सैमी दीन बलोच
नागार्जुन
बलूचिस्तान की 23 वर्षीया सैमी दीन बलोच के पिता को 2009 में पाकिस्तानी फौज ने अगवा किया था। उस समय सैमी ने अपने लापता पिता की सकुशल वापसी की मांग को लेकर क्वेटा से कराची और इस्लामाबाद तक 3,000 किलोमीटर तक पैदल यात्रा की। प्रधानमंत्री इमरान खान तक से गुहार लगाई, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।
बलूचिस्तान में पाकिस्तानी फौज बेरहमी से बलूचों को मार रही है। फौज जिसे एक बार उठा लेती है, वह दोबारा कभी नहीं लौटता। सैमी दीन बलोच 23 साल की हैं और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं। उनके पिता डॉ. दीन मुहम्मद बलोच अपने गृहनगर अवारान से 2009 में लापता हो गए थे। सैमी दीन एक दशक से भी अधिक समय से पिता की सुरक्षित वापसी के लिए आवाज उठा रही हैं, तो उनकी बात सुनने की बजाए उल्टे उन्हें जान से मारने की धमकी दी जा रही है। लिहाजा, उन्होंने बलूचिस्तान छोड़ दिया और आगे की पढ़ाई के लिए कराची में एक सुरक्षित जगह चली गईं, लेकिन नए शहर में भी वह खुद को असुरक्षित महसूस कर रही हैं।
सैमी दीन एक आम पाकिस्तानी नागरिक की तहर शांति से और बेफिक्र होकर सड़क पर घूम सकती थी और सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर सकती थी। लेकिन ऐसा नहीं है। वह कहती हैं, ‘‘मैं सोशल मीडिया का उपयोग करते हुए असुरक्षित महसूस करती हूं। बेचैनी की यह भावना कुछ दिन पहले उत्पन्न हुई, जब व्हाट्सएप और ट्विटर पर संयुक्त राष्ट्र का प्रतिनिधि होने का दिखावा करने वाले एक शख्स ने मुझसे संपर्क किया और मुझे बलूचिस्तान में यूएन-वॉच एडवोकेट के रूप में एक पोर्टल पर पंजीकृत करने के लिए कहा। बाद में उसने मेरा अकाउंट हैक कर लिया और धमकी दी कि एक दशक से अपने लापता पिता की सुरक्षित वापसी के लिए आवाज उठाना बंद कर दूं। जब मुझे इसका आभास हुआ तो मैंने सोशल मीडिया का उपयोग करना बंद कर दिया।’’
3,000 किलोमीटर पैदल मार्च किया
सैमी कहती हैं कि हाल ही में हुए साइबर हमले से पहले 13 अप्रैल को गुलिस्तान-ए-जौहर में बाइक सवारों ने उनका पीछा किया था। उन लोगों ने उनका फोन छीन लिया और दीवार की तरफ धक्का दे दिया। सैमी ने पुलिस में इसकी शिकायत भी की थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। सैमी को लगता है कि ये हथकंडे उन्हें दबाने के लिए अपनाए जा रहे हैं, ताकि वह पिता की वापसी के लिए आवाज उठाना छोड़ दें।
सैमी कहती हैं, ‘’मैंने 2010 में अपने पिता सहित तमाम लापता बलूचों के परिवारों के साथ क्वेटा से कराची और इस्लामाबाद तक 3,000 किलोमीटर तक मार्च निकाला। इस प्रदर्शन के दौरान हमने राज्य के अधिकारियों से लापता बलूचों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करने का आग्रह किया। इतनी दूर चलकर मेरे पैर बुरी तरह सूज गए थे। बाद में प्रधान मंत्री इमरान खान ने 18 मार्च को हमसे मुलाकात की और भरोसा दिलाया कि उनकी सरकार हमारी शिकायतों का समाधान करेगी। लेकिन उन्होंने ने भी कुछ नहीं किया।‘’ सैमी हताश हैं और जानती हैं कि अधिकारी उसकी सहायता नहीं करेंगे, क्योंकि लापता लोगों की दुर्दशा के प्रति उनका रवैया हमेशा एक ठंडा ही रहा है।
प्रधानमंत्री से मुलाकात का अनुभव
पाकिस्तानी अखबार ‘द डॉन’ ने सैमी का एक संस्मरण छापा है। इसमें उन्होंने प्रधानमंत्री से अपनी मुलाकात के बारे में लिखा है। उन्होंने लिखा है कि उन्हें उम्मीद थी कि इमरान खान के साथ मुलाकात के बाद उनके एक दशक के संघर्ष का कोई नतीजा निकलेगा। उन्हें उम्मीद थी कि इस मुलाकात के बाद अवैध तरीके से हिरासत में लिए गए लोगों को रिहा किया जाएगा या कम से कम लापता लोगों के बारे में पता लगा सकेंगे कि वे कहां हैं। वह लिखती हैं कि लगता है कि उन्हें अभी और इस दर्द को सहते रहना होगा। इस्लामाबाद की कड़ाके की ठंड में डी-चौक पर खुले आसमान के नीचे एक हफ्ते तक प्रदर्शन करने के बाद प्रदर्शन खत्म करने की एक अच्छी वजह मिल गई थी। प्रधानमंत्री हमसे मुलाकात करने वाले थे। इसलिए इस प्रक्रिया के पहले चरण में जब लापता लोगों के परिवारों से नामों की सूची मांगी गई तो लगा कि प्रधानमंत्री से मुलाकात के दौरान कोई अपडेट मिलेगा। इसका कारण यह था कि प्रधानमंत्री बनने से पहले इमरान खान लोगों के जबरन गायब होने के खिलाफ सबसे मुखर आवाजों में से एक थे। 18 मार्च को बलूच लापता लोगों के परिवारों के तीन प्रतिनिधियों के साथ मैं, मानवाधिकार मंत्री शिरीन मजारी और जोबेदा जलाल, प्रधानमंत्री इमरान खान से मिले।
… और इमरान खान को कुछ मालूम ही नहीं
वह लिखती हैं, ‘’हमने अनंत आशाओं और अपेक्षाओं के साथ उनके कार्यालय में कदम रखा। लेकिन यह जानकर मुझे बहुत दुख हुआ कि उन्हें हमारे प्रिय लोगों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। ज्यादा बुरा यह लगा कि उनके पास गलत सूचना थी। जल्द ही प्रधानमंत्री को लिखित में लापता लोगों की सूची दी गई, जिसमें सबसे पहले स्थान पर मेरे पिता थे। प्रधानमंत्री ने मुझसे पूछा कि क्या मेरे पिता को व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण उठाया गया था। मैंने कहा कि यह सच नहीं है। मैंने उन्हें बताया कि ऐसे गवाह हैं जो गवाही दे सकते हैं कि मेरे पिता का अपहरण सुरक्षाबलों ने किया था। इस पर, प्रधानमंत्री ने अपने निजी सचिव से मामलों को देखने को कहा और कार्रवाई पर अपडेट रिपोर्ट मांगी। हमें बताया गया था कि हमें जल्द ही अपडेट कर दिया जाएगा, लेकिन हमारे जोर देने के बावजूद हमें तारीख नहीं दी गई।‘’ कार्यकर्ताओं और राजनेताओं से हमें पता चला कि इस मामले में प्रधानमंत्री शक्तिहीन हैं, लेकिन हमें उनसे उम्मीद है। उन्होंने संकल्प लिया था कि जब वे प्रधानमंत्री बनेंगे तो कोई भी लापता नहीं होगा।
हमें परिणाम चाहिए
सैमी लिखती हैं, ‘’हम आश्वासन से अधिक चाहते हैं। हम थक गए हैं। हमें परिणाम चाहिए। हम न्यायपालिका से लेकर जबरन गायब किए गए लोगों की जांच के लिए गठित आयोग तक हर दरवाजे पर गुहार लगा चुके हैं। हाल ही में हम आयोग के अध्यक्ष सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति जावेद इकबाल से मिले। उन्होंने हमें आश्वासन दिया कि 2015 से लापता लोगों को रिहा कर दिया जाएगा। लेकिन कब? सच कहूं तो आयोग दंतविहीन बाघ है। 2009 में पिता के अगवा होने के बाद मैं दर्जनों जेआईटी और आयोग की बैठकों में शामिल हुई। मेरी पढ़ाई बर्बाद हो गई और मेरी जिंदगी एक तलाश बन गई है। मेरे पिता के लापता होने को लेकर जेआईटी की हालिया बैठक में आईएसआई, एमआई, एफसी और पुलिस समेत तमाम सुरक्षा एजेंसियों के प्रतिनिधि मौजूद थे। लंबी चर्चा के बाद अब मुझे बताया गया कि मेरे पिता के अपहरण के पीछे एक 'नई वजह' है। जब मैंने अनुरोध किया कि मुझे इसके बारे में बताया जाए तो मुझे कमरे से बाहर जाने के लिए कहा गया। इस बात के कुछ सप्ताह बीत चुके हैं, लेकिन कोई अपडेट नहीं मिला है। प्रधानमंत्री की ओर से भी हमसे संपर्क नहीं किया गया है। पीडि़त परिवारी उम्मीद टूट रही है और वे ठोस निर्णय लेने वाले हैं- यदि प्रधानमंत्री अपना वादा तोड़ते हैं तो वे लोग भूख हड़ताल और धरना देने के लिए इस्लामाबाद वापस आ जाएंगे।‘’
अवामी नेशनल पार्टी के अगवा नेता की हत्या
अवामी नेशनल पार्टी (एएनपी) के नेता मलिक उबैदुल्ला कासी
कुछ दिन पहले अगवा किए गए अवामी नेशनल पार्टी (एएनपी) की केंद्रीय समिति के सदस्य मलिक उबैदुल्ला कासी की हत्या कर दी गई है। गुरुवार को बलूचिस्तान सरकार के प्रवक्ता लियाकत शाहवानी ने कहा कि अपहरणकर्ताओं ने उनकी हत्या कर दी गई। मलिक को 26 जून को बलूचिस्तान के कुचलक इलाके के कटेर से अपहरण कर लिया गया था। लेविस अधिकारियों के अनुसार, उनका शव बलूचिस्तान के पिशिन जिले की सारणन तहसील से बरामद हुआ। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, करीब चार दिन पहले गोली मार कर उनकी हत्या की गई। इस घटना के बाद बड़ी संख्या में एएनपी कार्यकर्ता अस्पताल पहुंचे और सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। हत्यारों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर कार्यकर्ताओं ने विरोध में मनन चौक पर टायर जलाकर यातायात बाधित किया। इससे पहले, इसी साल फरवरी में एएनपी के लापता नेता असद खान अचकजई का गोलियों से छलनी शव बरामद किया गया था। असद खान 25 सितंबर, 2020 को एएनपी की बैठक में भाग लेने के लिए चमन से क्वेटा आते समय लापता हो गए थे।
मलिक कासी के अपहरण पर चिंता जताते हुए 29 जून को एएनपी के केंद्रीय महासचिव मियां इफ्तिखार हुसैन ने एक बयान जारी किया था। इसमें उन्होंने कहा था कि बलूचिस्तान सरकार उनकी बरामदगी के लिए ठोस कदम उठाने में विफल रही है। उन्होंन चेतावनी दी थी कि यदि 72 घंटों के भीतर लापता नेता को बरामद नहीं किया गया, तो पार्टी अगले कदम की घोषणा करेगी। हुसैन ने यह भी कहा कि इस तरह की घटनाओं से पख्तूनों में असुरक्षा की भावना पैदा हुई है। एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत बलूचिस्तान के लोगों को परेशान किया जा रहा है। लोगों के जीवन की सुरक्षा की गारंटी देना सरकार और राज्य संस्थानों का कर्तव्य है।
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