कोविड-19 संक्रमण के बाद शरीर में बनने वाली एंटीबॉडी को लेकर एक शोध परिणाम सामने आया है। इसके अनुसार, सार्स-कोव-2 संक्रमण के नौ महीने बाद भी शरीर में एंटीबॉडी का स्तर उच्च होता है, संक्रमण चाहे गंभीर (सिम्पटोमैटिक) हो या बिना लक्षण वाले (एसिम्पटोमैटिक)। यह अध्ययन लंदन के इंपीरियल कॉलेज और इटली के पाडुआ विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने किया है।
नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में इस शोध के नतीजे प्रकाशित हुए थे। शोधकर्ताओं ने फरवरी-मार्च 2020 में कोरोना वायरस से संक्रमित इटली के ‘वो’ शहर के 3,000 लोगों में से 85 प्रतिशत के आंकड़ों का अध्ययन किया। मई और नवंबर 2020 में फिर से उनमें एंटीबॉडी की जांच की गई। शोधकर्ताओं ने पाया कि फरवरी-मार्च में संक्रमित 98.8 प्रतिशत लोगों में नवंबर में भी एंटीबॉडी कायम थी। यह भी पता चला कि संक्रमण के गंभीर या बिना लक्षण वाले मामलों में एंटीबॉडी का स्तर समान रहा।
इंपीरियल कॉलेज की शोधकर्ता और अध्ययन की मुख्य लेखिका डॉ. इलारिया डोरिगटी ने कहा, "हमें ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला, जिससे पता चल सके कि लक्षण वाले या बिना लक्षण वाले लोगों में एंटीबॉडी का स्तर अलग-अलग होता है। इससे यह संकेत मिलता है कि शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली, लक्षण या बीमारी की गंभीरता पर निर्भर नहीं करती है। हालांकि लोगों में एंटीबॉडी का स्तर अलग-अलग रहा। कुछ लोगों में एंटीबॉडी का स्तर बढ़ गया, जिससे यह संकेत मिला कि वे दोबारा वायरस से संक्रमित हुए होंगे। इसका मतलब यह है कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग परीक्षणों और अलग-अलग समय में संक्रमण के स्तर के अनुमानों की तुलना करते समय सावधानी बरतने की आवश्यकता है।’’
वहीं, पाडुआ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एनरिको लावेजो ने कहा, मई की जांच से पता चला कि ‘वो’ शहर की 3.5 प्रतिशत आबादी संक्रमित हुई। बहुत लोगों को तो मालूम ही नहीं था कि वे कोरोना वायरस से संक्रमित हुए थे, क्योंकि उनमें किसी तरह के लक्षण नहीं थे।’’ शोधकर्ताओं ने इसका भी विश्लेषण किया कि घर के एक सदस्य के संक्रमित होने पर और कितने लोग संक्रमित हुए। तब पता चला कि चार में से एक मामले में परिवार में किसी एक के संक्रमित होने पर दूसरे सदस्य भी संक्रमित हुए। यानी 80 प्रतिशत फैलाव 20 प्रतिशत संक्रममित लोगों के कारण होता है।
आबादी में एक संक्रमित व्यक्ति दूसरों को कैसे संक्रमित कर सकता है, इसमें बड़े अंतर बताते हैं कि व्यवहार संबंधी कारक महामारी नियंत्रण के लिए महत्वपूर्ण हैं। शारीरिक दूरी और मास्क संक्रमण के जोखिम को कम करता है। यदि इन दोनों का पालन नहीं किया जाता है तो अत्यधिक टीकाकरण वाली आबादी में भी बीमारी फैल सकती है।
युवाओं के मुकाबले बुजुर्गों में कम बनती है एंटीबॉडी
कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबाडी को लेकर एक और अध्ययन सामने आया है। यह अध्ययन अमेरिका की ओरेगन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी (ओएचएसयू) ने किया है। इसके अनुसार, युवाओं की तुलना में बुजुर्गों के शरीर में एंटीबॉडी कम बनती है। शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि टीकाकरण के बावजूद बुजुर्ग सुरक्षित नहीं हैं। इसलिए इनके साथ रहने वाले लोगों को टीकाकरण जरूर कराना चाहिए। शोधकर्ताओं ने इस बात पर भी जोर दिया कि बुजुर्गों में भले ही एंटीबाडी की कम प्रतिक्रिया पाई गई हो, लेकिन हर उम्र के ज्यादातर लोगों में वैक्सीन न सिर्फ संक्रमण की रोकथाम, बल्कि इसे गंभीर होने से रोकने में भी कारगर साबित हुई है। शोधकर्ताओं ने 50 बुजुर्गों और युवाओं को दो समूहों में बांटकर यह अध्ययन किया। वैक्सीन की दूसरी खुराक लेने के दो हफ्ते बाद सभी के रक्त नमूनों की जांच की गई। 70 से 82 वर्ष के बुजुर्गों के मुकाबले 20 साल से अधिक उम्र वाले युवाओं में करीब सात गुना अधिक एंटीबाडी पाई गई। ओएचएसयू के सहायक प्रोफेसर और मुख्य शोधकर्ता प्रोफेसर फिकाडू टफेस ने कहा, "टीके के बावजूद हमारे बुजुर्ग कोरोना के नए वैरिएंट के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं। एंटीबाडी एक प्रकार का रक्त प्रोटीन है, जो प्रतिरक्षा प्रणाली संक्रमण को मजबूत कर संक्रमण से बचाव करती है।
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