रिम्स प्रशासन बना 'दवाई दोस्त' का दुश्मन
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रिम्स प्रशासन बना ‘दवाई दोस्त’ का दुश्मन

by WEB DESK
Jul 30, 2021, 03:00 pm IST
in भारत, बिहार
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रिम्स परिसर स्थित 'दवाई दोस्त' के बाहर दवाई लेने वालों की भीड़

रितेश कश्यप 


रांची के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स के परिसर में एक निजी ट्रस्ट द्वारा संचालित दवाई दुकान 'दवाई दोस्त' को बंद करने का आदेश दिया गया है। 24 घंटे खुली रहने वाली इस दुकान से प्रतिदिन 700—800 मरीजों को बहुत ही सस्ती दर पर दवाइयां मिलती हैं। किसी—किसी दवाई पर 50 से 80 प्रतिशत तक की छूट मिलती है। इसके बावजूद रिम्स प्रशासन 'दवाई दोस्त' के साथ दुश्मन जैसा व्यवहार कर रहा है


झारखंड का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है रांची स्थित राजेंद्र इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस यानी रिम्स। यहां प्रतिदिन सैकड़ों लोग इलाज कराने आते हैं। इनमें से लगभग 90 प्रतिशत लोग गरीब होते हैं। इन गरीब मरीजों की मदद के लिए लिए 2015 से एक निजी ट्रस्ट 'प्रेमसंस एंड बारोलिया' की देखरेख में रिम्स परिसर में दवाई की एक दुकान चल रही है, जिसका नाम है  'दवाई दोस्त'। इस दुकान में रिम्स में इलाज कराने वाले हर मरीज को 24 घंटे बाजार भाव से बहुत ही कम दर पर दवाइयां मिलती हैं। किसी दवा पर तो 80 से 50 प्रतिशत तक की छूट मिलती है। इस दुकान से प्रतिदिन 700—800 मरीज लाभान्वित होते हैं। अब रिम्स प्रशासन ने ट्रस्ट के संचालकों को एक महीने के अंदर दुकान खाली करने को कहा है।

ट्रस्ट के न्यासी राज बारोलिया कहते हैं कि इस दुकान से सस्ती दवाइयां तो मिलती ही हैं, इसके साथ ही बहुत ही गरीब मरीजों को नि:शुल्क दवाइयां दी जाती हैं। अब इस दवा दुकान को रिम्स प्रबंधन हटा कर मरीजों पर बोझ बढ़ाना चाहता है। एक और न्यासी पुनीत पोद्दार ने कहा कि 2020 में रिम्स के निर्देश पर ही दुकान का विस्तार किया गया था। अब अचानक दुकान बंद करने का तुगलकी फरमान सुनाना समझ से परे की बात है। भाजपा ने भी रिम्स प्रशासन के इस निर्णय का विरोध किया है। भाजपा विधायक दल के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि 'दवाई दोस्त' दुकान को बंद कराने का प्रयास अनुचित है। इससे गरीब मरीजों को दवाई मिलने में दिक्कत होगी।

एक रिपोर्ट यह भी है कि इन दिनों रिम्स में स्वास्थ्य सुविधाएं खुद ही वेंटिलेटर पर हैं। जांच मशीनों की घोर कमी बताई जा रही है। रोगियों को किसी भी तरह की जांच बाहर से करानी पड़ रही है, इस कारण उन्हें कई गुना ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ रहा है। दवाई तो मिलती ही नहीं है। इस हालत में 'दवाई दोस्त' को बंद करने का आदेश देना लोगों को ठीक नहीं लग रहा है।

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