डाॅ चन्द्र प्रकाश सिंह
श्रद्धेय अशोक सिंहल जी का श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मन्दिर निर्माण का संकल्प पूर्ण हो रहा है, लेकिन श्रीराम के चरित्र के आधार पर ऐसे हिन्दू समाज को खड़ा करने का संकल्प अधूरा है, जो सम्पूर्ण विश्व में अपने चरित्र, संस्कार, शौर्य एवं वीरता में वरेण्य और श्रेष्ठ हो।
श्रद्धेय अशोक सिंहल जी एक ऐसा नाम हैं, जो भारत ही नहीं विश्व इतिहास में हिन्दुत्व के पुनर्जागरण के नायक के रूप में सदैव याद किए जाएंगे। एक शताब्दी पूर्व स्वामी विवेकानंद ने विश्व पटल पर "गर्व से कहो हम हिन्दू हैं " का उद्घोष किया था, परन्तु स्वतंत्रता के बाद कम्युनिस्ट और सेकुलरवादी तत्वों ने देश में ऐसा वातावरण बना दिया कि देश का तथाकथित शिक्षित व आधुनिक समाज अपने आप को हिन्दू कहने में भी लज्जा का अनुभव करने लगा।
एक ऐसा समाज जो लगभग आठ सौ वर्ष तक विदेशी आक्रमणों तथा परकीय राज्यसत्ता के दमन चक्रों को झेलते हुए अपनी स्वतंत्रता, जीवनमूल्य एवं आदर्शों के लिए अहर्निश संघर्ष करता रहा, वह स्वतंत्रता के पश्चात शासकों की हिंदुत्व के प्रति हीन एवं विद्रूप मानसिकता के कारण पहले से भी अधिक भ्रमित हो गया। वह क्षेत्र के नाम पर, भाषा के नाम पर, जाति के नाम पर संगठित हो सकता था, संघर्ष कर सकता था, लेकिन अपनी संस्कृति, परम्परा एवं राष्ट्रीय गौरव के लिए संघर्ष तो दूर सोचने तक की उसकी भावना समाप्त हो गयी थी।
यह श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन का ही अद्भुत चमत्कार था कि केवल भारत का हिन्दू समाज ही नहीं अपितु विश्व के बड़े-बड़े लेखक और विचारक तक हिन्दुत्व के गौरव का गुणगान करने लगे। श्रीराम जन्मभूमि का आन्दोलन न केवल समाज के जागरण का आधार बना अपितु भारत की राजनीति का केन्द्र बिन्दु हिन्दुत्व को बना दिया।
यद्यपि स्वतंत्रता के पूर्व और बाद में भी भिन्न-भिन्न प्रकार से राष्ट्र जागरण के अनेक प्रयत्न होते रहे, परन्तु श्रद्धेय अशोक सिंहल जी के नेतृत्व में 80 के दशक में प्रारम्भ हुआ राष्ट्र के आदर्श एवं अस्मिता के नायक मर्यापुरुषोत्तम श्रीराम के जन्म स्थान की मुक्ति का आन्दोलन विश्व इतिहास में न केवल हिन्दुत्व अपितु भारत के सांस्कृतिक जागरण का अद्वितीय अध्याय बन गया।
श्रद्धेय अशोक सिंहल जी ने केवल हिन्दुत्व के आध्यात्मिक और धार्मिक उत्कर्ष के लिए ही कार्य नहीं किए, बल्कि शक्तिशाली, संगठित राष्ट्र के सर्वांगीण उत्कर्ष के लिए उन्होंने अनेक प्रयत्न किए। उन्होंने जाति, पंथ, भाषा और क्षेत्र में विभाजित हिन्दू समाज को न केवल एकात्मता के सूत्र में पिरोने का कार्य किया बल्कि सुदूर जंगलों में रहने वाले वनवासी, गिरिवासी एवं अस्पृश्य मानकर समाज द्वारा उपेक्षित ऐसे सभी हिन्दुओं को शिक्षित, संस्कारित एवं सक्षम बनाने की दिशा में भी उनके द्वारा अनेक प्रकार के प्रयत्न किए गए। अशोक जी ने आन्दोलनों के माध्यम से हिन्दू संगठन एवं सेवा कार्यों के माध्यम से हिन्दू उत्थान का महतीय कार्य किया।
अशोक जी के हिन्दुत्व की अवधारणा केवल हिन्दुओं के संगठन तक ही सीमित नहीं थी। उनके अंतःकरण में ऐसा हिन्दू समाज खड़ा करने का संकल्प था, जो श्रीराम और श्रीकृष्ण के चरित्र का अनुगामी हो। श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मन्दिर निर्माण का उनका संकल्प पूर्ण हो रहा है, लेकिन श्रीराम के चरित्र के आधार पर ऐसे हिन्दू समाज को खड़ा करने का संकल्प अधूरा है जो सम्पूर्ण विश्व में अपने चरित्र,संस्कार, शौर्य एवं वीरता में वरेण्य और श्रेष्ठ हो। स्वयं के हिन्दू होने का स्मरण करते ही एक-एक व्यक्ति के मानस में अपने श्रेष्ठ संस्कार, चरित्र एवं गौरव का बोध जागृत हो जाए।
श्रद्धेय अशोक सिंहल जी का व्यक्तित्व आध्यात्मिक अधिष्ठान पर खड़ा हुआ ज्ञान, भक्ति एवं कर्म का समुच्चय था। वे उन महापुरुषों के कोटि में थे जिनका विशाल व्यक्तित्व समाज की पहचान बन जाता है और उनके चरित्र से युगों-युगों तक समाज को प्रेरणा प्राप्त होती रहती है।
ऐसे महापुरुष का मार्गदर्शन, सानिध्य एवं स्नेह का अवसर प्राप्त होना जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य है। महामनीषी की 95वीं जयंती के अवसर पर उनके चरणों में कोटि-कोटि नमन।
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