पुस्तक का विमोचन करते श्री मोहन राव भागवत। साथ में हैं (बाएं से) प्रो. नानी गोपाल महंत, डॉ. हिमंत बिस्व सरमा और प्रो. पी.जे. हांडिक
गत 21 जुलाई को गुवाहाटी में ‘सिटीजनशिप डिबेट ओवर एनआरसी एंड सीएए : असम एंड पॉलिटिक्स आॅफ हिस्ट्री’ पुस्तक का विमोचन कार्यक्रम हुआ। इसके मुख्य अतिथि थे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन राव भागवत। इस पुस्तक के लेखक हैं गुवाहाटी विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रो. नानी गोपाल महंत।
अपने उद्बोधन में श्री भागवत ने कहा कि भारत हमारे लिए भोग-भूमि नहीं, बल्कि कर्म-भूमि है, कर्तव्य की भूमि है। यहां रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति का इस भूमि के प्रति, समाज के प्रति कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि ‘सेकुलरिज्म’, ‘सोशलिज्म’ और ‘डेमोक्रेसी’, ये बातें हमें दुनिया से नहीं सीखनी हैं, ये हमारी परंपरा में, हमारे खून में हैं। सबसे अधिक प्रामाणिकता से उसको लागू करके हमारे देश ने उसको जीवंत रखा है। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति स्व. प्रणब मुखर्जी से हुई भेंट के दौरान हुई कुछ बातों को उद्घृत करते हुए कहा, ‘‘पहली बार मेरी प्रणब दा से भेंट हुई, तब उन्होंने ही कहा कि दुनिया हमें पंथनिरपेक्षता नहीं सिखा सकती है, हमारा संविधान ही पंथनिरपेक्ष है। हमारा संविधान पंथनिरपेक्ष है, इसलिए हम सेकुलर हैं, ऐसा नहीं है। सदियों पुरानी हमारी संस्कृति ने हमारी सोच ऐसी बनाई है। इसलिए दुनिया हमें पंथनिरपेक्षता के बारे में न बताए।’’
श्री भागवत ने आगे कहा कि एक बार भाऊराव देवरस जी इंग्लैंड गए थे। वहां राजनयिकों, सांसदों आदि के साथ उनका भोजन था। भोजन के समय एक ने उनके स्वागत में भाषण दिया, ‘‘बड़ा अच्छा लगता है कि भारत के साथ हमारा संबंध आया, भारत को प्रजातंत्र हमने दिया है, वगैरह-वगैरह।’’ इस पर भाऊराव जी ने उनको कहा कि आपने सब कुछ अच्छा कहा, धन्यवाद। लेकिन एक तथ्यात्मक गलती है। यह गणतंत्र आपने नहीं दिया। शायद हमारे यहां से वाया ग्रीक आपके यहां आया होगा, क्योंकि जब आपका देश नहीं था तब भी हमारे यहां वैशाली, लिच्छवी जैसे अनेक गणराज्य थे।
सरसंघचालक ने कहा कि सीएए और एनआरसी किसी भारतीय नागरिक के विरुद्ध बनाया हुआ कानून नहीं है। भारत के मुसलमानों को सीएए से कुछ नुकसान नहीं पहुंचने वाला। राजनीतिक लाभ के लिए दोनों विषयों (सीएए-एनआरसी) को ‘हिंदू-मुसलमान का विषय’ बना दिया। अपने देश के नागरिक कौन हैं, यह जानने की पद्धति प्रत्येक देश में है, उसमें एनआरसी एक पद्धति है। यह किसी के खिलाफ नहीं है। उन्होंने कहा कि हमें दुनिया की किसी भाषा, मजहब से परहेज नहीं है, क्योंकि हमारी दृष्टि वसुधैव कुटुंबकम् की है। हमारे यहां पहले से ही पूजा की स्वतंत्रता है। हम भगवान को एक रूप में देखते हैं, आप किसी दूसरे रूप में देखते हैं, ठीक है। अपनी भक्ति में हम पक्के हैं, आप अपनी भक्ति में पक्के रहें। हमको कोई दिक्कत नहीं है।
उन्होंने कहा कि भारत में 1930 से योजनाबद्ध रीति से मुसलमानों की संख्या बढ़ाने के प्रयास हुए। एक योजनाबद्ध विचार था कि जनसंख्या बढ़ाएंगे, अपना प्रभुत्व, अपना वर्चस्व स्थापित करेंगे और इस देश को पाकिस्तान बनाएंगे। यह विचार पूरे पंजाब, सिंध, असम और बंगाल को लेकर किया गया था। कुछ मात्रा में सत्य हो गया, भारत का विखंडन हो गया, पाकिस्तान बन गया। लेकिन जैसा पूरा चाहिए था, वैसा नहीं मिला। असम नहीं मिला, बंगाल और पंजाब आधा ही मिला। अब इसको कैसे लेना है, ऐसा भी विचार चला। इसलिए कुछ लोग भारत में अपनी जनसंख्या बढ़ाने का उद्देश्य लेकर आते थे। इसलिए कुछ लोगों से उनको सहायता भी मिलती थी, आज भी मिलती है।
इस अवसर पर असम के मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्व सरमा ने कहा कि यह पुस्तक उन लोगों को तथ्यात्मक आईना दिखाती है, जो सीएए और एनआरसी का निराधार विरोध करते हैं। यह पुस्तक लोकतांत्रिक विमर्श को प्रोत्साहित करती है। असम में कथित वामपंथी बौद्धिक ऐसी धारा के साथ आगे बढ़ते हैं, जिसका सत्य से कोई संबंध नहीं। लेकिन प्रो. नानी गोपाल महंत जैसे लोग आज भी समाज को वस्तुस्थिति बताते हुए प्रबोधन करने का साहस रखते हैं। कार्यक्रम में गुवाहाटी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. पी.जे. हांडिक समेत अन्य प्रबुद्ध जन उपस्थित रहे।
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