झारखंड में जनजाति परामर्शदात्री समिति ने हाल ही में निर्णय लिया है कि जनजातीय समाज के लोगों का जन्म प्रमाणपत्र एक ही बार बनाया जाएगा और वह आजीवन वैध रहेगा। लोग मान रहे हैं कि यह निर्णय केवल उन लोगों को बचाने के लिए लिया गया है, जो ईसाई बनने के बाद भी आरक्षण आदि का लाभ ले रहे हैं।
रितेश कश्यप
इन दिनों झारखंड में जनजाति परामर्शदात्री समिति (टीएसी) की चर्चा बहुत हो रही है। आजकल यह समिति जिस तरह के निर्णय ले रही है, उससे चर्च प्रेरित षड्यंत्र की बू आ रही है। गत 27 सितंबर को समिति की हुई बैठक में निर्णय लिया गया है कि जनजातीय समाज के लोगों का जन्म प्रमाणपत्र एक ही बार बनाया जाएगा और वह आजीवन वैध रहेगा। यह निर्णय इस बात का सबूत है कि इसके पीेछे चर्च है। बता दें कि चर्च काफी दिनों से इस तरह की मांग करता रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य है जो जनजाति ईसाई बन गए हैं, उन्हें जनजाति के नाम पर मिलने वाली सभी सुविधाएं उपलब्ध कराना। बता दें कि जनजातियों को आरक्षण का लाभ मिलता है। इसी तरह हर तरह के चुनाव में उनके लिए सीटें आरक्षित रहती हैं। कई संगठन मांग कर रहे हैं कि जो लोग ईसाई बन गए हैं, उन्हें इन सुविधाओं से वंचित किया जाए। इस मांग को देखते हुए ही टीएसी ने यह निर्णय लिया है कि जनजातियों का जन्म प्रमाणपत्र एक ही बार बनेगा। टीएसी की बैठक की अध्यक्षता मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने की थी। यह बात सर्वविदित है कि हेमंत सोरेन वही काम करते हैं, जो उन्हें चर्च कहता है। इसलिए अनेक संगठनों ने टीएसी के निर्णय का विरोध किया है।
टीएसी ने एक और विवादास्पद निर्णय लिया है। यह सरना धर्म कोड से जुड़ा है। कहा गया है कि आगामी जनगणना में सरना धर्म कोड का कॉलम रखने का प्रस्ताव राज्य सरकार द्वारा राज्यपाल के माध्यम से केंद्र सरकार को भेजा जाएगा। बता दें कि सरना धर्म कोड की मांग के पीछे भी चर्च है। उल्लेखनीय है कि हेमंत सरकार के बनने के कुछ समय के बाद ही 18 सितंबर, 2020 को रोमन कैथोलिक चर्च के आर्चबिशप फेलिक्स टोप्पो ने ही जनजातीय समाज के लिए सरना धर्म कोड की मांग रखी थी। इसके कुछ महीनों के बाद ही चर्च की ओर से झारखण्ड कैबिनेट में एक ईसाई मंत्री नियुक्त करने की अपील भी की गई थी।
अब चर्च की इन मांगों को पूरा करने के लिए ही टीएसी से राज्यपाल को बाहर कर दिया गया है। बता दें कि पहले टीएसी का अध्यक्ष राज्यपाल ही होता था। कुछ समय पहले राज्य सरकार ने टीएसी में दो अन्य सदस्यों को जोड़ने का आग्रह पत्र तत्कालीन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को भेजा था। लेकिन उन्होंने नियमों का हवाला देते हुए ऐसा करने से मना कर दिसया। इसके बाद राज्य सरकार ने टीएसी के अध्यक्ष पद से राज्यपाल को हटाने के लिए एक विशेष बैठक की और उन्हें हटा कर मुख्यमंत्री को टीएसी का अध्यक्ष बना दिया।
टीएसी के इस निर्णय का विरोध नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने किया है। उनका कहना है कि पांचवीं अनुसूची के अनुसार यह समिति पूरी तरह से असंवैधानिक है और भाजपा इसका विरोध करती है। उन्होंने यह भी कहा कि नियमानुसार राज्यपाल को ही समिति के सदस्यों के मनोनयन का अधिकार है, लेकिन अब मुख्यमंत्री ने उनके अधिकारों को समाप्त कर नई नियमावली की अधिसूचना जारी कर दी है, यह सरासर गलत है।
वहीं सामाजिक कार्यकर्ता सुनील बैठा कहते हैं, ''टीएसी ने अपनी हरकतों से उस राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की याद दिलीा दी है, जो सोनिया गांधी की अध्यक्षता में हिंदू समाज के खिलाफ मनमोहन सिंह सरकार से कानून बनवाती थी।''
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय सलाहकार परिषद मनमोहन सिंह सरकार से ऊपर "सुपर सरकार" की तरह काम करती थी। अब कुछ ऐसा ही झारखंड में देखने को मिल रहा है। अब इस सरकार ने टीएसी की नई नियमावली भी बना दी है। इसके अनुसार टीएसी में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष के अलावा 18 सदस्य होंगे। इसमें मुख्यमंत्री टीएसी के अध्यक्ष और जनजातीय कल्याण विभाग के मंत्री उपाध्यक्ष होंगे। तीन ऐसे सदस्यों का मनोनयन मुख्यमंत्री करेंगे, जो जनजातीय मामलों में विशेष ज्ञान रखते हों।
बहुत सारे लोग आशंका व्यक्त कर रहे हैं कि टीएसी इसी तरह काम करती रही तो यह राज्य के बहुसंख्यक समाज के लिए ठीक नहीं होगा। इसलिए लोग इसके अध्यक्ष पद पर राज्यपाल को देखना चाहते हैं।
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