झारखंड में ईसाइयों द्वारा किए जा रहे कन्वर्जन का असर यह हुआ है कि राज्य में 60 साल में जनजातियों की संख्या लगभग 10 प्रतिशत कम हो गई है। जानकार कह रहे हैं कि कन्वर्जन के अलावा सही खान—पान, बेरोजगारी और जागरूक न रहने के कारण जनजातियों की आबादी कम हो रही है।
झारखंड में ईसाई मिशनरी के लोग लोभ—लालच से जनजातियों को ईसाई बनाने का काम कर रहे हैं। इसका असर अब दिखने लगा है। एक रपट के अनुसार झारखंड में जनजातियों की जनसंख्या तेजी से गिर रही है। 60 वर्ष में जनजातियों की संख्या लगभग 10 प्रतिशत कम हो गई है। 1951 की जनगणना के अनुसार दक्षिण बिहार, जिसे अब झारखंड कहा जाता है, में रहने वाले जनजातियों की संख्या कुल आबादी का 35.8 प्रतिशत थी। 40 वर्ष में इसमें लगभग आठ प्रतिशत की गिरावट आई।
इस कारण 1991 में जनजातियों की जनसंख्या 27.66 प्रतिशत रह गई थी। इसके बाद 2001 में 26.30 प्रतिशत और 2011 में घटकर 26.11 प्रतिशत हो गया। इसका मतलब तो यही निकलता है कि 60 साल में जनजातियों की संख्या में लगभग 10 प्रतिशत की गिरावट आई। चिंता की बात यह है कि इसमें आदिम जनजातियों की संख्या में अधिक गिरावट देखी गई है। 2001 में आदिम जनजातियों की संख्या जहां 3,87,000 थी, वहीं 2011 में इनकी आबादी 2,92,000 हो गई।
अब लोग 2021 की जनगणना की इंतजार कर रहे हैं। कांग्रेस के पूर्व विधायक प्रकाश उरांव कहते हैं कि जनगणना सही तरीके से न होने के कारण जनजाति समाज के लोगों का पूरा विवरण देश के सामने नहीं आ पाता है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जनजातियों में अपने अधिकारों के प्रति जनगरूकता की भी कमी है, इसका असर भी उन पर हो रहा है। वहीं सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. निर्मल सिंह का मानना है कि जनजातियों की आबादी कम होने का सबसे बड़ा कारण है कन्वर्जन। उन्होंने यह भी कहा कि ईसाई के साथ—साथ मुसलमान भी जनजातियों का कन्वर्जन कर रहे हैं।
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