मृदुल त्यागी
देश में कुछ मीडिया घराने और पोर्टल चीन की फंडिंग पर चल रहे हैं। अब यह महज कयासबाजी नहीं है बल्कि इसकी पुष्टि हो चुकी है। न्यूजक्लिक ऐसा ही एक उदाहरण है। इस नामालूम से पोर्टल पर दुनिया की कई कंपनियों ने पैसे बरसाए। क्यों? इनमें कई कंपनियों के एड्रेस एक ही हैं। जाहिर है, ये शेल कंपनियां हैं। यह पैसा कैसे और किनमें बंटा, ये सामने आने पर देश में चीन समर्थक पूरा गठजोड़ सामने आने लगा है
चालीस के दशक के एक मशहूर नॉवलिस्ट थे एफ. स्कॉट फिट्जगेराल्ड। उन्होंने कहा था- मैं कभी कम्युनिस्ट नहीं हो सकता। कोई मुझे जबरन दबाकर अनुशासित नहीं कर सकता। मुझे कभी कोई यह निर्देश नहीं दे सकता कि मुझे क्या लिखना है।
यह तो खैर स्कॉट की बात थी। उन्हें इसलिए यह कहना पड़ा क्योंकि यह वो दौर था, जब अमेरिका में वामपंथी खेमा बुद्धिजीवियों, लेखकों को प्रभावित कर रहा था। तब अमेरिका के मीडिया और साहित्य में प्रतिकार हुआ। जॉर्ज आॅरवेल की एनिमल फार्म जैसी कालजयी कृति आई। यह उस समाज की अंतश्चेतना थी। लेकिन आज का भारत उसी मुकाम पर है। तब सोवियत संघ अमेरिका के मीडिया और साहित्य में अपने गुर्गों को स्थापित करना चाहता था। अब चीन है, जो भारत में यही प्रयोग कर रहा है। लेकिन दुर्भाग्य है, भारत में अपने ही देश का विरोध करने वाला एक बुद्धिजीवी गैंग है। यह हिंदू, हिंदू चेतना, राष्ट्रवाद, राष्ट्रवादी सरकार के खिलाफ किसी भी हद तक जा सकता है। चीन ऐसे पत्रकारों, लेखकों, बुद्धिजीवियों को अपनी विचारधारा का मानता है। हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय ने इस बात का खुलासा किया है कि न्यूजक्लिक नाम के मीडिया पोर्टल और प्रमोटरों ने मनीलांड्रिंग के जरिये चीन से 38 करोड़ रु. की फंडिंग हासिल की। घाटे में चल रही एक नामालूम कंपनी का दस रुपये का शेयर चीन की डमी इन्वेस्टमेंट कंपनियों के जरिये 1,10,00 रुपये से अधिक की कीमत पर बेचा गया।
पहले जरा न्यूजक्लिक मामले को समझें। इस तरह समझिए कि कैसे उन मीडिया प्लेटफार्मों में पैसा धकेला जा रहा है, जो भारत में चीन के एजेंडे को पूरा कर सकें। इस सारे खेल में श्रीलंकाई-क्यूबा मूल का एक कारोबारी नेविल रॉय सिंघम है। सिंघम दुनिया भर में फैले सीपीसी के एजेंटों में से एक है, जिसका चीन से सीधा संबंध स्थापित करना मुश्किल है, लेकिन वह चीन के लिए काम करता है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच में यह सनसनीखेज मामला सामने आया। यह रकम मूल कंपनी पीपीके न्यूजक्लिक स्टूडियो प्राइवेट लिमिटेड को 2018 से 2021 के बीच प्राप्त हुई। क्रॉनोलॉजी समझिए। यह दुनिया पर चीन के कोविड वायरस हमले से ऐन पहले शुरू हुआ। यही वह दौर था, जब भारत और चीन के बीच सीमा पर टकराव चल रहा था और अब तक जारी है।
न्यूजक्लिक को मिले चीन के फंड का एक हिस्सा गौतम नवलखा को भी गया है। गौतम नवलखा एक्टिविस्ट वेशधारी नक्सली है। भीमा कोरेगांव मामले के बाद वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने का आरोपी है। आप इसी से समझ सकते हैं कि इस पैसे की प्रकृति क्या है। यह भारत विरोधी और चीन समर्थक लॉबी का फंड है। ईडी ने नवलखा से न्यूजक्लिक के संस्थापक और प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ के साथ संबंधों को लेकर भी पूछताछ की है।
न्यूजक्लिक को जो फंडिंग मिली है, वह एक्सपोर्ट आॅफ सर्विसेज से प्राप्त आय दर्शाई गई है। बड़ा वाजिब सवाल है कि न्यूजक्लिक, जो कि एक आॅनलाइन पोर्टल है, उसने कौन-सी सेवाओं को भारत से बाहर उपलब्ध कराया है। जाहिर है, ये सेवाएं पोर्टल पर प्रचार या समाचार सामग्री परोसने वाली हैं। हालांकि पुरकायस्थ पूरी तरह से सिंघम का बचाव कर रहे हैं। उनका कहना है कि सिंघम एक अमेरिकी नागरिक है। उसने सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री से पैसा बनाया है। लेकिन मामला बहुत गहरा है। जांच के दौरान सामने आया है कि न्यूजक्लिक को अमेरिका की जस्टिस एंड एजुकेशन फंड इंक, जीएसपीएएन एलएलसी और ट्राईकॉन्टिनेंटल लिमिटेड इंक से फंड मिला। कमाल की बात यह है कि इन सभी का पता एक है। जाहिर है, ये शेल कंपनियां हैं, जो इस तरह की फंडिंग के लिए खड़ी की जाती हैं। ब्राजील की एक कंपनी से भी न्यूजक्लिक को पैसा मिला है। इस नामालूम से पोर्टल पर दुनिया भर से पैसे की बरसात हो रही है, तो सवाल उठने लाजिमी हैं। इसके अलावा शेयरधारकों की तलाशी के दौरान सामने आया कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) के संबंध में ईमेल का सिलसिला चलता रहा था।
ईडी को इस बात का भी पता चला है कि अमेरिका के डेलवेयर स्थित वर्ल्डवाईड मीडिया होल्डिंग एलएलसी से न्यूजक्लिक को अप्रैल 2018 में 9.59 करोड़ रुपये मिले थे। फिर इसी कंपनी से 20.92 करोड़ की एक और फंडिंग हासिल हुई। रसीदों में वही दर्ज है, सेवाओं को भारत से बाहर उपलब्ध कराने का शुल्क। आखिर न्यूजक्लिक में ऐसे क्या सुर्खाब के पर लगे हैं। आगे देखिए। अप्रैल 2018 में इस कंपनी के गठन के समय शेयर की फेस वैल्यू 10 रुपये थी। लेकिन इस नामालूम व घाटे में चलने वाली कंपनी का शेयर ऊपर उल्लिखित कंपनी ने 1,15,10 रुपये प्रति शेयर की दर से खरीदा। ऐसा विदेशी फंडिंग को एफडीआई का मुलम्मा चढ़ाने के लिए किया गया। न्यूजक्लिक ने यह सब अकेले हजम नहीं किया। समान विचारधारा (पढ़ें-अर्बन नक्सली) पत्रकारों को मोटी रकम बांटी गई। ये वही उपकृत पत्रकार हैं, जो चीन के पक्ष में हल्ला मचाए रहते हैं। पुरकायस्थ से सीपीएम के एक कार्यकर्ता बप्पादित्य सिन्हा को मोटी रकम देने की बाबत पूछताछ हुई। बप्पादित्य सिन्हा कई बड़े मार्क्सवादी नेताओं का ट्विटर एकाउंट संभालता है। कंपनी के अंदर इस कदर काला-सफेद चल रहा था कि कार्यालय में मरम्मत के लिए नवीं पास इलेक्ट्रिशियन को 1.55 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। आप समझ सकते हैं कि इलेक्ट्रिशियन के नाम चढ़ा यह पैसा कहां पहुंचा होगा। पुरकायस्थ वही भाषा बोल रहे हैं, जो हम अक्सर ऐसे मामलों में सुनते आए हैं। उन्हें कानून पर भरोसा है और अदालत में सब साबित हो जाएगा। बहरहाल पुरकायस्थ को गिरफ्तारी का डर है। उन्हें उच्च न्यायालय से 29 जुलाई तक गिरफ्तारी से राहत मिली हुई है।
अमेरिकी अखबार भी हो चुके हैं चीन के गुलाम
अमेरिका के जस्टिस डिपार्टमेंट के दस्तावेजों से सनसनीखेज खुलासा हुआ है। चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ चाइना (सीपीसी) ने अपने अखबार चाइना डेली के जरिए अमेरिकी मीडिया को अपने पक्ष में करने के लिए लाखों डॉलर खर्च किए हैं। चीन के अंग्रेजी भाषा के अखबार चाइना डेली ने अमेरिका के जिन मीडिया हाउस पर बड़ी रकम खर्च की है, उनमें टाइम मैग्जीन और फॉरेन पॉलिसी मैगजीन जैसे संस्थान भी शामिल हैं। छह महीने के दौरान इन संस्थानों को ये पैसे दिए गए हैं। रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि टाइम मैगजीन को 7,00,000 डॉलर, फाइनेंशियल टाइम्स को 3,71,577 डॉलर, फॉरेन पॉलिसी मैगजीन को 2,91,000 डॉलर, लॉस एंजिल्स टाइम्स को 2,72,000 डॉलर और अन्य संस्थानों को 10 लाख डॉलर दिए गए हैं। चाइना डेली अखबार चीन की सत्तारूढ़ पार्टी के नियंत्रण में है। इसके अलावा चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने अमेरिका में वॉशिंगटन पोस्ट और वॉल स्ट्रीट जर्नल को क्रमश: 46 लाख डॉलर और 60 लाख डॉलर दिए थे। विभाग के दस्तावेजों से पता चलता है कि चीन ने अमेरिकी अखबारों को विज्ञापन देने के नाम पर भी मोटी रकम खर्च की है। इसमें न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए गए 50,000 डॉलर, फॉरेन पॉलिसी को 2,40,000 डॉलर, द देज मोइंस रजिस्टर को 34,600 डॉलर और सीक्यू-रॉल कॉल को 76,000 डॉलर की रकम शामिल है। चीन ने अमेरिकी अखबारों को 1,10,02,628 डॉलर का विज्ञापन दिया और ट्विटर को 2,65,822 डॉलर के ऐड दिए। अब आप समझ सकते हैं कि क्योंकि कोविड़ से मरे भारतीयों के अंतिम संस्कार का फोटो इन अखबारों के पहले पेज पर छपता है। आप ये भी समझ सकते हैं कि क्यों ट्विटर चीन के खिलाफ कुछ लिखने पर बौखला जाता है।
द हिंदू मना रहा चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की जयंती
चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ चाइना अपनी स्थापना के सौ साल पूरे होने का जश्न मना रही है। यह चीन की ही बेशर्मी हो सकती है कि उसकी लैब से पैदा हुआ वायरस पूरी दुनिया में तबाही मचा रहा है और चीन जश्न मना रहा है। लेकिन भारत में भी यह जश्न मनाया गया। वामपंथियों के प्रात:कालीन नाश्ते का हिस्सा बन चुके द हिंदू ने यह जश्न मनाया है। 1 जुलाई को द हिंदू ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की सालगिरह पर चीन का पूरे पेज का विज्ञापन छापा है। इसे अखबार में बहुत अहमियत रखने वाले पेज तीन पर छापा गया। यह एक नजर में समाचार जैसा ही है। बस नीचे एक कोने में काले रंग की स्याही से बहुत बारीक अक्षरों में पेड कंटेंट होने का जिक्र है। इस विज्ञापन में चीन के राजदूत बड़ी शान के साथ डीगें हांक रहे हैं कि दुनिया को आर्थिक प्रगति के लिए किस तरह चीन का ऋणी होना चाहिए। बस बात विज्ञापन तक नहीं है। चीन से पैसा लेकर द हिंदू ने पूरा कर्ज उतारा। तीन दिन के अंदर दो संपादकीय प्रकाशित किए गए जिसमें चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और वहां के तानाशाह शी जिनपिंग की तारीख के कसीदे काढ़े गए।
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