कोई छुपी बात नहीं है महिलाओं के प्रति तालिबान की बर्बरता (फाइल चित्र)
तालिबानी घर-घर जाकर लड़कियों को इसलिए उठा रहे हैं ताकि वे उनके बर्बर लड़ाकों की 'सेक्स गुलाम' बनकर रहें। तालिबानी महिलाओं को अगवा करके उनसे जबरन निकाह रचा रहे हैं।
एक तरफ तो तालिबानी जिहाद अफगानिस्तान को निगलते जा रहे हैं, तो दूसरी ओर अपने कब्जे में आए गांवों शहरों में मध्ययुगीन सोच और बर्बरता को लौटा रहे हैं। तालिबान के द्वारा पिछले दिनों कब्जाए कुछ इलाकों से आई रिपोर्ट चिंता और आक्रोश पैदा करने वाला है। इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अफगानिस्तान में उनके कब्जाए इलाकों के नेताओं को कुछ दिन पहले वहां की 12 साल की लड़कियों से लेकर 45 साल तक की महिलाओं की सूची देने का दबाव डाला गया था। इधर तालिबानी जिहादी इलाकों पर कब्जे करना जारी रखे हैं और इधर महिलाओं और लड़कियों में खौफ बढ़ता जा रहा है। 12 साल से ऊपर की बच्चियों को उनके घरों में घुसकर उनके माता—पिता के सामने जबरन ले जाया जा रहा है। दैनिक द सन की मानें तो तालिबानी घर-घर जाकर लड़कियों को इसलिए उठा रहे हैं ताकि वे उनके बर्बर लड़ाकों की 'सेक्स गुलाम' बनकर रहें।
अफगानिस्तान में अपने कब्जाए इलाकों में तालिबानी जिहादी महिलाओं को अगवा करके उनसे जबरन निकाह रचा रहे हैं। यह इलाकों में शरिया लागू होने के संकेत देता है और वहां बन रही डरावनी परिस्थिति की झलक देता है। इतना ही नहीं, महिलाएं बिना पुरुष को साथ लिए घरों से नहीं निकल सकतीं। उनका हिजाब पहने रहना जरूरी कर दिया गया है।
सूत्रों के हवाले से खबर है कि अफगानिस्तान में अपने कब्जाए इलाकों में तालिबानी जिहादी महिलाओं को अगवा करके उनसे जबरन निकाह रचा रहे हैं। ब्लूमबर्ग की खबर है कि ऐसा होना कब्जाए इलाकों में शरिया लागू होने के संकेत देता है और वहां बन रही डरावनी परिस्थिति की झलक देता है। इतना ही नहीं, महिलाएं बिना पुरुष को साथ लिए घरों से नहीं निकल सकतीं। उनका हिजाब पहने रहना जरूरी कर दिया गया है।
कब्जाए इलाकों में ज्यादातर स्कूलों और कारोबारों को तहस-नहस कर दिया गया है। फरमान है कि जिन स्कूलों में पढ़ाने वाली महिला हों उन्हीं स्कूलों में लड़कियों को भेजा जाए। तालिबानी जिहादियों ने आगाह किया है कि जो भी इन कायदों को नहीं मानेगा उसका बुरा हाल किया जाएगा। जो महिलाएं वहां से भाग निकलने में काबिल हैं वे उन इलाकों से जा रही हैं। लड़कियों के पिता डरे-सहमे हैं कि न जाने कब कोई तालिबानी आकर उनकी बेटी को उठा ले जाए।
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