राकेश सैन
पंजाब में प्रचारित किए जा रहे प्रदेश के पहले अनुसूचित जाति से जुड़े मुख्यमंत्री चरनजीत सिंह चन्नी केवल ‘चवन्नी’ और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ‘नोट’ बनते जा रहे हैं।
चन्नी के मुख्यमंत्री बनने के तीन-चार दिन में ही प्रशासनिक फेरबदल को लेकर लिए गए निर्णयों में सिद्धू की झलक दिखाई दे रही है। यही कारण है कि नौकरशाही में इसे लेकर खासी चर्चाएं हैं और मनचाहे पद की दौड़ में शामिल तमाम बाबुओं ने सिद्धू के दरबार में किसी न किसी का सहारा लेकर हाजिरी लगानी शुरू कर दी है। एक सप्ताह में ही पंजाब भर में यह सन्देश जाने लगा है कि भले ही चन्नी की सरकार हो, लेकिन सिद्धू इस सरकार के सरदार हैं। चन्नी के मुख्यमंत्री बनने के बाद जिस प्रकार से सिद्धू ने अपने संबोधन में चन्नी को मुख्यमंत्री की बजाय चन्नीभाई कहकर संबोधित किया था। उसी से राजनीति के जानकारों ने यह आकलन लगा लिया था कि चलनी तो सिद्धू की ही है। पहले ही दिन से सिद्धू विभिन्न बयानों में यही इशारों के जरिए सन्देश दे रहे हैं कि चन्नी उनकी वजह से मुख्यमंत्री बने हैं। उसके ऊपर अगले विधानसभा चुनाव सिद्धू की अगुवाई में लड़ने को लेकर पंजाब कांग्रेस प्रधान हरीश रावत के बयान ने भी सिद्धू को नई सरकार में मजबूत कर दिया है। सुनील जाखड़ ने रावत के बयान का विरोध किया था और उसे नए मुख्यमंत्री को कमजोर करने वाला बताया था, जो अब नजर भी आने लगा है। हाल ही में प्रशासनिक स्तर पर अधिकारियों के किए गए तबादले भी इसी तरफ इशारा कर रहे हैं।
बीते दिन जालंधर के पुलिस आयुक्त डॉ.सुखचैन सिंह गिल को एक महीना एक दिन बाद ही बदलकर दोबारा अमृतसर में तैनात कर दिया गया। जालंधर में तैनात रहे पुलिस आयुक्त गुरप्रीत सिंह भुल्लर को तय वायदे के मुताबिक पहले लुधियाना में डीआइजी फिर पुलिस आयुक्त तैनात किया गया। नौनिहाल सिंह को जालन्धर में पुलिस आयुक्त तैनात किया गया। डा. गिल के साथ सिद्धू की नजदीकी व उनकी कार्यशैली सिद्धू को पसन्द होने के कारण उन्हें अमृतसर तैनात किया गया।
बुधवार को जब पूरी पंजाब सरकार अमृतसर में थी तो नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष दिनेश बस्सी को हटाकर सिद्धू ने अपने करीबी दमनदीप सिंह को न्यास का अध्यक्ष नियुक्त करवा दिया। मुख्यमंत्री बनने के बाद जिस प्रकार से पंजाब पुलिस प्रमुख को लेकर चन्नी व सिद्धू के बीच पेंच फंसा है, उसने भी ‘सुपर सीएम’ की तस्वीर काफी हद तक क्लीयर कर दी है। चन्नी अन्दरखाते 1988 बैच के भारतीय पुलिस अधिकारी इकबाल प्रीत सिंह सहोता को डीजीपी लगाना चाहते हैं, लेकिन सिद्धू का जोर सहोता से वरिष्ठ 1986 बैच के भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी सिद्धार्थ चट्टोपाध्याय को डीजीपी बनाने पर है। चट्टोपाध्याय ने ड्रग्स के मामले को लेकर पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय में पूर्व डीजीपी सुरेश अरोड़ा व वर्तमान डीजीपी दिनकर गुप्ता तथा एक अन्य आईपीएस की कार्यप्रणाली को लेकर अपनी सील बन्द रिपोर्ट सौंपी थी, जो आज तक नहीं खुल पाई है। अगर यह रिपोर्ट खुलती तो यहां की राजनीति में तहलका मच सकता है। चट्टोपाध्याय इसके बाद से ही कैप्टन अमरिन्दर सिंह के निशाने पर रहे थे।
वरिष्ठता क्रम को किनारे करके कैप्टन सरकार ने दिनकर गुप्ता को डीजीपी का पद दिया था। इससे कैप्टन के करीबी रहे मोहम्मद मुस्तफा भी नाराज चल रहे हैं। सहोता को डीजीपी बनाए जाने को जट्ट अधिकारियों की लॉबी भी विरोध में है। चन्नी पहले ही अनुसूचित जाति से सम्बन्धित हुसन लाल को अपने साथ तैनात कर चुके हैं। अगर सहोता को भी डीजीपी बनाया जाता है तो इसका सन्देश बाकी अधिकारियों में गलत जाएगा। वरिष्ठता में सहोता से ऊपर चट्टोपाध्याय व वीके भांवरा है। वीके भांवरा 2017 के विधानसभा चुनाव में चुनाव आयोग की सिफारिश पर बतौर डीजीपी अपनी सेवाएं दे चुके हैं और उन्हें अनुभव भी है। लेकिन सिद्धू चट्टोपाध्याय को ही चाहते हैं।
अभी तक इन अधिकारियों की हुई बदली
राहुल तिवारी को मुख्यमंत्री का विशेष प्रमुख सचिव बनाया गया है। तेजवीर सिंह को मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव से हटाकर प्रमुख सचिव उद्योग, गुरकीरत किरपाल सिंह को मुख्यमंत्री के विशेष प्रमुख सचिव के पद से हटाकर सचिव खाद्य आपूर्ति, केके यादव को विशेष प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री, शौकत अहमद को मुख्यमंत्री का अतिरिक्त प्रमुख सचिव, मनकरनवाल सिंह चाहल को मुख्यमन्त्री का उप प्रमुख सचिव लगाया गया है। इसी तरह सुमित जारंगल को सूचना विभाग का निदेशक, मोहाली के उपायुक्त गिरीश दयालन को हटाकर उनके स्थान पर ईशा को लगाया गया है। इन सभी नियुक्तियों में सिद्धू का प्रभाव साफ-साफ महसूस किया जा रहा है।
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