जनता को मुसीबत में संभालने, उन्हें राशन, पानी व स्वास्थ्य संबंधी अन्य जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराने की बजाय तालिबान सरगना राष्ट्रपति महल पर कब्जा करके किसी वैध सरकार जैसी ठसक के साथ फोटो खिंचवा रहे हैं
अफगानिस्तान में तालिबान लड़ाकों की हुकूमत में आम अफगानियों के प्रति जिहादी बर्बरता में कोई कमी नहीं दिख रही है। हालांकि कुछ अखबारों और चैनलों के जरिए यह बात फैलाने की कोशिश की गईं कि 'तालिबान 2.0 पहले वाले तालिबान नहीं हैं, ये सबको अधिकार देने की बात करता है'। लेकिन पाशविकता में शायद मजहबी लड़ाके कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। भूखों मरती और पलायन करती अफगान जनता पर तालिबान बंदूकधारी जब तब गोली दागते हैं, कोड़े बरसाते हैं। जनता को मुसीबत में संभालने, उन्हें राशन, पानी व स्वास्थ्य संबंधी अन्य जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराने की बजाय तालिबान सरगना राष्ट्रपति महल पर कब्जा करके किसी वैध सरकार जैसी ठसक के साथ फोटो खिंचवा रहे हैं। उनका फर्ज था कि वे पहले आम अफगानी में भरोसा कायम करते, उसकी जिंदगी पटरी पर लाने की चिंता करते, पर उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया है। पाकिस्तान और चीन ने 'उनके पास पैसा नहीं है, अफगान बदहाल हैं, उन्हें राहत चाहिए' के जुमलों को दुनियाभर में गुंजाने का जैसे ठेका ले रखा है। हर मंच से दोनों देश यही दोहराते दिखे हैं।
लेकिन शायद इसका असर पड़ा है संयुक्त राष्ट्र पर। वहां की सेकुलर और चीन के प्रभाव वाली लॉबी ने आखिरकार 'अफगानिस्तान के हालात पर दो दिन का जिनेवा सम्मेलन' बुलवा ही लिया। 13 सितम्बर को तालिबान से बुरी तरह परास्त हुए अमेरिका ने ही सबसे पहले 470 करोड़ रु. की मानवीय सहायता देने का वचन दिया है। ध्यान रहे, अमेरिका की उप राष्ट्रपति हैं कमला हैरिस, जिन्होंने कभी इस्लामी उन्मादियों के प्रति कड़े शब्दों का प्रयोग नहीं किया, जो अपने सेकुलर होने का दम भरती हैं। अमेरिका की देखादेखी संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने भी संगठन की तरफ से डेढ़ अरब देने की घोषणा कर दी। दुनिया के ज्यादातर समझदार और मजहबी उन्माद के जानकारों को इस फैसले से हैरानी हुई है। वे समझ गए हैं कि चीन अपनी साजिशें चलाने में कामयाब हो रहा है। उल्लेखनीय है कि चीन अब अफगानिस्तान के तालिबान लड़ाकों की हुकूमत को रिझाने और खुद को उनके पाले में दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है।
अमेरिका ने सबसे पहले 470 करोड़ रु. की मानवीय सहायता देने का वचन दिया है। ध्यान रहे, अमेरिका की उप राष्ट्रपति हैं कमला हैरिस, जिन्होंने कभी इस्लामी उन्मादियों के प्रति कड़े शब्दों का प्रयोग नहीं किया है, जो अपने सेकुलर होने का दम भरती हैं। अमेरिका की देखादेखी संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने भी संगठन की तरफ से डेढ़ अरब देने की घोषणा कर दी। दुनिया भर में मजहबी उन्माद के जानकारों को इस फैसले से हैरानी हुई है।
संयुक्त राष्ट्र संघ में अमेरिका की राजदूत लिंडा थॉम्पसन ग्रीनफील्ड ने 13 सितम्बर को कहा कि अफगानिस्तान में हालात 'बहुत गंभीर' हैं। इसलिए अमेरिका करीब 470 करोड़ रुपये की 'मानवीय सहायता' देने को तैयार है। लिंडा ने यह भी कहा कि हम अफगानिस्तान की जमीनी स्थिति का आकलन करेंगे। उसके बाद आगे की सहायता पर विचार करेंगे। लिंडा ने जिनेवा सम्मेलन में तालिबान से अपनी बात पर खरे उतरने की अपील की।
अमेरिका के साथ ही संयुक्त राष्ट्र ने भी अफगानिस्तान में 'मानवीय सहायता' के लिए दो करोड़ अमेरिकी डॉलर देने की घोषणा की। महासचिव एंतोनियो गुतारेस का कहना है कि युद्ध में उलझे देश में लोग शायद अपने सबसे जोखिमभरे वक्त का सामना कर रहे हैं। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को उनके साथ खड़े होना होगा। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान के आम जन को खाना, दवा, स्वास्थ्य सेवाओं, पीने के पानी, स्वच्छता और सुरक्षा की फौरन जरूरत है।
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