तुर्की से पाकिस्तान को कश्मीर पर जिस बात की उम्मीद थी, वह सुनने में नहीं आई बल्कि एर्दोगन का रुख उससे उलट ही दिखा। कश्मीर का मुद्दा तो उठाया गया लेकिन तुर्की के शब्दों में कुछ नरमी दिखी जो पाकिस्तान को रास नहीं आई
संयुक्त राष्ट्र में तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन के 21 सितम्बर भाषण को सुनकर पाकिस्तान के नीतिकार हैरान हैं। वे परेशान हैं कि तुर्की से कश्मीर पर जिस बात की उन्हें उम्मीद थी वह सुनने में नहीं आई बल्कि एर्दोगन का रुख उससे उलट ही दिखा। संयुक्त राष्ट्र की 76वीं आम सभा में कश्मीर का मुद्दा तो उठाया गया लेकिन तुर्की के शब्दों में कुछ नरमी दिखी जो पाकिस्तान को रास नहीं आई, क्योंकि इस पर पाकिस्तान ने कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दी। बताया गया कि इस नए रुख की पाकिस्तानी अभी गुत्थी सुलझाने में ही लगे हैं।
कश्मीर के संदर्भ में राष्ट्रपति एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण में कहा कि तुर्की अब भी कश्मीर विवाद के समाधान के लिए अपने उसी रुख़ पर कायम है। एर्दोगन ने कहा कि पिछले 74 साल से कश्मीर का मामला उलझा हुआ है। इसे संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के तहत दोनों पक्षों को आपस में सुलझाना चाहिए। पता चला है कि पाकिस्तान अफगानिस्तान में तालिबान के जरिए अपने मंसूबे पूरे होते देख कूटनीति में खुद को तीस मार खां मान रहा था, उसे उम्मीद थी कि तुर्की इस बार कश्मीर पर पहले से ज्यादा कड़ा पैंतरा चलेगा, पाकिस्तान को और नंबर दिलाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कारण यह कि पिछले साल संयुक्त राष्ट्र की 75वीं आम सभा में इन्हीं एर्दोगन ने कश्मीर के विषय में बड़ी ज़ोर-शोर से अपनी बात रखते हुए अनुच्छेद-370 को हटाने आदि विषयों का जिक्र किया था। तब भाषण की शुरुआत ही उन्होंने कश्मीर के मुद्दे से की थी। उसके बाद वे अफ़ग़ानिस्तान, इसराएल, सीरिया, लीबिया, यूक्रेन, अज़रबेजान और चीन तक पहुंचे थे।
एर्दोगन ने कश्मीर के हल में संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव और आपस में द्विपक्षीय बातचीत करने की बात तो की, लेकिन वे पिछली बार की तरह 'कश्मीर के लोगों की उम्मीद' नहीं बोले। एर्दोगन के पिछली बार के भाषण के बाद पाकिस्तान बड़े जोश में उछला था और फौरन मीडिया के सामने आकर तुर्की की तारीफों के पुल बांधे थे, लेकिन इस बार मीडिया के लाख पूछने पर भी तुर्की के नरम रुख पर पाकिस्तान के अधिकारी मुंह लटकाए चले गए।
इस बार के भाषण में एर्दोगन ने कश्मीर के हल में संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव और आपस में द्विपक्षीय बातचीत करने की बात तो की, लेकिन वे पिछली बार की तरह 'कश्मीर के लोगों की उम्मीद' नहीं बोले। एर्दोगन के पिछली बार के भाषण के बाद पाकिस्तान बड़े जोश में उछला था और फौरन मीडिया के सामने आकर तुर्की की तारीफों के पुल बांधे थे, लेकिन इस बार मीडिया के लाख पूछने पर भी तुर्की के नरम रुख पर पाकिस्तान के अधिकारी मुंह लटकाए चले गए, उन्होंने प्रतिक्रिया देने से इंकार कर दिया। इस बार पाकिस्तान के खेमे में मामला ठंडा ही रहा।
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