सोनाली मिश्र
दो दिनों से नई दिल्ली के अकीला रेस्टोरेंट में साड़ी पर हुआ विवाद छाया हुआ है। अब रेस्टोरेंट की ओर से सफाई आई है कि उन्हें किसी भी परिधान से आपत्ति नहीं है और हर प्रकार के परिधानों का स्वागत है।
विवाद की वजह ?
स्वतंत्र पत्रकार अनिता चौधरी ने अपने ट्विटर हैंडल से एक वीडियो ट्वीट किया था जिसमें रेस्टोरेंट के स्टाफ को यह कहते हुए साफ़ साफ़ सुना जा रहा था कि वह केवल स्मार्ट कैजुअल ही अलाऊ करते हैं और साड़ी स्मार्ट कैजुअल नहीं है।”
इस वीडियो में अनिता चौधरी ने कई लोगों को टैग करते हुए प्रश्न किया था कि क्या साड़ी स्मार्ट कैजुअल नहीं है ? यह अत्यंत हास्यास्पद है कि कोई भी कर्मचारी इतनी बचकानी बात बोल सकता है, वह भी मात्र इसलिए कि ग्राहक अन्दर अभद्रता करके आया है। ग्राहक ने यदि अभद्रता की थी तो उसके लिए कानूनी रास्ते थे और पुलिस का सहारा लिया जा सकता था। परन्तु जिस प्रकार से स्टाफ यह कह रहा है कि साड़ी स्मार्ट कैजुअल नहीं है, यह अत्यंत अपमानजनक है।
साड़ी पहने मजबूत स्त्रियां
भारत में साड़ी अभी भी स्त्रियों का मुख्य परिधान है एवं अधिकांश स्त्रियाँ साड़ी पहनना पसंद करती हैं। ऐसा नहीं है कि वह विवशता वश पहनती हैं, बल्कि जो भी अपनी भारतीयता को जीवित रखे हुए है, वह साड़ी पसंद ही नहीं करतीं, अपितु उसे अपने दैनिक जीवन का हिस्सा भी बनाती हैं। हाल ही में मंत्रिमंडल विस्तार का चित्र हम सभी की स्मृति में है, जिसमें सभी नव नियुक्त मंत्री साड़ी में थीं।
इससे और थोड़ा पीछे जाते हैं तो हम सभी को मंगल अभियान याद होगा। उसमें कुछ स्त्रियों की सफल मुस्कान वाली तस्वीर थी, वह सभी उच्चशिक्षित स्त्रियां साड़ी ही पहने थीं। उनकी सफलता किसी शॉर्ट ड्रेस या किसी अभारतीय परिधान से नहीं मुस्करा रही थी, उनकी सफलता मुस्करा रही थी, साड़ियों के साथ। “स्मार्ट-कैजुअल” साड़ियों के साथ।
दरअसल साड़ी स्वतंत्र विचारों का प्रतीक है। हर वह परिधान, जो स्थानिकता से सम्बन्धित होगा, वह व्यक्ति को आत्मविश्वास से भरता है, तथा जो भी आयातित होता है, वह कहीं न कहीं आचरण में भी आत्महीनता ला देता है। ऐसा नहीं है कि पश्चिमी परिधान आकर्षक नहीं हैं या स्वतंत्र नहीं हैं, चूंकि साड़ी हमें इतनी स्वतंत्रता देती है कि हम कोई भी परिधान धारण कर सकें, इसलिए हम शेष अन्य परिधान भी उतनी ही गरिमा से धारण करते हैं।
साड़ी कैसे स्वतंत्रता का द्योतक है, यह हमें महिला स्वंत्रता सेनानियों के चित्र देखकर पता चल सकता है। जब भारत में मुग़ल वंश के अत्याचार अपने चरम पर थे और ऐसा लग रहा था जैसे अब हिन्दू धर्म को यह मुग़ल वंश लील ही जाएगा। जब शाहजहां की अय्याशियों ने हिन्दू स्त्रियों को असुरक्षित कर दिया था, तब साड़ी पहनने वाली जीजाबाई ने ही स्वप्न देखा। यह स्वप्न था स्वतंत्रता का! स्वराज्य का। उसके बाद शिवाजी ने जो किया वह इतिहास का सर्वाधिक स्वर्णिम प्रकरण है।
उसके उपरान्त जब शिवाजी के पुत्र की असमय मृत्यु के उपरान्त औरंगजेब को लगा कि अब वह सारे मराठाओं को पराजित कर देगा, तो उसने दक्कन में ही डेरा डाल दिया, परन्तु औरंगजेब का सामना करने के लिए समस्त मराठा सरदारों को एकत्र कर संघर्ष करने वाली स्त्री ताराबाई भी साड़ी पहनने वाली स्त्री ही थी।
जीजाबाई
अंग्रेजी बोलने वालों के सामने टिक कर लड़ने वाली असंख्य महिला स्वंत्रता सेनानी भी साड़ी पहनने वाली ही थीं। तभी अंग्रेजों को साड़ी से घृणा थी। क्योंकि वह उनकी पराजय को दिखाती थी। तभी साहित्य के माध्यम से साड़ी को पिछड़ा लिखा जाने लगा और जो लड़की अंग्रेजों की कथित स्मार्ट ड्रेस पहनती थी उसे आधुनिक बताया जाने लगा। जबकि जिन्हें बहुत आधुनिक या मॉडर्न कहा जाता है अर्थात अंग्रेज, वह भारतीय स्त्रियों को वोट देने का अधिकारी नहीं मानते थे। जिस देश में स्त्रियों का स्वतंत्र शासन करना कभी अचम्भा नहीं था, वह स्वाभाविक रहा। उस देश में अंग्रेजों ने आकर स्त्रियों को पिछड़ा बनाया, क्योंकि वह खुद अपनी औरतों को पिछड़ा मानते थे। इसीलिए वह साड़ी से घृणा करते थे, क्योंकि साड़ी पहने स्वतंत्र स्त्री उनकी सत्ता को चुनौती देती थी। साड़ी पहनने, भगवा ध्वज थामे स्त्रियों से उन्हें भय लगता था, इसलिए उन्होंने मिशनरी के माध्यम से सबसे पहले जिन के प्रति घृणा एवं शर्म का भाव हिन्दू स्त्रियों के मन में डाला, वह था हिन्दू आभूषणों एवं साड़ी से मुक्ति।
साड़ी से घृणा एक औपनिवेशिक सोच है, जो अभी हाल के चुनावों के बाद पश्चिम मीडिया में उभर कर आई थी। इसने साड़ी को साम्प्रदायिक कहते हुए राष्ट्रभावी राजनीति का टूल तक कह दिया था। यदि कोई परिधान किसी देश की पहचान है तो समस्या क्या है ?
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