उत्तराखंड के चंपावत जिले के बाराहीधाम देवीधुरा में हर साल रक्षा बंधन के दिन पत्थर मार बग्वाल युद्ध होता है। देश में अपनी तरह का अनूठा युद्ध है यह
उत्तराखंड के चंपावत जिले के बाराहीधाम देवीधुरा में हर साल रक्षा बंधन के दिन पत्थर मार बग्वाल युद्ध होता है। देश में अपने तरह के इस अनोखे बगवाल युद्ध की अवधि करीब आठ मिनट रही। इस दौरान चार खाम और सात थोकों के रणबांकुरों में से 77 बगवाली वीर चोटिल हो गए। जो लोग घायल हुए उनका रक्त मां बाराही को अर्पित माना जाता है।
कहते हैं कि सालों पहले यहां बलि की प्रथा थी। चार गांव बारी—बारी से एक नर बलि देते थे। एक बार एक वृद्धा के पुत्र की बारी आ गयी। दो गांवों ने इसका विरोध किया तो लड़ने झगड़ने पर उतारू हो गए। दोनों पक्षों में मंदिर परिसर में पथराव हुआ। दोनों पक्षों का रक्त बहता देख मंदिर पुजारी ने बीच में आकर आपसी संघर्ष रोक दिया। और जिनका रक्त बहा उसे माता बाराही को अर्पित मान लिया। तब से हर रक्षाबंधन के दिन यही परंपरा चली आ रही है। देवीधुरा के दो दो गांव आमने—सामने होकर पत्थर युद्ध करते हैं। इसी युद्ध को बगवाल कहा जाता है।
हर साल इस युद्ध को देखने हजारों लोग देवीधुरा पहुंचते हैं। कोरोना महामारी के कारण लगातार दूसरे वर्ष भी दर्शकों की संख्या बेहद कम रही। वहीं बगवाल युद्ध में 300 से अधिक रणबांकुरों ने प्रतिभाग किया। सुबह दस बजे सबसे पहले गहरवाल खाम के योद्धाओं ने बाराही मंदिर की परिक्रमा की। उसके बाद लमगडिय़ा खाम के योद्धा मंदिर में पहुंचे। जबकि बालिक और चम्याल खाम के योद्धा सबसे अंत में मंदिर की परिक्रमा को पहुंचे। चारों खामों के मंदिर परिसर में स्थित खोलीखांड दुर्बाचौड़ मैदान में पहुंचने के बाद मंदिर के पुजारी के संकेत के बाद बगवाल युद्ध शुरू हो गया। इस बार प्रशासन की सख्ती के कारण बगवाल मेले में दर्शकों की आवाजाही प्रतिबंधित होने के कारण बहुत कम लोग बगवाल देखने को पहुंचे। बाद में बगवाल युद्ध में चोटिल हुए लोगों का मंदिर परिसर में ही उपचार किया गया।
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