पंजाब कांग्रेस में चल रही उठापटक के बीच हालांकि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बाजी मार ली है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सिद्धू चुपचाप बैठे रहेंगे। पंजाब का झगड़ा राज्य के प्रभारी हरीश रावत पर भी भारी पड़ रहा है।
पंजाब कांग्रेस में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के बीच झगड़ा थम नहीं रहा है। स्थिति यह है कि झगड़ा सुलझाने वाले प्रदेश प्रभारी हरीश रावत खुद ही उलझन में उलझ गए हैं। इसलिए अब स्वास्थ्य कारणों और उत्तराखंड की जिम्मेदारियों की दुहाई देकर वह पंजाब प्रभारी के दायित्व से छुटकारा चाहते हैं।
दरअसल, जब यह झगड़ा पंजाब प्रभारी हरीश रावत के दरबार तक पहुंचा, तो उन्होंने इसे सुलझाने की हर संभव कोशिश की। इसके लिए उन्होंने सिद्धू को धमकाया भी कि वे तत्काल अपने सलाहकारों को बर्खास्त करें, नहीं तो यह काम वह खुद कर देंगे। लेकिन धमकाने के बावजूद भी सिद्धू ने अभी तक अपने सलाहकारों को हटाया नहीं है। इधर, गुरुवार को कैप्टन अमरिंदर सिंह ने गुपचुप तरीके से पार्टी नेताओं को दावत पर बुलाया। मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के करीबी खेल मंत्री राणा गुरमीत सिंह सोढ़ी के घर पर हुई इस सियासी दावत का उद्देश्य एक तरह से शक्ति प्रदर्शन था। इस बैठक में पार्टी के 60 विधायकों और 8 सांसदों के अलावा चुनाव हार चुके 30 नेता भी शामिल हुए। खास बात यह रही कि इस दावत में सिद्धू खेमे के 10 विधायक भी मौजूद थे।
इसी डिनर डिप्लोमेसी के दौरान नेताओं ने कैप्टन अमरिंदर के समर्थन में प्रस्ताव पारित किया कि 2022 में उन्हीं के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा। इससे पहले हरीश रावत ने भी कह दिया था कि अगला चुनाव कैप्टन अमरिंदर के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। पंजाब में सत्तारूढ़ कांग्रेस के पास 80 विधायक हैं। जिनमें से अब केवल 20 विधायक ही सिद्धू के खेमे में बचे हैं। इनमें 4 कैबिनेट मंत्री भी शामिल हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह की पूरी कवायद पार्टी नेतृत्व पर दबाव बनाने की है। बहुमत का आंकड़ा दिखाते हुए मुख्यमंत्री खेमे के समर्थक अब पार्टी नेतृत्व से 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाने की मांग करेंगे।
फिलहाल के लिए तो कैप्टन अमरिंदर सिंह प्रदेश अध्यक्ष सिद्धू पर हावी दिख रहे हैं, लेकिन आने वाले समय में यह झगड़ा और गंभीर होगा। असली लड़ाई टिकट बंटवारे को लेकर होगी। वास्तव में कैप्टन अमरिंदर सिंह के विरोध के बावजूद सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बना कर कांग्रेस ने सूबे में नया नेतृत्व तैयार करने की कोशिश की है। लेकिन पार्टी की यह चाल अब उसके लिए गले की हड्डी बन गई है। एक तो इससे पार्टी की छीछालेदर हो रही है, दूसरी ओर उत्तराखंड पर भी इस झगड़े की आंच आ सकती है। इसलिए हरीश रावत इस झंझट से छुटकारा चाहते हैं ताकि वे अपना ध्यान उत्तराखंड में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार को घेरने और अगले चुनाव की तैयारियों में लगा सकें।
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