राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020: संभावनाएं और चुनौतियां

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रितु मिश्रा एवं सुघोष माधव
 


हाल की व्यावसायिक भविष्यवाणियां यह संकेत भी दे रही हैं कि 2030-2032 तक भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (10 ट्रिलियन) बन जाएगा। यह लक्ष्य केवल प्राकृतिक संसाधनों की मदद से हासिल नहीं हो सकता, बल्कि इसमें अहम भूमिका होगी ज्ञान के जरिए विकसित संसाधनों की


स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ‘जनता को शिक्षित बनाओ और उनका सर्वांगीण विकास करो… तभी राष्ट्र का स्वरूप संभव है।’

औपनिवेशिक शासन से आजादी के बाद के 75 वर्षों में एक देश के रूप में हमने औद्योगिक उत्पादन,  विविध सेवा क्षेत्र, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के विस्तार, परमाणु हथियार और संयंत्रों के विकास से लेकर  सबसे नई उपलब्धि, कोरोना वायरस के खिलाफ स्वदेशी वैक्सीन तैयार करने तक उल्लेखनीय प्रगति की है। इसमें कोई शक नहीं कि इन उपलब्धियों ने हमें दुनिया में एक महत्वपूर्ण आर्थिक शक्ति के तौर पर स्थापित किया है। हाल की व्यावसायिक भविष्यवाणियां यह संकेत भी दे रही हैं कि 2030-2032 तक  भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (10 ट्रिलियन) बन जाएगा। दस ट्रिलियन अर्थव्यवस्था का यह लक्ष्य केवल प्राकृतिक संसाधनों की मदद से हासिल नहीं हो सकता, बल्कि इसमें अहम भूमिका होगी ज्ञान के जरिए विकसित संसाधनों की।

भारतीय शिक्षा क्षेत्र के स्वरूप में सुधार करने के लिए वर्तमान सरकार ने एक व्यापक राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (एनईपी-2020) पेश की। एनईपी -2020 के नवीनतम संस्करण में ऐसी शिक्षा प्रणाली का मसौदा है जो भारतीय ज्ञान पर केंद्रित है जिसके जरिए हमारा राष्ट्र एक ऐसा समाज बन सकता है जहां  ज्ञान की अविरल धारा से उपलब्धियों का कोष समृद्ध होता रहेगा। हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली स्नातकों में अनुसंधान के लिए रुचि, या उसके लिए उपयुक्त माहौल तैयार करने में विफल रही है जिससे नए पेटेंट हासिल करने और ज्ञानवर्धक किताबों के प्रकाशनों में हम पिछड़े रहे। सौभाग्य से इस कमी पर नजर गई और इस बिन्दु पर ध्यान देते हुए एक नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (एनईपी-2020) तैयार हुई। उम्मीद है कि यह पिछली शिक्षा नीतियों की सारी कमियों को दूर कर देश के उज्ज्वल भविष्य का मार्ग प्रशस्त करेगी।

नीचे नई शिक्षा नीति -2020 में शामिल किए गए उन बिन्दुओं का जिक्र किया गया है, जो बेहतरीन हैं। ये युवाओं में पढ़ाई के प्रति बुनियादी बदलाव और नया नजरिया विकासित करेंगी, इसके अलावा स्कूल स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा पाठ़यक्रम के शामिल होने, साथ-साथ सभी विषयों में डिग्री स्तर पर अनुसंधान को अनिवार्य करने के संबंध में सामान्य सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव भी लाएंगी।

व्यावसायिक प्रशिक्षण पाठ़यक्रम
एनईपी-2020 में मिडिल स्कूल स्तर पर व्यावसायिक प्रशिक्षण को शामिल किया गया है। इस कदम से विविध रुचियों वाले उन छात्रों की कौशल क्षमता के विकास के अवसर उपलब्ध होंगे जिनके पास वह विशेषता या क्षमता मौजूद तो थी, पर उनके लिए स्कूल स्तर पर कोई सुविधा उपलब्ध नहीं थी। साथ ही अन्य व्यावसायिक क्षेत्रों जैसे बढ़ई,  कुम्हार,  लैंडस्केप,  बागवानी और अन्य संबंधित तकनीकी विषयों पर भी स्कूल स्तर पर प्रशिक्षण मुहैया कराया जाएगा। स्कूली पाठ्यक्रम में इसका समावेश निश्चित रूप से छात्रों की वास्तविक रुचि को जल्दी पहचानने में मदद करेगा और उसी के अनुसार उनके जीवन का मार्गदर्शन करेगा।

विषय चुनने की आजादी
कालेज में प्रवेश करने से पूर्व स्कूल स्तरों के लिए बड़े सार्थक परिवर्तन किए गए हैं। इसमें छात्र को 12वीं के स्तर पर अपनी रुचि के किसी भी विषय को चुनने की स्वतंत्रता दी गई है। वर्तमान प्रणाली में छात्रों के सामने सीमित विकल्प हैं। उन्हें हाई स्कूल में ही यह फैसला लेना पड़ता है कि वे वाणिज्य, विज्ञान या कला और मानविकी में से किसमें प्रवेश लें। उसके बाद वे अपना विषय बदल नहीं सकते, न ही अपनी पसंद के विभिन्न विषयों को मिला सकते हैं। संशोधित एनईपी-2020 में छात्र इंटरमीडिएट स्तर पर विज्ञान के एक विषय के साथ मानविकी, इतिहास, दर्शन या वाणिज्य से कोई भी दूसरा विषय चुन सकता है। इससे छात्र को आगे कॉलेज,  डिग्री या स्नातक और एमए में किसी भी विषय को चुनने की अतिरिक्त स्वतंत्रता मिलेगी।

डिग्री स्तर पर अर्जित अंकों का हस्तांतरण
एनईपी के लागू होने के बाद छात्र चार वर्षीय डिग्री प्रोग्राम शुरू कर सकते हैं। अगर दो साल बाद उन्हें वह विषय दिलचस्प नहीं लगता तो वे उसे छोड़कर दूसरा विषय चुन कर पढ़ाई जारी रख सकते हैं, साथ ही पहले वाले विषय में हासिल परीक्षा- अंकों को बाद में चुने गए विषय के परीक्षा-अंकों में जोड़कर डिग्री हासिल कर कर सकते हैं। अगर वे दो साल ही पढ़ाई करते हैं तो उन्हें एडवांस डिप्लोमा मिलेगा;  अगर वे तीन वर्ष का पाठ्यक्रम पूरा करते हैं तो उन्हें डिग्री मिलेगी। चार वर्ष का प्रोजेक्ट रिसर्च प्रशिक्षण पूरा होने पर उन्हें स्नातक की पूर्ण डिग्री प्रदान की जाएगी।

परा-स्नातक स्तर पर रिसर्च प्रोजेक्ट अनिवार्य
इसी तरह,  परा-स्नातक की अवधि एक से दो साल रखी गई है जिसमें अनुसंधान संबंधी एक निश्चित स्तर की क्षमताओं के साथ एमए की पूर्ण डिग्री प्राप्त करने के लिए बेहतर विशेषज्ञता और अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित किया गया है जिससे उच्च शिक्षा की सभी प्रणालियों में रिसर्च एंड एनालिसिस दृष्टिकोण विकसित करने में मदद मिलेगी। एम.फिल डिग्री खत्म कर दी गई है, क्योंकि छात्रों में स्नातक और परा-स्नातक पाठ्यक्रमों के दौरान प्रारंभिक शोध क्षमताएं विकसित होने लगेंगी।

सहायक प्रोफेसर बनने के लिए अब पीएचडी अनिवार्य
एनईपी-2020 लागू होने के बाद सहायक प्रोफेसर बनने के लिए अब पीएचडी डिग्री अनिवार्य कर दी गई है जो पहले नहीं थी। किसी भी तीन प्रकार के उच्च शिक्षा संस्थानों से नेट या एसएलईटी में पास होना भी अनिवार्य है। ये ऊंचे मानक ऊंची शिक्षा उपलब्ध कराने के माहौल को बेहतर करेंगे और हमारी नई पीढ़ी के छात्रों को सुयोग्य शिक्षक और शोध क्षेत्रों में कुशल मार्गदर्शक प्रदान करेंगे।

विदेशी विश्वविद्यालय अब भारत में कार्य कर सकेंगे
नई एनईपी-2020 के अनुसार,  शीर्ष पायदान के 100 विश्वविद्यालयों को भारत में सीधे तौर पर कार्य करने की अनुमति दी जाएगी और वे प्रभावी रूप से भारतीय विश्वविद्यालयों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे। यह ज्यादा बेहतर और सुयोग्य शिक्षकों और प्रतिभाशाली छात्रों को आकर्षित करने के लिए एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धी माहौल को प्रोत्साहित करेगा, जो अंतत: भारतीय शिक्षा प्रणाली के स्तर को बेहतर बनाएगा। पीएचडी कार्यक्रम के पाठ्यक्रम में मुख्य विषय से संबंधित अध्ययन में शिक्षण के साथ-साथ अनुसंधान पद्धति,  आवश्यक पाठ्यक्रम के विकास जैसे पहलू शामिल होंगे।

राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (एनआरएफ)
सभी विषयों और पाठ्यक्रमों में प्रतिस्पर्धी, नवाचार और समाधान से जुड़े अनुसंधान प्रस्तावों को निधि मुहैया कराने के लिए विभिन्न वित्त पोषण एजेंसियों के बजाय एक राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन का गठन किया जाएगा।

वरिष्ठ या सेवानिवृत्त शिक्षकों को छोटी या लंबी अवधि के लिए फिर से नियुक्त किया जाएगा जो  अनुसंधान से जुड़े नवाचार के लिए मार्गदर्शन और पेशेवर सहायता प्रदान करने में मदद करेंगे। उच्च शिक्षा में इन सभी सुविधाओं को उपलब्ध कराने के लिए एक राष्ट्रीय परामर्श मिशन की स्थापना की जाएगी। उपरोक्त विशेषताएं उम्मीद जगाती हैं कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 हमारी शिक्षा प्रणाली में बेहतर और सार्थक बदलाव लाने वाली है। मेरी राय में व्यावसायिक प्रशिक्षण को पाठ्यक्रम में शामिल करने और स्नातक स्तर पर छात्रों को विविध विषयों को चुनने या छोड़ने का विकल्प देने से निश्चित रूप से छात्रों को उनकी वास्तविक रुचि के क्षेत्र में आगे बढ़ने और अपना लक्ष्य प्राप्त करने में मदद मिलेगी। ये नई नीतियां पहली बार स्नातक और परा-स्नातक स्तरों पर उच्च स्तरीय शोध और विविध समान या असमान विषयों के पाठ्यक्रमों को बढ़ावा देने वाली एक उदार शिक्षा प्रणाली और सही मायने में खुले आसमान में उड़ान की आजादी का आश्वासन दे रही है।  

(डॉ. रितु मिश्र फिलहाल नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ इम्यूनोलॉधी, नई दिल्ली स्थित फैकल्टी में बतौर डीएसटी-इनस्पायर कार्यरत हैं वहीं डॉ. सुघोष माधव शहीद भगत सिंह कॉलेज दिल्ली विवि में अस्सिटेंट प्रोफेसर (अतिथि) हैं)

 

एनईपी-2020 : संभावित चुनौतियां

एनईपी -2020 के वादे निश्चित रूप से महत्वाकांक्षी हैं और हमारी शिक्षा प्रणाली और रोजगार की दिशा में उज्जवल भविष्य का आगाज कर रहे हैं। चुनौती बस एक है कि इसपर उपयुक्त रूप से अमल हो।
हालांकि, इस नीति को कुछ अड़चनों का भी सामना करना पड़ सकता है;

  •  अभी हमारी प्राथमिक शिक्षा प्रणाली में प्रशिक्षित शिक्षकों की भारी कमी है, साथ ही उपयुक्त संसाधनों का भी अभाव है। ऐसे में हाई स्कूल स्तर पर विभिन्न व्यावसायिक विषय संबंधी अपेक्षित प्रशिक्षण उपलब्ध कराना एक मुश्किल काम होगा। इसलिए सबसे पहले विभिन्न राज्य सरकारों को पहले हमारे स्कूलों में व्यावसायिक विषयों के प्रशिक्षकों को भर्ती करने के लिए बड़ा अभियान चलाने की जरूरत होगी।

  • उच्च शिक्षा महाविद्यालयों और छोटे विश्वविद्यालयों के मौजूदा प्रदर्शन और उनके स्तर के आधार पर शोध के लिए सहायता राशि के वितरण के समय काफी भेदभाव अनुभव हो सकता है। हो सकता है कि अधिकांश राशि पहले से स्थापित संस्थानों के हिस्से चली जाए और कम सुविधा वाले महाविद्?यालयों और शैक्षणिक संस्थानों को खुद को बेहतर करने का मौका ही न मिले जिससे गुणवत्ता के मानक पर वे और भी निचली पायदान पर खिसक सकते हैं।

अमल संबंधी चुनौतियों के बावजूद यह नई नीति संतोषजनक उम्मीदों और संभावनाओं का आसमान थमा रही है। भारतीय शिक्षा प्रणाली को पुनर्जीवित करने के लिए उसमें हमारे सकल घरेलू उत्पाद की 6% राशि का योगदान करना होगा। कुल मिलाकर, एनईपी 2020 युवा पीढ़ी के उज्ज्वल भविष्य और शिक्षा प्रणाली में उल्लेखनीय बदलाव की उम्मीद लेकर आयी है। अब एक संशोधित और सुनियोजित शिक्षा नीति राष्ट्र को प्रगति के मार्ग पर ले जाने के लिए तैयार है;  आवश्यकता है तो बस उपयुक्त कार्यान्वयन की जिससे जमीनी स्तर पर इसका लाभ मिले। आज विभिन्न सरकारी एजेंसियों, राज्य सरकारों, नीति निमार्ताओं, निजी क्षेत्रों, शिक्षाविदों और सामाजिक कार्यकतार्ओं को आगे बढ़कर अपना बहुमूल्य योगदान देकर एनईपी 2020 की सफलता सुनिश्चित करने में भरपूर प्रयास करना चाहिए।

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