योगेश कुमार गोयल
ओलम्पिक खेलों के इतिहास में भारत का प्रदर्शन पहली बार बेहतरीन रहा है। 121 वर्ष के ओलम्पिक इतिहास में जहां भारत को एथलेटिक्स में पहली बार स्वर्ण पदक हासिल हुआ, वहीं टोक्यो ओलम्पिक में भारत ने अब तक के सर्वाधिक पदक जीते हैं।
ओलम्पिक खेलों के इतिहास में भारत का प्रदर्शन पहली बार बेहतरीन रहा है। 121 वर्ष के ओलम्पिक इतिहास में जहां भारत को एथलेटिक्स में पहली बार स्वर्ण पदक हासिल हुआ, वहीं टोक्यो ओलम्पिक में भारत ने अब तक के सर्वाधिक पदक जीते हैं। हालांकि कुछ और खिलाडि़यों ने भी काफी अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन बदकिस्मती से पदक जीतने से चूक गए। महिला हॉकी भले ही पदक जीतने में सफल नहीं हो सकी, लेकिन उसने जिस जोश और जज्बे के साथ सारे मैच खेले, वह बेहतरीन था। टोक्यो ओलम्पिक इस मायने में भी बेहद खास रहा कि ओलम्पिक की शुरुआत भी भारत ने पहले ही दिन पदक जीतकर की और खेलों के आखिरी दिन भी दो पदक जीते। आखिरी दिन तो भारत के लिए ऐतिहासिक रहा क्योंकि इस दिन भारत ने दो अलग-अलग स्पर्धाओं में स्वर्ण और कांस्य पदक जीतकर एक नया इतिहास रच दिया। टोक्यो ओलम्पिक भारत के लिए अब तक का सबसे अच्छा ओलम्पिक साबित हुआ है। अभी तक भारत का ओलम्पिक में सबसे ज्यादा छह पदक जीतने का रिकॉर्ड 2012 के रियो ओलम्पिक का था, लेकिन इस बार भारत एक स्वर्ण, दो रजत और चार कांस्य पदक जीतने में सफल हुआ है। ओलम्पिक खेलों में ज्यादातर फिसड्डी रहने के बाद अगर इस बार के ओलम्पिक में कुछ भारतीय खिलाडि़यों के शानदार प्रदर्शन को देखें तो खेलों में भारत के सुखद भविष्य की उम्मीद जगती नजर आने लगी है।
2008 के बीजिंग ओलम्पिक में अभिनव बिंद्रा ने पुरुषों की 10 मीटर एयर राइफल में देश के लिए पहली बार स्वर्ण पदक जीता था और अब 13 वर्षों बाद जैवलिन थ्रो में जब नीरज चोपड़ा ने स्वर्ण पदक जीता तो समूचे भारत ने एक स्वर में ‘वन्देमातरम्’ का जयघोष किया। दरअसल टोक्यो ओलम्पिक में इस बार हॉकी टीम की जीत तथा छह भारतीय खिलाड़ियों की शानदार जीत और जीत से मामूली अंतर से पीछे रह गए कुछ अन्य खिलाड़ियों का बेहतरीन प्रदर्शन कुछ ऐसा ही रहा, मानो हमें सोते से जगाकर कह रहा हो कि उठो, जागो, उस पार सवेरा है। दरअसल ओलम्पिक में भारतीय खिलाड़ियों के प्रदर्शन को देखते हुए भविष्य में खेलों की दशा और दिशा सुधरने की उम्मीदें बलवती हुई हैं। महिला हॉकी टीम जीत भले ही हासिल नहीं कर सकी, लेकिन इस टीम की सभी खिलाड़ियों ने जिस जोश और जुनून का परिचय सभी मैचों में दिया, उससे लड़कियों में महिला हॉकी के प्रति जुनून पैदा होना स्वाभाविक है। मीराबाई चानू, पीवी सिंधू और लवलीना बोरगोहेन ने तो ओलम्पिक में भारत की विजय पताका फहराकर भारत की अन्य बेटियों को खेलों के प्रति आकर्षित होने का बेहतरीन अवसर प्रदान किया है। सही मायनों में इन महिला खिलाड़ियों की सफलता देश की आधी आबादी के लिए बहुत प्रेरणादायी है और ऐसे में जरूरत है कि इस सुअवसर का लाभ उठाकर देशभर में विभिन्न खेलों में ऐसा माहौल बनाया जाए ताकि प्रतिभाशाली लड़कियां आगे आएं और आने वाले समय में ओलम्पिक सहित अन्य अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में भी उनका डंका बजता दिखाई दे। टोक्यो ओलम्पिक 2020 में जिन भारतीय खिलाड़ियों और टीम की बदौलत ओलम्पिक पोडियम में शान से भारतीय तिरंगा लहराया, उनमें मीराबाई चानू, पीवी सिंधू, लवलीना बोरगोहेन, रवि कुमार दहिया, बजरंग पूनिया, नीरज चोपड़ा तथा भारतीय पुरुष हॉकी टीम शामिल हैं।
मीराबाई चानू
टोक्यो ओलम्पिक में भारत को सबसे पहली जीत दिलाई 24 जुलाई को मणिपुर की 26 वर्षीया स्टार वेट लिफ्टर मीराबाई चानू ने। उनकी इस जीत ने कई मायनों में भारत के लिए नया इतिहास रचा था। बुलंद हौंसलों के साथ ओलम्पिक में ‘आयरन लेडी’ बनकर उभरी भारोत्तोलक मीराबाई ने न केवल भारोत्तोलन में भारत का 21 वर्ष का सूखा खत्म किया बल्कि ओलम्पिक में भारोत्तोलन में रजत पदक जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी भी बनीं। चानू की जीत भारत के लिए गौरवान्वित करने वाली इसलिए भी थी क्योंकि इससे पहले भारत ओलम्पिक खेलों में पहले दिन कभी कोई पदक जीतने में सफल नहीं हुआ। चानू की ऐतिहासिक जीत के बाद भारत पदक तालिका में दूसरे स्थान पर पहुंच गया था और वह उपलब्धि भी भारत को उससे पहले कभी हासिल नहीं हुई थी। 2004 के एथेंस ओलम्पिक में अभिनव बिंद्रा ने तीन दिन बाद शूटिंग में स्वर्ण पदक जीता था, 2012 के लंदन ओलम्पिक में गगन नारंग ने भी तीन बाद ही शूटिंग में कांस्य पदक जीता था जबकि शूटिंग में राज्यवर्धन सिंह राठौर 2008 के बीजिंग ओलम्पिक में पांचवें दिन, 2016 के रियो ओलम्पिक में पहलवान साक्षी मलिक 12वें दिन, 1996 के अटलांटा ओलम्पिक में टेनिस स्टार लिएंडर पेस 14वें दिन पदक जीतने में सफल हुए थे। पीवी सिंधू के बाद चानू दूसरी ऐसी भारतीय महिला खिलाड़ी बन गई, जिसने ओलम्पिक में रजत पदक जीता। आधुनिक ओलम्पिक खेलों में भारत के 101 वर्ष लंबे सफर में भारत का यह केवल 17वां व्यक्तिगत पदक था और व्यक्तिगत स्पर्धा में भी नॉर्मन पिचार्ड, राज्यवर्धन सिंह राठौर, सुशील कुमार, विजय कुमार और पीवी सिंधु के बाद ओलम्पिक में भारत का यह छठा रजत पदक ही था।
मीराबाई चानू से पहले कर्णम मल्लेश्वरी ने 2000 के सिडनी ओलम्पिक में 69 किलो श्रेणी में कांस्य पदक जीता था, जबकि चानू ने ओलम्पिक में क्लीन एवं जर्क में 115 किलोग्राम और स्नैच में 87 किलोग्राम से कुल 202 किलोग्राम वजन उठाकर भारत को भारोत्तोलन स्पर्धा में पहली बार रजत पदक दिलाया। वैसे मीराबाई के नाम महिला 49 किलोग्राम वर्ग में क्लीन एवं जर्क में विश्व रिकॉर्ड भी है। ओलम्पिक में उन्होंने क्लीन एवं जर्क में 115 किलोग्राम वजन उठाया जबकि ओलम्पिक से पहले उन्होंने अपने आखिरी टूर्नामेंट ‘एशियाई चैम्पियनशिप’ में 119 किलोग्राम वजन उठाकर इस वर्ग में स्वर्ण और ओवरऑल वजन में कांस्य पदक जीता था। उस चैम्पियनशिप में यह शानदार प्रदर्शन करने के बाद ही उन्हें टोक्यो ओलम्पिक का टिकट हासिल हुआ था। वह टोक्यो ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई करने वाली एकमात्र भारोत्तोलक थी। 17 साल की उम्र में वह जूनियर चैम्पियन बन गई थी। 2014 में ग्लास्गो कॉमनवेल्थ खेलों में 48 किलो भारवर्ग में चानू ने भारत के लिए रजत पदक जीता था और उसके बाद भी लगातार अच्छे प्रदर्शन की बदौलत ही उन्हें रियो ओलम्पिक का टिकट मिला था। रियो अेालम्पिक में पराजय के बाद मीराबाई ने 2017 में अनाहेम में हुई विश्व भारोत्तोलन चैम्पियनशिप में कुल 194 किलो (स्नैच में 85 और क्लीन एंड जर्क में 107) वजन उठाकर स्वर्ण पदक जीता था। इसके लिए उन्हें वर्ष 2018 में राजीव गांधी खेल रत्न और उसके बाद पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया। 2018 में कॉमनवेल्थ खेलों में भी वह स्वर्ण जीतने में सफल हुई और उसी साल सीनियर महिला राष्ट्रीय भारोत्तोलन चैम्पियनशिप में भी दूसरी बार स्वर्ण पदक जीता। 2020 में ताशकंद एशियाई चैम्पियनशिप में मीराबाई को कांस्य पदक हासिल हुआ था।
पीवी सिंधु
2019 की विश्व चैम्पियन भारत की स्टार शटलर 26 वर्षीया पीवी सिंधु ने टोक्यो ओलम्पिक में लगातार दूसरी बार पदक जीतकर इतिहास रचा। 2016 के रियो ओलम्पिक में उन्होंने रजत पदक जीता था, जबकि 1 अगस्त, 2021 को हुए मुकाबले में वह कांस्य पदक जीतने में सफल रही। अभी तक पहलवान सुशील कुमार के नाम व्यक्तिगत स्पर्धा में लगातार दो ओलम्पिक में पदक जीतने का रिकॉर्ड था और अब सिंधु ने उनके रिकॉर्ड की बराबरी कर ली है। बैडमिंटन में भारत को अब तक केवल तीन पदक मिले हैं, जिनमें पहला कांस्य पदक 2012 के लंदन ओलम्पिक में साइना नेहवाल ने जीता था, उसके बाद दोनों पदक 2016 और 2020 के ओलम्पिक में सिंधु ने ही जीते हैं। सिंधु ने ग्रुप-जे में शीर्ष पर रहकर नॉकआउट के लिए क्वालीफाई किया था और विभिन्न मुकाबलों में प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ियों को पराजित कर सेमीफाइनल तक पहुंची थीं। लेकिन उस मुकाबले में विश्व की नंबर एक वरीयता वाली चीनी ताइपे की ताइ-जू-यिंग के हाथों मिली हार के बाद उनका स्वर्ण या रजत पदक जीतने का सपना टूट गया था। उसके बाद सिंधु ने कांस्य पदक के लिए हुए मुकाबले में शानदार प्रदर्शन करते हुए विश्व की नवीं वरीयता वाली चीन की खब्बू खिलाड़ी बिंग जियाओ को बड़ी आसानी से हराकर लगातार दूसरी बार पदक जीतकर इतिहास रच दिया। मुकाबले में सिंधु ने चीन की जिस खिलाड़ी बिंग जियाओ को हराया, उसके खिलाफ सिंधु की यह सातवीं जीत थी।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सिंधु पहली बार तब सुर्खियों में आई थी, जब 2013 में चीन के ग्वांगझू में आयोजित विश्व बैडमिंटन चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीतकर वह यह सफलता हासिल करने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बनी थीं। 2013 में पहली बार विश्व बैडमिंटन चैम्पियनशिप में कदम रखने वाली इस खिलाड़ी ने 25 अगस्त, 2019 को स्विट्जरलैंड में बीडब्ल्यूएफ विश्व चैम्पियनशिप के फाइनल में जापान की नोजुमी ओकुहारा को 21-7, 21-7 से मात देकर विश्व बैडमिंटन चैम्पियनशिप का एकल खिताब अपने नाम कर भारतीय बैडमिंटन के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय जोड़ दिया था और यह विश्व चैम्पियनशिप जीतने वाली पहली भारतीय शटलर बनी थीं। उनसे पहले कोई भी भारतीय पुरुष या महिला बैडमिंटन खिलाड़ी यह कारनामा नहीं कर सका था। इस विश्व चैम्पियनशिप में उससे पहले उन्हें वर्ष, 2013 और 2014 में कांस्य पदक तथा 2017 और 2018 में रजत पदक से ही संतोष करना पड़ा था।
लवलीना बोरगोहेन
अपने पहले ही ओलम्पिक में 23 वर्षीया मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन ने 4 अगस्त के मुकाबले में कांस्य पदक जीतकर भारत का नाम पूरी दुनिया में रोशन कर दिया। लवलीना की यह जीत भारत के लिए कितनी महत्वपूर्ण है, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि ओलम्पिक खेलों में मुक्केबाजी में यह भारत का अब तक का केवल तीसरा पदक है। लवलीना से पहले 2008 में विजेन्दर सिंह ने और 2012 में मैरीकॉम ने कांस्य पदक जीते थे। इस प्रकार ओलम्पिक में मुक्केबाजी में कोई पदक जीतने वाली वह दूसरी महिला मुक्केबाज बन गई हैं। लवलीना महिला 69 किलो वर्ग के सेमीफाइनल मैच में विश्व चैम्पियन तुर्की की मुक्केबाज बुसेनाज सुरमेनेली से तीनों ही राउंड 0-5 से हारकर स्वर्ण और रजत पदक की दौड़ से बाहर हो गई थीं। वैसे 30 जुलाई को क्वार्टर फाइनल में चीनी ताइपे की निएन चिन चेन को 4-1 से हराकर लवलीना ने भारत के लिए पदक जीतना सुनिश्चित कर लिया था। 2012 में बॉक्सिंग की शुरुआत करने के बाद वह अपने अब तक के कैरियर में 2018 और 2019 की विश्व चैम्पियनशिप के दो कांस्य पदक जीत चुकी हैं और दिल्ली में आयोजित पहले इंडिया ओपन इंटरनेशनल बॉक्सिंग टूर्नामेंट में स्वर्ण तथा गुवाहाटी में आयोजित दूसरे इंडिया ओपन इंटरनेशनल बॉक्सिंग टूर्नामेंट में रजत पदक भी जीत चुकी हैं।
सितम्बर, 2018 में लवलीना पोलैंड में 13वीं अंतर्राष्ट्रीय सिलेसियन चैम्पियनशिप में कांस्य, जून 2018 में मंगोलिया में उलानबटार कप में रजत, नवम्बर 2017 में वियतनाम में एशियाई मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में कांस्य तथा जून 2017 में अस्ताना में आयोजित राष्ट्रपति कप में कांस्य पदक जीत चुकी हैं। दिल्ली में आयोजित एआईबीए (आईबा) महिला विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में वह पहली बार भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए 23 नवम्बर, 2018 को कांस्य पदक जीतने में सफल हुई थीं। उसके बाद 2019 की आईबा महिला विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में उन्होंने कांस्य पदक जीता था। मार्च, 2020 में लवलीना ने एशिया और ओशिनिया बॉक्सिंग ओलम्पिक क्वालीफायर टूर्नामेंट में उज्बेकिस्तान की मफतुनाखोन मेलिएवा को 5-0 से हराकर 69 किग्रा वर्ग में ओलम्पिक कोटा हासिल किया था और ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई करने वाली असम की पहली खिलाड़ी बनी थी।
रवि कुमार दहिया
5 अगस्त को भारतीय पहलवान रवि कुमार दहिया ने ओलम्पिक में रजत पदक जीतकर इतिहास रचा। 57 किलोग्राम फ्रीस्टाइल वर्ग के फाइनल में 2018 और 2019 के विश्व चैम्पियन रह चुके रूस ओलम्पिक समिति के पहलवान जावुर युगुऐव से 7-4 से हारने के बाद उनका ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीतने का सपना टूट गया था। वैसे ओलम्पिक में कुश्ती में रवि का रजत पदक भी बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि ओलम्पिक खेलों के इतिहास में पदक जीतने वाले वे पांचवें पहलवान बने और रेसलिंग में भारत का वह अब तक का छठा पदक था। वह ओलम्पिक में सुशील कुमार के बाद रजत पदक जीतने वाले दूसरे भारतीय पहलवान बन गए हैं। 4 अगस्त को अपने ओलम्पिक अभियान की मजबूत शुरुआत करते हुए क्वार्टर फाइनल में उन्होंने बुल्गारिया के जॉर्डी वेलेंटिनोव वेंगेलोव को तकनीकी दक्षता के आधार पर 14-4 से हराकर सेमीफाइनल में जगह बनाई थी और उसी दिन सेमीफाइनल मुकाबले में कजाकिस्तान के नूरीस्लाम सानायेव को विक्ट्री बाई फॉल के जरिये पटखनी देते हुए रजत पदक पक्का कर लिया था।
दो बार के एशियन चैम्पियन रहे रवि ने जिस अंदाज में कुछ दिग्गज पहलवानों को हराते हुए टोक्यो ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई किया था और कजाकिस्तान के नूर सुल्तान में अपनी पहली ही 2019 विश्व रेसलिंग चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीतने में सफल हुए थे, उसे देखते हुए उनसे ओलम्पिक में श्रेष्ठ प्रदर्शन की उम्मीदें शुरू से काफी ज्यादा थी। उन्होंने 2019 में कजाकिस्तान के नूर सुल्तान में हुई विश्व कुश्ती चैम्पियनशिप के क्वार्टर फाइनल में जापान के युकी ताकाहाशी को 6-1 से मात देते हुए सेमीफाइनल में पहुंचकर टोक्यो ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई किया था और ईरान के रेजा अत्री नागाहरची को हराकर कांस्य पदक अपने नाम किया था। 2015 में उन्होंने 55 किलोग्राम फ्रीस्टाइल वर्ग में सल्वाडोर डी बाहिया में विश्व जूनियर कुश्ती चैम्पियनशिप में रजत पदक जीता था। 2017 में लगी चोट से उबरने के बाद वह 2018 में बुखारेस्ट में विश्व अंडर-23 कुश्ती चैम्पियनशिप में 57 किलोग्राम वर्ग में रजत पदक जीतकर धमाकेदार वापसी करने में सफल हुए थे। उस चैम्पियनशिप में वह भारत का एकमात्र पदक था।
पुरुष हॉकी टीम
भारत के राष्ट्रीय खेल हॉकी में मिली जीत के दृष्टिगत 5 अगस्त का दिन टोक्यो ओलम्पिक में भारत के लिए ऐतिहासिक रहा। दरअसल इस दिन भारतीय हॉकी टीम ने जर्मनी को 5-4 से हराकर ओलम्पिक में भारत का 41 वर्ष का सूखा खत्म कर कांस्य पदक जीता। दूसरे क्वार्टर में 3-1 से पिछड़ने के बाद टीम ने जबरदस्त वापसी करते हुए अपने आक्रामक खेल के लिए जानी जाने वाली जर्मनी की मजबूत टीम को 5-4 से मात देकर कांस्य पदक अपने नाम किया। शुरुआती मैच न्यूजीलैंड से जीतने के बाद टीम भले ही आस्ट्रेलिया से हार गई लेकिन अपने हाई जोश और बुलंद इरादों के बूते टीम सेमीफाइनल में पहुंचने में सफल रही। भारत को हॉकी में मिला पदक देश में हॉकी खिलाडि़यों का मनोबल बढ़ाने के लिए बेहद जरूरी था क्योंकि कभी ओलम्पिक खेलों में हॉकी का सिरमौर रहा भारत 41 वर्षों बाद ओलम्पिक में जीत का स्वाद चख सका है। इस जीत ने भारतीय हॉकी के भविष्य से निराश हो चुके देश के युवाओं में नई आशा जगाई है। 1980 के मास्को ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीतने के बाद भारतीय टीम ओलम्पिक में कभी भी पांचवें स्थान से ऊपर नहीं जा सकी थी। कभी उसे 7वें तो कभी 8वें और 12वें स्थान से भी संतोष करना पड़ा और 2008 में तो वह ओलम्पिक के लिए क्वालिफाई तक नहीं कर सकी थी। हालांकि हॉकी में भारत ने अब तक कुल आठ स्वर्ण, एक रजत और तीन कांस्य पदक जीते हैं।
भारत ने ओलम्पिक में सबसे ज्यादा पदक पुरुष हॉकी में ही जीते हैं, लेकिन 1980 के बाद से भारत ओलम्पिक में हॉकी में जीत के लिए तरस रहा था। उसके बाद से ऐसा लगने लगा था, जैसे देश में हॉकी का गौरव कहीं खो गया है। 1928, 1932, 1936, 1948, 1952, 1956, 1964 और 1980 में स्वर्ण, 1960 में रजत और 1968, 1972 तथा 2020 के टोक्यो ओलम्पिक में कांस्य पदक भारत को मिले हैं। हॉकी में बरसों बाद मिली जीत के पश्चात् देश में हॉकी के पुनरुत्थान की आस जगी है और निश्चित रूप से यह देश में हॉकी के बेहतर भविष्य की उम्मीद जगाता है। ऐसे में जीत के इस उत्साह को बरकरार रखते हुए जरूरत अब इस बात की है कि देश में हॉकी तथा अन्य खेलों को भी किसी बड़े टूर्नामेंट के लिए खेलने या किसी एक सीजन का खेल मानकर चलने की सोच तक सीमित रखने के बजाय मौजूदा खेल ढ़ांचे की खामियों को दूर करते हुए इन्हें समाज का अटूट अंग बनाने की ओर विशेष ध्यान दिया जाए।
बजरंग पूनिया
7 अगस्त, 2021 को रेसलिंग में कांस्य पदक जीतकर पहलवान बजरंग पूनिया ने भी देश का नाम रोशन किया। हालांकि उनसे शुरुआत से ही रजत या स्वर्ण पदक जीतने की उम्मीदें की जा रही थी किन्तु वह सेमीफाइनल में अजरबैजान के हाजी अलीयेव से 12-5 से हारकर रजत पदक की रेस से बाहर हो गए। लेकिन 7 अगस्त को कांस्य पदक के लिए हुए फ्री स्टाइल कुश्ती के 65 किलोग्राम वर्ग के मुकाबले में जिस प्रकार एकतरफा जीत हासिल की, वह काबिले तारीफ है। उस मैच में उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी कजाकिस्तान के दौलत नियाजबेकोव को 8-0 से हराकर कांस्य पदक अपने खाते में दर्ज कराया। रवि कुमार दहिया के बाद टोक्यो ओलम्पिक में बजरंग ने भारत को कुश्ती में दूसरा पदक दिलाया और वह अब ओलम्पिक खेलों के इतिहास में पदक जीतने वाले छठे पहलवान बन गए हैं। कुश्ती में भारत ने अब तक कुल 7 पदक जीते हैं, जिनमें दो इसी साल जीते गए हैं जबकि सबसे पहला कांस्य पदक 1952 में हेलसिंकी ओलम्पिक में भारतीय पहलवान केडी जाधव को मिला था। उसके 56 वर्षों बाद 2008 में सुशील कुमार ने बीजिंग ओलम्पिक में भारत को दूसरा कांस्य पदक दिलाया। 2012 के लंदन ओलम्पिक में सुशील कुमार रजत और योगेश्वर दत्त कांस्य पदक जीतने में सफल रहे। 2016 के रियो ओलम्पिक में साक्षी मलिक ने कांस्य पदक हासिल किया।
बजरंग के बारे में सबसे बड़ी बात यही है कि कोई राष्ट्रीय स्तर का मैच हो या अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कोई स्पर्धा, वह वहां से पदक हासिल किए बिना घर वापस नहीं लौटते। वह भारत के एकमात्र ऐसे पहलवान हैं, जिन्होंने विश्व रेसलिंग चैम्पियनशिप में तीन पदक जीते हैं। उन्होंने 2013 तथा 2019 में कांस्य और 2018 की विश्व चैम्पियनशिप में रजत पदक हासिल किया था। एशियाई खेलों में वह अब तक दो पदक, 2018 में स्वर्ण और 2014 में रजत जीते हैं। राष्ट्रमंडल खेलों में भी उन्होंने 2018 में स्वर्ण और 2014 में रजत पदक जीते थे। एशियन चैम्पियनशिप में तो वह अब तक कुल 7 पदक जीत चुके हैं, 2013 में कांस्य, 2014 में रजत, 2017 में स्वर्ण, 2018 में कांस्य, 2019 में स्वर्ण, 2020 तथा 2021 में रजत पदक। 2018 के एशियाई खेलों में पुरुषों की 65 किग्रा वर्ग स्पर्धा के फाइनल में जापान के पहलवान तकातानी डियाची को एकतरफा मुकाबले में 11-8 से शिकस्त देकर वह एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले भारत के 9वें पहलवान बन गए थे।
नीरज चोपड़ा
7 अगस्त, 2021 को भारत के 23 वर्षीय जेवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा ने तो एथलेटिक्स में ऐसा इतिहास रच डाला, जिसकी कल्पना कम ही थी। दरअसल 121 वर्ष से कोई भी भारतीय एथलीट यह करिश्मा नहीं कर सका था। इस बेहद लंबे सूखे को स्वर्ण पदक जीतकर खत्म किया नीरज चोपड़ा ने। नीरज चोपड़ा एथलेटिक्स में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी होने के अलावा ओलम्पिक में व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक हासिल करने वाले दूसरे खिलाड़ी भी बन गए हैं। भारत को एथलेटिक्स में 121 वर्ष में पहली बार और किसी भी इवेंट में 13 वर्ष के अंतराल बाद स्वर्ण पदक मिला है। 2008 के बीजिंग ओलम्पिक में निशानेबाज अभिनव बिंद्रा ने 10 मीटर एयर राइफल इवेंट का स्वर्ण जीतकर ओलम्पिक में व्यक्तिगत स्पर्धा में पहला स्वर्ण पदक जीतने का इतिहास रचा था। भारत को ओलम्पिक में अब तक मिले कुल 10 स्वर्ण पदकों में से 8 भारत ने हॉकी में जीते हैं। अभी तक भारत को ओलम्पिक में व्यक्तिगत स्पर्धा में केवल दो स्वर्ण पदक मिले हैं, इसलिए भी नीरज को मिला स्वर्ण भारत के लिए बेहद खास है।
जैवलिन थ्रो में टोक्यो ओलम्पिक के पहले राउंड में 12 खिलाड़ियों में से 8 ने अगले और फाइनल राउंड में जगह बनाई थी। क्वालीफाइंग राउंड में नीरज ने 86.65 मीटर दूर भाला फेंका था और अपने ग्रुप में पहले स्थान पर रहे थे। फाइनल मुकाबले में उन्होंने अपने पहले प्रयास में 87.03 मीटर दूर भाला फैंका जबकि दूसरे प्रयास में 87.58 तथा तीसरे प्रयास में 76.79 मीटर दूर भाला फैंका और 87.58 मीटर के अपने सर्वश्रेष्ठ थ्रो के साथ स्वर्ण पदक जीतकर भारत के लिए ओलम्पिक खेलों में सफलता का नया इतिहास लिखने में सफल हुए। नीरज ने गत वर्ष साउथ अफ्रीका में आयोजित हुए सेंट्रल नॉर्थ ईस्ट मीटिंग एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में 85 मीटर के अनिवार्य क्वालिफिकेशन मार्क को पार करते हुए 87.86 मीटर दूर जैवलिन (भाला) फेंककर ओलम्पिक का टिकट हासिल किया था। वैसे ओलम्पिक में इतिहास रचने से पहले भी वह कई बड़ी चैम्पियनशिप जीत चुके हैं। वह एशियाई खेलों, राष्ट्रमंडल खेलों, एशियन चैम्पियनशिप, साउथ एशियन गेम्स और विश्व जूनियर चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक अपने नाम कर चुके हैं। इसी साल मार्च महीने में उन्होंने इंडियन ग्रैंड प्रिक्स-3 में 88.07 मीटर जैवलिन थ्रो के साथ अपना ही राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ दिया था, जो उनका अब तक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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