मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ राजद के तेजस्वी यादव
जाति आधारित जनगणना की मांग को लेकर बिहार में जारी राजनीति दिल्ली तक पहुंच गई। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में 11 सदस्यीय सर्वदलीय प्रतिनिमंडल प्रधानमंत्री से मिला।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में जातीय जनगणना के मुद्दे पर 11 सदस्यीय सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिला। मुलाकात के दौरान प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री के समक्ष जाति आधारित जनगणना कराने की मांग रखी। बैठक के बाद सभी दलों के नेताओं ने कहा कि बिहार को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री जाति आधारित जनगणना पर विचार करेंगे।
सुबह 11 बजे प्रधानमंत्री से मुलाकात करने वालों में नीतीश कुमार के अलावा विभिन्न दलों के 10 नेता शामिल थे। मुलाकात के बाद नीतीश कुमार ने कहा कि सभी दलों के नेताओं ने प्रधानमंत्री के समक्ष मुद्दे पर अपनी बात रखी, जिसे उन्होंने ध्यान से सुना है। उन्होंने इसे नकारा नहीं है। लेकिन वे इस पर क्या फैसला लेते हैं, अब इसका इंतजार रहेगा।
मिले सुर मेरा, तुम्हारा
दिलचस्प बात यह है कि जातीय जनगणना के मुद्दे पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद नेता तेजस्वी यादव के सुर एक हैं। नीतीश कुमार ने कहा कि हमने प्रधानमंत्री से कहा कि जाति आधारित जनगणना से एससी-एसटी, ओबीसी, ईबीसी और अल्पसंख्यकों के बारे में विस्तार से जानकारी मिल जाएगी। इससे विकास को लेकर फैसला लेने में मदद मिलेगी। साथ ही, उन्होंने कहा कि जातिगत जनगणना को लेकर बिहार विधानमंडल से दो बार सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया जा चुका है। इस बारे में भी प्रधानमंत्री को अवगत करा दिया गया है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने अन्य दलों के नेताओं के साथ मुझसे मुलाकात की थी और इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री से मुलाकात का प्रस्ताव रखा था। इसी के बाद प्रधानमंत्री से समय मांगा गया था।
वहीं, राजद के तेजस्वी यादव ने कहा कि यह बैठक बहुत जरूरी थी। हमने सभी बातों से प्रधानमंत्री को अवगत करा दिया है। उम्मीद है कि वे इसके पक्ष में निर्णय लेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि आखिरी बार जातीय जनगणना 1931 में हुई थी। इससे पहले हर दस साल बाद जातीय जनगणना होती रही। जनगणना से सही आंकड़े सामने आएंगे, जिससे हम लोगों के लिए बजट में योजना बना सकते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री और हम के संस्थापक जीतन राम मांझी ने कहा कि हमने प्रधानमंत्री से कहा है कि हर हालत में जातिगत जनगणना कराएं। यह ऐतिहासिक निर्णय होगा। उन्होंने हमारी बात बहुत गंभीरता से सुनी है, इसलिए लगता है कि जल्दी ही कोई निर्णय होगा।
क्यों उठ रही जातिगत जनगणना की मांग?
दरअसल, केंद्र सरकार ने हाल ही में संसद में यह स्पष्ट किया है कि इस बार जाति आधारित जनगणना नहीं होगी और केवल एससी-एसटी की ही गिनती की जाएगी। इसी के बाद से बिहार के नेताओं की बेचैनी बढ़ी हुई है। इसीलिए सभी दलों ने मुलाकात के लिए प्रधानमंत्री से समय मांगा। इससे पहले राज्यसभा सांसद एवं भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने कहा कि भाजपा कभी जातीय जनगणना के विरोध में नहीं रही। इसलिए हम इस मुद्दे पर विधानसभा और विधान परिषद में पारित प्रस्ताव का हिस्सा रहे हैं। उन्होंने कहा कि 2011 में भाजपा के गोपीनाथ मुंडे ने संसद में जातीय जनगणना के पक्ष में पाटी का पक्ष रखा था। इसके बाद तत्कालीन केंद्र सरकार के निर्देश पर ग्रामीण विकास और शहरी विकास मंत्रालयों ने जब सामाजिक, आर्थिक, जातीय सर्वेक्षण कराया, तो उसमें काफी त्रुटियां मिलीं। इन गड़बडि़योंके कारण रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई। हालांकि वह जनगणना का हिस्सा नहीं थी।
ये थे प्रतिनिधिमंडल में
प्रतिनिधिमंडल में नीतीश कुमार के अलावा जदयू के विजय कुमार चौधरी, राजद के तेजस्वी यादव, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के जीतनराम मांझी, विधानसभा में कांग्रेस के नेता अजीत शर्मा, सीपीआई (माले) के नेता महबूब आलम, एआईएमआईएम के अखतारुल इमाम, सीपीआई के सूर्यकांत पासवान, सीपीएम के अजय कुमार, वीआईपी के मुकेश साहनी और भाजपा नेता और नीतीश सरकार में मंत्री जनक राम शामिल थे।
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