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केजरी के विधायक मालामाल, एमसीडी कर्मचारी बेहाल

by WEB DESK
Aug 4, 2021, 02:33 pm IST
in भारत, दिल्ली
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आशीष कुमार 'अंशु'


केजरीवाल अपने विधायकों का वेतन बढ़ाने की कोशिश में लगे हैं, जबकि उनकी गलत नीतियों के कारण एमसीडी के कर्मचारियों के घरों में आज चूल्हा जलाने तक पर संकट है


दिल्ली सरकार पर पिछले कई महीनों से यह सवाल उठ रहा है कि वह दिल्ली नगर निगम को पैसा क्यों नहीं दे रही है ? जबकि उसके पास विज्ञापन से लेकर अपने विधायकों की सैलरी बढ़ाने तक के लिए पर्याप्त पैसा है। केजरीवाल सरकार के इस व्यवहार पर दिल्ली उच्च न्यायालय तक को टिप्पणी करनी पड़ गई कि वह विज्ञापन पर पैसे खर्च कर सकती है तो निगम का पैसा क्यों नहीं दे रही। निगम लंबे समय से अपने कर्मचारियों के वेतन और पेंशन के लिए दिल्ली सरकार के सामने गुहार लगा रहा है, लेकिन दिल्ली सरकार को मानो कोई फर्क नहीं पड़ रहा।

टीम अन्ना को हासिए पर डालकर सक्रिय राजनीति में आए केजरीवाल का अब तक कोई ऐसा सगा नहीं बचा है, जिसे उन्होंने ठगा ना हो। दिल्ली की जनता तो बार—बार ठगी जा रही है। केजरीवाल की राजनीति शुचिता और ईमानदारी की आदर्शवादी बातों से शुरू हुई थी। उनकी बातों में दिल्ली आ गई। दिल्ली को लगा कि केजरीवाल भारतीय राजनीति में मिसाल बनेंगे। लेकिन उनकी सरकार ईमानदारी के क्षेत्र में कुछ नया नहीं कर पाई, लेकिन उन्होंने भ्रष्टाचार में नए कीर्तिमान स्थापित किए। उनके लोग दिल्ली दंगों से लेकर राशन कार्ड बनाने के नाम पर यौन उत्पीड़न करते हुए पकड़े गए।

देखते—देखते दिल्ली वाले केजरीवाल भ्रष्टाचार, अराजकता, झूठ, फरेब और भाई भतीजावाद करने वाले केजरीवाल बन गए। केजरीवाल ने दिल्ली वालों के उस भरोसे को तोड़ा है, जिसकी बुनियाद पर लाखों लोग व्यवस्था परिवर्तन की उम्मीद लगाए बैठे थे।

केजरीवाल ने मुख्यमंत्री बनने के बाद ना सरकारी बंगला छोड़ा, ना सरकारी गाड़ी छोड़ी और ना सरकारी सुरक्षा के ताम—झाम से मुक्त हुए। आज केजरीवाल से मिलना दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्रियों से मिलने के मुकाबले कही अधिक कठिन है। जबकि साहिब सिंह वर्मा, मदन लाल खुराना या फिर शीला दीक्षित से मिलना आम आदमी के लिए इतना कठिन नहीं था, जितना केजरीवाल से मिलना हो गया है।

केजरीवाल अपने विधायकों का वेतन बढ़ाने की कोशिश में लगे हैं, जबकि उनकी गलत नीतियों के कारण एमसीडी के कर्मचारियों के घरों में आज चूल्हा जलाने तक पर संकट है। दिल्ली सरकार के इस व्यवहार पर दिल्ली बीजेपी की यह टिप्पणी सही जान पड़ती है कि स्वराज की बात करते हुए सत्ता में आए मुख्यमंत्री केजरीवाल जब प्रधानमंत्री से मिलने जाते हैं तो सरकार की योजनाएं पूरी करने के लिए मोदी जी से अतिरिक्त सहायता मांगते हैं। दिल्ली की जनता और मीडिया से यही केजरीवाल कहते हैं कि मोदी सरकार हमारी मदद नहीं कर रहा। वहां से फंड आते ही हम सारे वादे पूरे कर देंगे।

दूसरी तरफ जब निगम अपने हक के राजस्व का हिस्सा उनसे मांगता है तो केजरीवाल कहते हैं कि निगम स्वयं पैसा लाए या फिर निगम के भाजपा नेता इस्तीफा दे दें। केजरीवाल तो यह तक कह देते हैं, ''मैं खुद नगर निगम चला लूंगा।''

 

 यह विडम्बना नहीं तो और क्या है कि स्वराज, लोकतंत्र और जनमत संग्रह की बात करने वाले केजरीवाल और उनकी पार्टी शासकीय प्रणाली की नींव नगर निगम पर ऐसी टिप्पणी करते हुए शर्मिन्दा तक नहीं हो रहे। यदि बात छोड़ने और चलाने की ही है तो वे केन्द्र सरकार के पास बात—बात पर पैसा मांगने क्यों चले जाते हैं ? यदि सरकार नहीं चला पा रहे तो छोड़ दें। राष्ट्रपति जी की देखरेख में दिल्ली का भविष्य केजरीवाल सरकार के मुकाबले अधिक सुरक्षित ही होगा।

जब पूरा देश कोरोना जैसी महामारी से जूझ रहा है। बेरोजगारी की स्थिति चिन्ताजनक है। केजरीवाल के पास निगम को देने के लिए पैसा नहीं है। दिल्ली सरकार की कई महत्वपूर्ण योजनाएं पैसों की कमी की वजह से पूरी नहीं हो पा रही हैं। दिल्ली की स्वास्थ सुविधा पूरी तरह लड़खड़ा रही है। शिक्षा का हाल बेहाल है। सार्वजनिक परिवहन से लेकर सड़क तक की स्थिति चिन्ताजनक है। ऐसे समय में विधायकों के वेतन से लेकर भत्ता तक बढ़ाने का प्रस्ताव आम आदमी पार्टी की पूरी राजनीति पर प्रश्नचिन्ह है। यह एक ऐसी राजनीति की तरफ इशारा है, जहां पार्टी के लिए जनता और उसका दुख—दर्द कोई मायने नहीं रखता। मतलब साफ है, केजरीवाल सरकार के खाने के दांत और हैं और दिखाने के और।

ऐसा कहना इसलिए भी अतिश्योक्ति नहीं है, क्योंकि केजरीवाल अपने विधायकों के वेतन बढ़ाने पर अड़े हैं। दिल्ली में एक चुनी हुई सरकार होने के बावजूद प्रशासनिक प्रक्रिया पूरी तरह ठप है। ईमानदारी और राजनीतिक सुचिता की बात करने वाले केजरीवाल की पहचान अब दिल्ली में कुशल प्रशासक की नहीं बल्कि एक अवसरवादी नेता की बन रही है। दिल्ली एक तरफ आक्सीजन की कमी और राजधानी में मौत के मचे तांडव से उबर भी नहीं पाई है, वहीं दूसरी तरफ राज्य के मुख्यमंत्री अपने नेताओं के भत्ते की चिन्ता में डूबे हैं। दिल्ली इस पूरे वाक्ये को अच्छे से देख और समझ रही है।

 

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