इतनी बड़ी परियोजना में कुल मात्र 87 गांव डूब क्षेत्र में आएंगे जिनमें अधिकतर में पलायन हो चुका है। वहां दस्तावेजों में आबादी कुल तीस हजार के आसपास है जिनमें से अधिकतर रोजगार की तलाश में महानगरों की तरफ रुख कर चुके हैं। माओवादी भास्कर की गिरफ्तारी के बाद यह बात और भी पुख्ता हो गई कि इस विरोध आंदोलन में नेपाल के चीन समर्थक संगठनों ने उत्तराखंड के आंदोलनकारियों से हाथ मिला लिया है।
नेपाल में जब तक ओली सरकार थी तब रोज नेपाल से कोई न कोई खबर भारत विरोधी आती रही, लीपुपास सीमा विवाद को हवा देकर पंचेश्वर बांध संधि की भी समीक्षा के विषय आने लगे, इससे साफ जाहिर होता था कि नेपाल की ओली सरकार चीन की शह पर काम कर रही थी।
क्या है पंचेश्वर बांध परियोजना
दुनिया के सबसे ऊंचे 315 मीटर के पंचेश्वर बांध का स्वरूप टिहरी बांध जैसा है। इस परियोजना के लिए नेपाल को भारत 1,500 करोड़ रुपये की मदद देगा। यही वजह थी कि नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प दहल प्रचंड और अन्य नेता टिहरी बांध प्रोजेक्ट को देखने-समझने आ चुके हैं। पंचेश्वर परियोजना भारत-नेपाल मैत्री निवेश का पहला पड़ाव थी और इसके लिए पंचेश्वर विकास प्राधिकरण की भी स्थापना कर दी गई है।
इस परियोजना के तहत भारत-नेपाल सीमा पर बहने वाली महाकाली नदी की जलधारा का कणार्ली और मोहना नदी के प्रवाह को रोक कर पंचेश्वर बांध में 6720 मेगावाट बिजली बनेगी। इसके आगे भी रूपालीगढ़ जल विद्युत परियोजना है। यह बांध पर संकट आने पर जल प्रलय को नियंत्रित करेगी इसमें 240 मेगावाट बिजली बना करेगी। पंचेश्वर परियोजना के पूरा होने से नेपाल के तराई और भारत के पीलीभीत, लखीमपुर खीरी क्षेत्र में हरसाल होने वाली बाढ़ की तबाही से बचा जा सकेगा।
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