गंगोत्री से लेकर बंगाल की खाड़ी तक बहने वाली गंगा को प्राकृतिक रूप से साफ करने के लिए उसमें जलीय जीवों को फिर से प्रवाहित किया जा रहा है। भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून के सर्वे के बाद से जल शक्ति मंत्रालय-नमामि गंगे प्रोजेक्ट के जरिये ये अभिनव प्रयोग कर रहा है।
दिनेश मानसेरा
गंगोत्री से लेकर बंगाल की खाड़ी तक बहने वाली गंगा को प्राकृतिक रूप से साफ करने के लिए उसमें जलीय जीवों को फिर से प्रवाहित किया जा रहा है। भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून के सर्वे के बाद से जल शक्ति मंत्रालय-नमामि गंगे प्रोजेक्ट के जरिये ये अभिनव प्रयोग कर रहा है।
हम सभी जानते हैं कि गंगा में डॉल्फिन मछली हुआ करती थीं, जो स्वाभाविक रूप से गंगा को साफ रखती थी। बड़े—बड़े कछुए गंगा में बहने वाले शवों को समाप्त करने का काम करते थे। गंगा मैया की सवारी घड़ियाल यानी मगरमच्छ मानी जाती है। यानि गंगा और मगरमच्छ एक दूसरे के पूरक होते रहे हैं। मगरमच्छ के गंगा में रहने से उसकी सफाई होती रहती है। पिछले कुछ सालों में ये प्राकृतिक जलीय जीव खत्म होते गए। कल—कारखानों से निकलने वाले रसायन और गंदे पानी ने इनका दम घोंट दिया।
भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा गंगा के जलीय जीवों का जो अध्ययन करवाया गया, उसके प्रोजेक्ट रिसर्चर डॉ विपुल मौर्य ने जानकारी देते हुए बताया कि गंगा के जल में प्राकृतिक वास करने वाले जीव—जंतुओं पर हमने गंगोत्री से बंगाल की खाड़ी तक अध्ययन किया है। इस दौरान हमने देखा कि कौन—कौन से जलीय जीव इसमें रहते आये हैं। फिर उनमें से ऐसे कौन से हैं, जो कि प्राकृतिक रूप से जलशोधन का काम करते हैं। इनमें कछुए, मगरमच्छ, ऊदबिलाव, घोंघे की प्रजातियां महत्वपूर्ण हैं। डॉल्फिन, गूँच, महाशीर मछली भी गंगा को साफ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। लेकिन रसायन की वजह से पानी में ये जीव गायब से हो गये। डॉ मौर्य कहते हैं कि नमामि गंगे प्रोजेक्ट के बाद से गंगा में गंदगी आनी कम हुई है, जिससे हम फिर से इन जलीय जीवों को पानी में सक्रिय कर सकते हैं। हमने गढ़मुक्तेश्वर से लेकर प्रयाग तक कछुए और मगरमच्छ पानी में छोड़े जाने की सिफारिश की है। वे बताते हैं कि गढ़गंगा में साढ़े तीन हज़ार से ज्यादा कछुए छोड़ चुके हैं।
उन्होंने बताया कि अब हमारी रिसर्च टीम, घाघरा, गोमती, रामगंगा एवं कोसी में जलीय जीवों पर काम कर रही है। इन नदियों के जल साफ रहने से न सिर्फ इंसानी जीवन सुधरता है, बल्कि हज़ारों जीव—जंतु भी गंगा और उसकी सहायक नदियों से जीवन पा रहे हैं।
गढ़ मुक्तेश्वर में नीति आयोग के सदस्य राजीव कुमार ने वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ जाकर गंगा में कछुए छोड़े जाने की प्रकिया को समझा।
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