हजारीबाग के विधायक मनीष जायसवाल ने लोभ—लालच से हिंदुओं को ईसाई बनाने वालों के विरुद्ध संघर्ष करने की घोषणा की है। इसके साथ ही उन्होंने ईसाई बन चुके महेश हेम्ब्रम को फिर से हिंदू बनने के लिए राजी किया। जब महेश फिर से हिंदू बने तो विधायक ने उनके पैर छूकर उनका स्वागत किया
—वेब डेस्क
इन दिनों झारखंड के हजारीबाग में कन्वर्जन करने वाले ईसाई मिशनरियों के विरुद्ध लोगों में जबर्दस्त उबाल दिख रहा है। स्थानीय विधायक मनीष जायसवाल ने कन्वर्जन करने वालों के विरुद्ध आवाज उठाई है। गत दिनों मनीष जायसवाल ने दिग्वार पंचायत के चानो खुर्द गांव में महेश हेम्ब्रम नामक एक व्यक्ति के पैर छुए और उनसे आग्रह किया कि वे हिंदू ही रहें। इसके साथ ही उन्होंने महेश के गले से सलीब उतार दिया।
बता दें कि कोरोना काल के दौरान इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोगों को लोभ—लालच से ईसाई बनाया गया है। महेश हेम्ब्रम को भी कुछ दिन पहले ही ईसाई बनाया गया था। उस दिन मनीष अपने क्षेत्र के दौरे पर थे और उन्होंने इसी दौरान कन्वर्जन करने वालों के विरुद्ध हुंकार भरते हुए कहा कि किसी को भी लोभ—लालच से ईसाई बनाया जाएगा तो उसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मनीष जायसवाल ने बताया कि कन्वर्जन के मूल में दारू प्रखंड स्थित पिपचो मिशन स्कूल है। उन्होंने यह भी बताया कि इस समय स्कूल में केरल की 12 शिक्षिकाएं हैं और लगभग 400 बच्चे हैं। इन्हीं शिक्षिकाओं के जरिए पूरे क्षेत्र में कन्वर्जन का काम किया जा रहा है। मनीष ने यह भी बताया कि जब से हेमंत सोरेन की सरकार बनी है, तब से झारखंड में ईसाई मिशनरियां बेलगाम हो चुकी हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि मिशनरियों को राज्य सरकार का समर्थन मिल रहा है।
मनीष जायसवाल से पहले ईसाई मिशनरियों के विरुद्ध बोलने की हिम्मत 75 वर्षीया मंझली मरांडी ने दिखाई थी। उल्लेखनीय है कि मंझली मरांडी के दो बेटे हैं—बादल मरांडी और मोहन मरांडी। लगभग 18 महीने पहले लोभ देकर इन दोनों को ईसाई बना दिया गया था। इसके बाद मंझली मरांडी पर भी ईसाई बनने का दबाव डाला जा रहा था। दबाव से परेशान मंझली मरांडी ने पिछले दिनों ईसाई मिशनरियों को फटकार लगाते हुए कहा था, ''मैं जन्म से हिंदू हूं और अंतिम सांस तक हिंदू ही रहूूंगी। बजरंग बली हमारे देवता हैं।'' उन्होंने यह भी कहा था, ''हम अपना धर्म स्वयं तय नहीं कर सकते। भगवान ने हमें हिंदू धर्म में जन्म दिया है, तो हम आजीवन हिंदू ही रहेंगे। मुझे मेरे धर्म से कोई डिगा नहीं सकता। लोभ में पड़कर किसी को भी अपना धर्म नहीं बदलना चाहिए।'' उनकी इस दृढ़ता के सामने उनके दोनों बेटे झुक गए और पुन: हिंदू बन गए हैं। अब लोग मंझली मरांडी को आदर्श मानने लगे हैं और जो लोग ईसाई बन चुके हैं, वे फिर से हिंदू बन रहे हैं।
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