अरब यात्री सुलेमान जिन्हें कहता था-“भारत में मुस्लिमों का सबसे बड़ा दुश्मन”, कौन हैं ऐसे शिवभक्त और संस्कृति के महानायक सम्राट

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आदित्य भारद्वाज

सम्राट मिहिर भोज ने न केवल भारत की बल्कि नेपाल को भी बाहरी आक्रमणों से बचाया। काबुल में राजाओं को संरक्षण दिया और इस्लामी आक्रांताओं से उनकी रक्षा की। शिव के महान भक्त थे, लेकिन पदवी भगवान विष्णु के अवतार आदिवराह की मिली

सम्राट मिहिर भोज का साम्राज्य हर्षवर्धन के साम्राज्य से भी बड़ा था और यह महेन्द्रपाल और महिपाल के शासनकाल ई. 931 तक कायम रहा। इस दौर में प्रतिहार राज्य की सीमाएं गुप्त साम्राज्य से भी ज्यादा बड़ी थीं। आज इतिहास का पुर्नमूल्यांकन कर यह बताने की जरूरत है कि उस पूर्व मध्यकाल दौर के हमारे महानायक सम्राट मिहिर भोज ही थे।

सम्राट मिहिर भोज ने न केवल भारत की बल्कि नेपाल की भी बाहरी आक्रमणों से रक्षा की। काबुल में राजाओं को उन्होंने संरक्षण दिया और इस्लामी आक्रांताओं से उनकी सुरक्षा की। शिव के उपासक थे, लेकिन पदवी उन्हें विष्णु अवतार 'आदिवराह के नाम पर मिली। विष्णु भगवान की तरह उन्होंने भी पृथ्वी के संताप को कम किया था।
आज उत्तर प्रदेश के दादरी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा का अनावरण करने वाले हैं। उससे पहले इस बात को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है कि वह गुर्जर थे या राजपूत ? लेकिन यहां महत्वपूर्ण यह नहीं कि वह गुर्जर थे या राजपूत। महान लोगों की कोई जाति नहीं होती। यहां सबसे जरूरी यह है कि वह शिवभक्त हिंदू सम्राट थे, जिन्होंने मुस्लिम आक्रांताओं से भारत को बचाया।

भोज प्रथम अथवा 'मिहिर भोज' गुर्जर प्रतिहार वंश के सर्वाधिक प्रतापी एवं महान शासक थे। 836 ई. में उनका जन्म हुआ था और उन्होंने करीब पचास वर्ष तक शासन किया। उनका मूल नाम 'मिहिर' था और 'भोज' कुल नाम अथवा उपनाम था। उनका राज्य उत्तर में हिमालय, दक्षिण में नर्मदा, पूर्व में बंगाल और पश्चिम में सतलुज तक विस्तृत था, जिसे सही अर्थों में साम्राज्य कहा जा सकता है।

ऐसे में जबकि उनकी जाति को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है जिसके चलते वीर गुर्जर महासभा ने सम्राट मिहिर भोज को अपने समुदाय का बताया है तो वहीं नागौर के किले में रहने वाले सम्राट मिहिर भोज के वंशज उन्हें राजपूत बता रहे हैं।

ऐसे विवादों में हमें यह ध्यान देने की जरूरत है कि कहीं इन सबके चलते उनकी महानगाथा दुनिया के सामने आने की बजाय विवादों में न छिप जाए।

भारतीय उप-महाद्वीप का एक बड़ा हिस्सा सम्राट मिहिर भोज के मार्गदर्शन में काफी फला-फूला। मिहिर भोज सिर्फ प्रतिहार वंश के ही नहीं वरन हर्षवर्धन के बाद और भारत में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना के पूर्व पूरे राजपूत काल के सर्वाधिक प्रतिभाशाली सम्राट थे। उनके बारे में अरब से आए यात्रियों और इतिहासकारों ने भी लिखा है। अरबी यात्री सुलेमान ने यात्रा वृत्तांत में लिखा है कि इस राजा के पास बहुत बड़ी सेना है और किसी दूसरे राजा के पास वैसी घुड़सवार सेना नहीं है। भारतवर्ष के राजाओं में उससे बढ़कर अरबों का कोई शत्रु नहीं है। उनके साम्राज्य में वर्तमान उत्तर प्रदेश, मध्य भारत, ग्वालियर, मालवा, सौराष्ट्र राजस्थान बिहार, कलिंग शामिल था। यह हिमालय की तराई से लेकर बुदेलखण्ड तक तथा पूर्व में पाल राज्य से लेकर पश्चिम में गुजरात तक फैला था। अपनी महान राजनीतिक तथा सैनिक योजनाओं से सदैव इस साम्राज्य की रक्षा की। भोज का शासनकाल पूरे मध्य युग में अद्वितीय माना जाता है। इस अवधि में देश का चतुर्मुखी विकास हुआ। साहित्य सृजन, शांति व्यवस्था, स्थापत्य, शिल्प, व्यापार और शासन प्रबंध की दृष्टि से यह श्रेष्ठतम माना गया है। भयानक युद्धों के बीच किसान मस्ती से अपना खेत जोतता था और वणिक अपनी विपणन मात्रा पर निश्चिंत चला जाता था। मिहिर भोज को गणतंत्र शासन पद्धति का जनक भी माना जाता है। उन्होंने अपने साम्राज्य को आठ गणराज्यों में विभक्त कर दिया था। प्रत्येक राज्य का अधिपति राजा कहलाता था, जिसे आज के मुख्यमंत्री की तरह आंतरिक शासन व्यवस्था में पूरा अधिकार था। परिषद का प्रधान सम्राट होता था और शेष राजा मंत्री के रूप में कार्य करते थे। वह जितना वीर थे, उतना ही दयालु भी थे, घोर अपराध करने वालों को भी उन्होंने कभी मृत्यदण्ड नहीं दिया। किन्तु दस्युओं, डकैतों, हूणों, तुर्कों अरबों को देश का शत्रु मानने की धारणा स्पष्ट थी और इन्हें क्षमा करने की भूल कभी नहीं की और न ही इन्हें देश में घुसने दिया।

उनके साम्राज्य को तब ‘गुर्जर देश’ के नाम से जाना जाता था। ये वह समय था, जब अरब के इस्लामी कट्टरपंथियों ने साम्राज्य विस्तार शुरू कर दिया था और उनकी नजर सिंधु के पार भारतवर्ष पर थी। आज का जो अफगानिस्तान है, वहां तब ब्राह्मणशाही का शासन हुआ करता था। राजा दाहिर को हराने के बाद अरब-तुर्क मुस्लिम आक्रांताओं ने सोचा कि भारत के लिए उनके दरवाजे खुल गए हैं, लेकिन सम्राट मिहिर भोज ने ऐसा नहीं होने दिया। उन्होंने अपनी सेना को मजबूत और विशाल बनाया, ताकि वह आक्रमणकारियों का मुकाबला कर सके। आज के राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, ओडिशा, गुजरात, हिमाचल–ये सभी उनके साम्राज्य का हिस्सा थे। कन्नौज को राजधानी बनाया और वहीं से शासन चलाया करते थे। कृषि और व्यापार को बढ़ावा देने के लिए कई नीतियां लाने वाले मिहिर भोज के राज में प्रजा खुशहाल थी। कन्नौज तो इतना समृद्ध शहर था कि वहां 10 हजार की संख्या में मंदिर थे। धन-वैभव से सम्पन्न उनके राज्य में सोने-चांदी के सिक्कों से व्यापार होता था। अपराधियों को उचित दंड दिया जाता था।

915 ईस्वी में भारत भ्रमण पर आए बगदाद के इतिहासकार अल मसूदी ने भी ‘मिराजुल-जहाब’ नामक पुस्तक में लिखा है कि मिहिर भोज की सेनाएं काफी शक्तिशाली व पराक्रमी हैं। उसने लिखा है कि लाखों की संख्या में ये सेना चारों दिशाओं में फैली हुई हैं। मिहिर भोज की गाथा स्कंद पुराण के ‘प्रभास खंड’ में भी वर्णित है। कश्मीर के राज्य कवि कल्हण ने भी अपनी पुस्तक ‘राज तरंगिणी’ में उनकी वीरता का जिक्र किया है। काबुल के ललिया शाही राजा, कश्मीर का उत्पल वंशी राजा अवंतीवर्मन, नेपाल का राजा राघवदेव और आसाम के राजा– ये सभी मिहिर भोज के मित्र हुआ करते थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई युद्ध लड़े। उत्तरी बंगाल को अपने साम्राज्य में मिलाया। अरब शासक इमरान बिन मूसा को धूल चटा कर सिंध को वापस भारतवर्ष का हिस्सा बनाया। काबुल से रांची और हिमालय से आंध्र तक उनकी सीमाएं विस्तारित हो गई थीं।

उनके सेनापति कनकपाल परमार गुर्जर ने नेपाल की भी बाहरी आक्रमणों से रक्षा की। वहीं काबुल में हिन्दू राजाओं को उन्होंने संरक्षण दिया और इस्लामी आक्रांताओं से उनकी सुरक्षा की। उज्जैन में स्थापित महाकाल के अनन्य भक्त मिहिर भोज की सेना भगवान विष्णु के भी जयकारे लगाती थी। उन्होंने ‘आदिवराह’ की पदवी भी धारण की, जिसका पता उस काल के सिक्कों से चलता है।

सम्राट मिहिर भोज के काल के जो सिक्के मिले हैं, उसमें यज्ञ वेदी से लेकर रक्षक की आकृतियां भी बनी हुई हैं। विष्णु अवतार वराह और सूर्य चक्र की आकृतियां भी उनके सिक्कों पर उकेरी जाती थीं। महान सम्राट हर्षवर्धन के काल से ही कन्नौज उनकी राजधानी रही थी और इसीलिए ये एक महत्वपूर्ण नगर था। उनके निधन के बाद गुर्जर-प्रतिहार वंश का शासन प्रारंभ हुआ। इसी वंश के नागभट्ट (725-40 ईस्वी) के नेतृत्व में इस्लामी आक्रांताओं को भगाया गया था।

नगभट्ट के वंश में ही मिहिर भोज का जन्म हुआ। मिहिर भोज न सिर्फ एक बड़े योद्धा थे, बल्कि कला को संरक्षण देना भी भलीभांति जानते थे। उनके बेटे महेन्द्रपाल ने भी पिता की तरह साम्राज्य की प्रतिष्ठा को बरकरार रखा, लेकिन उसके बाद ये राजवंश कमजोर होता चला गया। 1018 में महमूद गजनी ने कन्नौज में तबाही मचाई। इसके बाद गुर्जर-प्रतिहार-राजपूतों ने कन्नौज को वापस मिलाया, लेकिन तब तक वो काफी कमजोर हो चुके थे। 1090 ईस्वी के बाद वहां राठौड़ वंश का शासन था।

उनके प्रतिनिधि अलखाना गुर्जर ने काबुल के ब्राह्मणशाहियों को पूर्व संरक्षण दिया। अलखाना गुर्जर के सेनापति खटाणा गुर्जर के समर्थन से ही ललिया देव ने काबुल को स्वतंत्र कराया था। उन्होंने ही कश्मीर में उत्पलवंशी अवन्तीवर्मन को वहां का शासक बनाया। ललितादित्य मुक्तापीड़ का कर्कोट वंश 850 ईस्वी आते-आते पतन को प्राप्त हो गया था। जिस प्रकार विष्णु अवतार वराह ने पृथ्वी को मुक्त कराया था, उसी तरह म्लेच्छों का विनाश कर मिहिर भोज ने देश को बचाए रखा।

सम्राट मिहिर भोज का विवाह सौराष्ट्र में ही हुआ था और भगवान सोमनाथ के प्रति उनकी बड़ी श्रद्धा थी। उन्होंने खुद अपने बेटे महेंद्र पाल के हाथ में शासन सौंप कर वानप्रस्थ आश्रम अपनाया था। अरब यात्री सुलेमान ने तो उन्हें ‘भारत में मुस्लिमों का सबसे बड़ा दुश्मन’ तक करार दिया था। उनके कारण ही भारत में घुसने में मुस्लिम शासकों को 300 वर्ष और लग गए। प्रतिहार वंश ने सहस्रबाहु मंदिर, बटेश्वर मंदिर, कुचामल किला, मिहिर किला, पडावली मंदिर और गुर्जर बावड़ी के अलावा चौंसठ योगिनी मंदिर का भी निर्माण कराया। वह विद्वानों का आदर करते थे। राज शेखर नाम के एक बड़े कवि उनके दरबार का हिस्सा थे।–

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