अफगानी आकाश पर अस्थिरता का
July 12, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

अफगानी आकाश पर अस्थिरता का

by WEB DESK
Sep 1, 2021, 05:59 pm IST
in भारत, दिल्ली
पंजशीर घाटी में नार्दन एलायंस के लड़ाके (फाइल चित्र)

पंजशीर घाटी में नार्दन एलायंस के लड़ाके (फाइल चित्र)

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

प्रमोद जोशी


तालिबान ने काबुल में राष्ट्रपति के महल पर कब्जा तो कर लिया परंतु यह नहीं कहा जा सकता कि पूरा अफगानिस्तान उसके कब्जे में है।  प्रतिरोधी ताकतें अभी भी सक्रिय हैं। ऐसी स्थिति में तालिबान के लिए स्थिर सरकार बना पाना तत्काल संभव नहीं दिखता है


अफगानिस्तान में तालिबानी लड़ाकों ने काबुल में प्रवेश जरूर कर लिया है, पर देश में उनके पैर अभी जमे नहीं हैं। तालिबान की विजय के बावजूद वहां स्थिरता कायम नहीं हो पाई है। सरकार बनाना मुश्किल लग रहा है। लगता है, अस्थिरता का दौर अभी चलेगा। सांविधानिक व्यवस्था को लेकर स्पष्ट निर्णय नहीं है। हालांकि तालिबान ने 1996 से 2001 तक देश पर राज किया, पर तब भी कोई संविधान आधिकारिक रूप से जारी नहीं किया था। एक दस्तावेज 1998 में बनाया गया था, पर उसकी पुष्टि कभी हुई नहीं।

    तालिबान वैसी सुगठित केंद्र्रीय इकाई नहीं है, जैसी किसी राजनीतिक समुदाय या संगठन की होती है। उसमें तमाम जातीय-कबाइली समुदाय शामिल हैं। मोटे तौर पर वह इस्लामी सुन्नी कट्टरपंथी संगठन है, जबकि देश में 15 फीसदी से ज्यादा आबादी शिया है। अपनी तादाद और इलाके के लिहाज से पश्तून सबसे बड़ा समुदाय है। फिर ताजिक, उज्बेक, हजारा और दूसरे समुदाय हैं। पहली समस्या इनके समन्वय की है, जो आसान नहीं है। कई-तरह के लेन-देन चल रहे हैं। कुछ जगहों से प्रतिरोध की खबरें भी हैं।

पंजशीर में प्रतिरोध
    कई शहरों में पिछले राष्ट्रीय-ध्वज के साथ जुलूस निकाले गए हैं। पिछले बीस साल में जन्मी पीढ़ी की राष्ट्रीय पहचान उस ध्वज से जुड़ी है। स्त्रियों की शिक्षा और कामकाज को लेकर अस्पष्टता है। राष्ट्र-निर्माण की जो प्रक्रिया अभी तक चल रही थी, वह अचानक ढलान पर उतर गई है। जहां तक प्रतिरोध की बात है, पंजशीर घाटी में नॉर्दर्न अलायंस के प्रतिरोधी स्वर सबसे तीखे हैं। पंजशीर घाटी काबुल के उत्तर में हिंदूकुश पहाड़ियों से घिरी हुई है। लम्बे अरसे से यह इलाका तालिबान-विरोधी केंद्र के रूप में देखा जाता है। यह घाटी अहमद मसूद का गढ़ मानी जाती है, जो अहमद शाह मसूद के बेटे हैं। तालिबान की तरफ से पहले कहा गया था कि अहमद मसूद ने हमसे हाथ मिला लिया है और वे प्रतिरोध नहीं करेंगे। अब खबरें हैं कि काफी बड़े सैनिक दस्ते पंजशीर घाटी की ओर रवाना भी किए गए हैं।

    क्या पंजशीर घाटी में लड़ाई होगी? पिछले सोमवार को खबर थी कि तालिबान ने नॉर्दर्न अलायंस के लोगों के हाथों से उन तीन जिलों को छुड़ा लिया है, जिनपर उन्होंने हफ्ते कब्जा कर लिया था। ये जिले हैं बागलान प्रांत के बानो, देह सालेह और पुल-ए-हेसार। तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्ला मुजाहिद ने ट्वीट किया कि हमारे सैनिक पंजशीर घाटी के पास बदख्शां, ताखर और अंदराब में जमा हो रहे हैं। दूसरी तरफ विरोधी ताकतों ने तीन सौ तालिबानी लड़ाकों को मार गिराने का दावा किया है। पर तालिबान ने इस दावे को गलत बताया है।

    समाचार एजेंसी एएफपी ने तालिबानी सूत्रों के हवाले से बताया है कि उनके लड़ाके पंजशीर की ओर भेजे गए हैं। बीबीसी उर्दू सेवा ने तालिबान सूत्रों के हवाले से बताया है कि कमांडर कारी फसीहुद्दीन इन दस्तों का नेतृत्व कर रहा है। इसके जवाब में अहमद मसूद के सैनिकों ने मोर्चाबंदी कर ली है। इसके एक दिन पहले तालिबान की अलमाराह सूचना सेवा ने दावा किया था कि सैकड़ों तालिबानी सैनिक पंजशीर की ओर गए हैं। जबीउल्ला मुजाहिद ने दावा किया कि दक्षिणी अफगानिस्तान से उत्तर की ओर जाने वाले मुख्य हाईवे पर सलांग दर्रा खुला हुआ है और दुश्मन की सेना पंजशीर घाटी में घिर गई है। बहरहाल इस इलाके से किसी लड़ाई की खबर नहीं है।

क्या है अहमद मसूद की योजना
    अहमद शाह मसूद का बेटा अहमद मसूद इस सेना का नेतृत्व कर रहा है। वह करिश्माई नेता हैं। उनके साथ अफगानिस्तान सरकार के उपराष्ट्रपति अमीरुल्ला सालेह भी हैं। अमीरुल्ला सालेह तालिबान और पाकिस्तान के गठजोड़ के सबसे मुखर आलोचक रहे हैं। तालिबान उन्हें निशाना बनाते भी रहे हैं। 2019 में उन पर कई आत्मघाती हमले हुए थे, जिनमें सालेह के 20 से ज्यादा सहयोगियों की मौत हो गई थी। पंजशीर की सेना में अफगान सेना के ताजिक मूल के सैनिक भी आ मिले हैं। अमीरुल्ला सालेह ने तालिबान को आगाह किया है कि वह इधर आने से बचे। स्पष्ट नहीं है कि अहमद मसूद का इरादा क्या है। वे काबुल सरकार में हिस्सेदारी चाहते हैं या अपनी स्वतंत्र हैसियत रखना चाहते हैं।

    उन्होंने एक वीडियो साक्षात्कार में तालिबान से कहा है कि वे समावेशी सरकार बनाएं। समझौता हुआ, तो हम सब सरकार में शामिल होंगे। ऐसा नहीं हुआ, तो बात सिर्फ पंजशीर की नहीं रहेगी। अफगानिस्तान की महिलाएं, नागरिक समाज, नौजवान पीढ़ी और जनता प्रतिरोध करेगी। ताकत के जोर से राष्ट्रपति महल पर कब्जा करने का मतलब यह नहीं है कि आपने जनता के दिलों को जीत लिया है। तालिबान के एक प्रवक्ता ने काबुल में दावा किया था कि उनकी पंजशीर घाटी के लोगों से बातचीत हो रही है और जल्द पंजशीर घाटी पर शांतिपूर्ण तरीके से हमारा कब्जा हो जाएगा।

पंजशीर का शेर
    अहमद शाह मसूद को ‘पंजशीर का शेर’ कहा जाता है। उन्होंने 1979 में रूसी सेना और फिर तालिबानियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। आईएसआई के सहयोग से तालिबान ने 9 सितम्बर, 2001 को धोखे से उनकी हत्या करवा दी थी। उनकी हत्या के दो दिन बाद ही न्यूयॉर्क में ट्विन टावर्स पर अल कायदा ने हमला बोला था। इसके बाद जब अमेरिकी सेना ने तालिबान पर आक्रमण किया। तब नॉर्दर्न अलायंस ने अमेरिकी सेना का साथ दिया था। बहरहाल अभी विशेषज्ञ यह कहने की स्थिति में नहीं हैं कि इस समय नॉर्दर्न अलायंस में उतना दमखम है या नहीं कि वह तालिबान से मुकाबला कर पाए।

    तालिबान का दावा है कि उसने पंजशीर घाटी की सप्लाई लाइन बंद कर दी है। हालांकि पंजशीर घाटी में प्रवेश करना बेहद मुश्किल है, पर तालिबान की ताकत इस समय काफी ज्यादा है। हाल में वॉशिंगटन पोस्ट ने अहमद मसूद का एक लेख प्रकाशित किया है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि हमारे सैनिक लड़ाई के लिए तैयार हैं, पर हमें हथियार और फौजी सामग्री की जरूरत है। हमें अंतरराष्ट्रीय समर्थन चाहिए।

जीत नहीं, साजिश
    अहमद मसूद ने तालिबान को मिली आसान विजय के पीछे साजिश का आरोप लगाया है। ब्रिटिश अखबार फाइनेंशियल टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अहमद मसूद को हैरत है कि देश के तमाम ऐसे वॉर लॉर्ड यानी कबाइली सरदारों ने तालिबान के सामने हथियार डाल दिए, जिनसे उम्मीद थी कि वे लड़ेंगे। अशरफ गनी और अमेरिकी दूत जलमय खलीलजाद को स्पष्ट करना चाहिए कि आखिर हुआ क्या है। मेरी समझ से यह सरकार के भीतर से हुई बगावत है।

    काबुल के पतन से पहले तक हेरात और बल्ख प्रांतों से प्रतिरोध की खबरें आ रही थीं। बल्ख के पुराने गवर्नर अता मुहम्मद नूर और पूर्व उपराष्ट्रपति अब्दुल रशीद दोस्तम ने मजारे-शरीफ का मोर्चा संभाल रखा था। वहां भी सेना ने अचानक हथियार डाल दिए थे। इस पर नूर ने सोशल मीडिया पर लिखा कि ‘यह संगठित साजिश है। उन्होंने मुझे और मार्शल दोस्तम को फंसाने का षड्यंत्र रचा है। वे सफल नहीं हो पाएंगे।’ अब्दुल रशीद दोस्तम और अता मोहम्मद नूर देश छोड़कर चले गए हैं।

    फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार देश के कई ताकतवर नेता बिखर गए हैं। मसलन हेरात में इस्माइल खां ने तालिबान के सामने समर्पण कर दिया। सरकार के कई पुराने नेताओं ने तालिबान के साथ सम्पर्क स्थापित किया है। इनमें हामिद करजई और अब्दुल्ला अब्दुल्ला शामिल हैं। शायद वे नई सरकार में कोई पद हासिल करेंगे। कहने का मतलब यह कि अशरफ गनी सरकार के सदस्यों की दो तरह की प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं। कुछ प्रतिरोध में जा रहे हैं और कुछ नई सरकार में शामिल होने के इच्छुक हैं।

अराजकता का आलम
    अहमद मसूद हाल में पाकिस्तान गए अफगान शिष्टमंडल में शामिल थे। इस दल में पुराने नॉर्दर्न अलायंस से जुड़े लोग थे। यह दल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से मिला था। उन्होंने इमरान खान से कहा था कि वे तालिबान को समझाएं कि वे पंजशीर पर हमला न करें और ऐसी सरकार बनाएं, जिसमें सभी समुदायों के लोग हों। ऐसा हुआ, तो देश में खून-खराबा नहीं होगा। आज हालत यह है कि काबुल में न तो दफ्तर खुले हैं, न सरकारी कर्मचारियों को वेतन मिला है, कर्मचारी हैं ही नहीं। ऐसे तो नहीं चलेगा।

    उधर देश के पूर्व उपराष्ट्रपति अमीरुल्ला सालेह ने काबुल पर तालिबानी कब्जे और अशरफ गनी के पलायन के बाद ट्वीट किया कि राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में मैं देश का कार्यवाहक राष्ट्रपति हूं। मैं देश में ही हूं। हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि वे कहां हैं, पर अनुमान था कि वे पंजशीर में हैं। सालेह ने लिखा कि अब राष्ट्रपति बाइडेन से बहस का कोई मतलब नहीं रह गया है। उन्होंने यह भी लिखा कि अफगानिस्तान वियतनाम नहीं है और तालिबान ‘वियतकांग’ की धूल के बराबर भी नहीं है। वियतनाम के लड़ाकों को ‘वियतकांग’ कहा जाता था। सालेह ने यह भी लिखा कि अमेरिका और नाटो की तरह से हमने मनोबल खोया नहीं है। हम प्रतिरोध करेंगे। देश के दूसरे उपराष्ट्रपति सरवर दानिश इस्तांबुल चले गए हैं। हजारा समुदाय के दानिश ने काबुल के पतन के बाद कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है।

प्रतिरोध का केंद्र
    इस क्षेत्र के एक और प्रमुख नेता हैं मोहम्मद जहीर अगबर (या अकबर), जो अभी तक ताजिकिस्तान में अफगानिस्तान के राजदूत थे और अहमद मसूद के परिवार के अच्छे दोस्त हैं। उन्होंने हाल में न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा था कि यदि तालिबान एक समावेशी सरकार बनाते हैं, तब हम उनके साथ हैं। पर यदि वे हमारे इलाके पर कब्जा करना चाहते हैं, तो उनके लिए यह मुश्किल होगा। इन बातों का मतलब यही है कि पंजशीर के लोग अपनी अलग पहचान बनाए रखना चाहते हैं और तालिबान की अधीनता नहीं, उनके साथ बराबरी चाहते हैं। क्या ऐसा सम्भव होगा? प्रतिरोध करने वालों में बिस्मिल्ला मुहम्मदी का नाम भी है, जो गनी सरकार में रक्षा मंत्री थे। वे अब गनी से नाराज हैं और इस पराजय के लिए उन्हें जिम्मेदार मानते हैं। खबरें हैं कि वे भी अहमद मसूद और सालेह के साथ पंजशीर में हैं।

    जुलाई में जब तालिबानी सैनिक देश के अलग-अलग प्रांतों पर काबिज हो रहे थे, तब हेरात से खबरें आर्इं कि वहां के प्रमुख कबाइली नेता इस्माइल खान ने अपने इलाके की सुरक्षा का जिम्मा लिया है। उन्होंने करीब एक महीने तक तालिबान का मुकाबला किया। वे काबुल से कुमुक आने का इंतजार करते रहे, जो नहीं आई और 12 अगस्त को हेरात पर तालिबान का कब्जा हो गया। इस्माइल खान को तालिबान की हिरासत में ले लिया गया था। बाद में तालिबान ने दावा किया कि वे हमारे साथ मिल गए हैं। दूसरी तरफ ऐसी भी खबरें थीं कि वे 15 अगस्त को ईरान चले गए। कहा यह भी जा रहा है कि वे दोहा चले गए हैं, जहां सरकार बनाने को लेकर बातचीत जारी है।

सांविधानिक व्यवस्था
    हालांकि तालिबान ने देश को ‘इस्लामिक-अमीरात’ घोषित किया है, पर इससे बात तब तक स्पष्ट नहीं होती, जब तक उसे परिभाषित न किया जाए। इसके पहले अफगानिस्तान ‘इस्लामिक गणराज्य’ था। गणराज्य का अर्थ होता है, जिस व्यवस्था में राष्ट्राध्यक्ष प्रत्यक्ष या परोक्ष तरीके से जनता द्वारा चुना गया हो। ‘इस्लामिक-अमीरात’ में क्या होगा, स्पष्ट नहीं है। उसने अपनी सांविधानिक व्यवस्था को कभी स्पष्ट नहीं किया। यह कहा गया कि हमने एक संविधान बनाया है, पर उसे जारी कभी नहीं किया गया।

    देश में अब अचानक नई व्यवस्था आ गई है, इसलिए सबसे बड़ा संकट सांविधानिक है। प्रशासनिक-व्यवस्था क्या है, अदालतों की स्थिति क्या है और देश की वित्तीय योजना क्या है, ऐसे सवाल अब उठ रहे हैं। 29 फरवरी, 2020 को अमेरिकी सरकार और तालिबान के बीच जो समझौता हुआ था, उसमें विदेशी सेनाओं की वापसी और बदले में तालिबान की ओर से आतंकी संगठनों पर लगाम लगाने की गारंटी शामिल है। पर उसमें इस बात का उल्लेख नहीं है कि देश की भावी राज-व्यवस्था कैसी होगी।

संविधान का मसौदा
    1998 में तालिबान के तत्कालीन नेता मुल्ला मुहम्मद उमर ने नए संविधान की रचना करने के लिए देशभर से 500 इस्लामिक विद्वानों को एकत्र किया था। तीन दिन के विमर्श के बाद 14 पेज का एक दस्तावेज तैयार किया गया था। हालांकि उस दस्तावेज की पुष्टि कभी हुई नहीं, पर जो विवरण सामने आया था उसके अनुसार सत्ता एक ‘अमीर-उल-मोमिनीन’ या मजहबियों (मुसलमानों) के नेता में निहित होगी। उस समय इस पद पर मुल्ला उमर थे, जो धार्मिक और राजनीतिक नेता थे। यह नेता किस तरह चुना जाएगा और कितने समय के लिए चुना जाएगा, यह स्पष्ट नहीं था। पर यह कहा गया था कि सर्वोच्च नेता पुरुष होगा और सुन्नी मुसलमान।

    ‘संविधान के मसौदे’ के अनुसार ‘अमीर-उल-मोमिनीन’ एक काउंसिल का मनोनयन करेगा, जो विधायिका और कार्यपालिका का काम करेगी। एक मंत्रिपरिषद होगी, जो इस काउंसिल के प्रति जवाबदेह होगी। ‘संविधान’ के अनुसार सुन्नी इस्लाम देश का आधिकारिक मजहब होगा। इसमें यह भी कहा गया कि देश का कोई भी कानून इस्लामिक शरिया के विरुद्ध नहीं होगा। ‘संविधान के मसौदे’ में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, स्त्रियों की शिक्षा और न्यायालयों में निष्पक्ष सुनवाई के अधिकारों की व्यवस्था की गई थी, पर वे सब शरिया कानून की कठोर तालिबानी परिभाषा के तहत होंगे।

    तालिबान ने टीवी और संगीत पर रोक लगा दी थी, पुरुषों के लिए नमाज और दाढ़ी बढ़ाना अनिवार्य था, तो स्त्रियों को सिर से एड़ी तक अपने शरीर को ढकना जरूरी था। स्त्रियों और लड़कियों के स्कूल या काम पर जाने पर रोक थी। दंड व्यवस्था के तहत चोरों के हाथ काटने, शराब पीने पर सार्वजनिक रूप से कोड़े लगाने और व्यभिचार की सजा पत्थर मारकर जान लेने की थी। सजाएं देना आम था। यह संविधान कभी सार्वजनिक रूप से लागू नहीं हुआ, पर जब 2004 में ‘अफगानिस्तान गणराज्य’का संविधान लागू हुआ, तब उसके बाद 2005 में ‘इस्लामिक अमीरात’ या तालिबान ने इसे जारी किया, पर उसके बाद से इसका जिक्र नहीं हुआ। अब देखना यह है कि देश का ‘संविधान’ यही होगा या इसकी व्यवस्थाओं में कोई बदलाव होगा।

     (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

 

Share1TweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

नेशनल हेराल्ड घोटाले में शिकंजा कस रहा सोनिया-राहुल पर

‘कांग्रेस ने दानदाताओं से की धोखाधड़ी’ : नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी का बड़ा खुलासा

700 साल पहले ‘मंदिर’ में पहचान छिपाकर रहने वाला ‘मुस्लिम जोगी’ और इब्न बतूता

Loose FASTag होगा ब्लैकलिस्ट : गाड़ी में चिपकाना पड़ेगा टैग, नहीं तो NHAI करेगा कार्रवाई

Marathi Language Dispute

‘मराठी मानुष’ के हित में नहीं है हिंदी विरोध की निकृष्ट राजनीति

यूनेस्को में हिन्दुत्त्व की धमक : छत्रपति शिवाजी महाराज के किले अब विश्व धरोहर स्थल घोषित

मिशनरियों-नक्सलियों के बीच हमेशा रहा मौन तालमेल, लालच देकर कन्वर्जन 30 सालों से देख रहा हूं: पूर्व कांग्रेसी नेता

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

नेशनल हेराल्ड घोटाले में शिकंजा कस रहा सोनिया-राहुल पर

‘कांग्रेस ने दानदाताओं से की धोखाधड़ी’ : नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी का बड़ा खुलासा

700 साल पहले ‘मंदिर’ में पहचान छिपाकर रहने वाला ‘मुस्लिम जोगी’ और इब्न बतूता

Loose FASTag होगा ब्लैकलिस्ट : गाड़ी में चिपकाना पड़ेगा टैग, नहीं तो NHAI करेगा कार्रवाई

Marathi Language Dispute

‘मराठी मानुष’ के हित में नहीं है हिंदी विरोध की निकृष्ट राजनीति

यूनेस्को में हिन्दुत्त्व की धमक : छत्रपति शिवाजी महाराज के किले अब विश्व धरोहर स्थल घोषित

मिशनरियों-नक्सलियों के बीच हमेशा रहा मौन तालमेल, लालच देकर कन्वर्जन 30 सालों से देख रहा हूं: पूर्व कांग्रेसी नेता

Maulana Chhangur

कोडवर्ड में चलता था मौलाना छांगुर का गंदा खेल: लड़कियां थीं ‘प्रोजेक्ट’, ‘काजल’ लगाओ, ‘दर्शन’ कराओ

Operation Kalanemi : हरिद्वार में भगवा भेष में घूम रहे मुस्लिम, क्या किसी बड़ी साजिश की है तैयारी..?

क्यों कांग्रेस के लिए प्राथमिकता में नहीं है कन्वर्जन मुद्दा? इंदिरा गांधी सरकार में मंत्री रहे अरविंद नेताम ने बताया

VIDEO: कन्वर्जन और लव-जिहाद का पर्दाफाश, प्यार की आड़ में कलमा क्यों?

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies