अम्बुज भारद्वाज
लोकतांत्रिक देश में मीडिया की भूमिका काफी अहम मानी जाती है। मीडिया को आज पूरे विश्व में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में देखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि मीडिया का काम एक तरफ जन सरोकार के मुद्दे को उठाना है तो दूसरी तरफ सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को घर-घर तक पहुंचाना भी है।
किसी भी लोकतांत्रिक देश में मीडिया की भूमिका काफी अहम मानी जाती है। मीडिया को आज पूरे विश्व में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में देखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि मीडिया का काम एक तरफ जन सरोकार के मुद्दे को उठाना है तो दूसरी तरफ सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को घर-घर तक पहुंचाना भी है। लेकिन जब बात भारत की हो और भारत जैसे विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की हो तो वहां मीडिया की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। मीडिया को यहां जनता और सरकार के बीच पुल की भूमिका में होना चाहिए लेकिन वास्तव में यहाँ मीडिया की भूमिका ठीक इसके उलट है। आखिर मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ? क्या मेरे पास इस बात के लिए पर्याप्त साक्ष्य हैं?
देश 2014 के बाद से ही भारतीय मीडिया जगत में बड़ा परिवर्तन देख रहा है। मीडिया के तौर-तरीके लगातार बदल रहे हैं। राष्ट्र हित से जुड़े मुद्दों पर भी जब कुछ मीडिया चैनल और पोर्टल्स के पेट में दर्द होने लगता है तब यह सवाल तो उठता ही है कि आखिर मोदी सरकार के आने के बाद से ही इनमें एक बेचैनी सी क्यों है? क्या आपने कभी सोचा है कि CAA-NRC, अनुच्छेद 370, राम मंदिर जैसे मुद्दे जो देश की आम जन भावनाओं से जुड़े हुए थे, आखिर उन मुद्दों पर भी कुछ मीडिया संस्थानों का रुख विरोध भरा क्यों है?
इसका जवाब आपको ED के हालिया खुलासे से मिल जाएगा। ED ने हाल ही में एक मीडिया संस्थान न्यूज़ क्लिक के दफ्तर और उसके संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ के घर पर छापा मारा था। छापे के बाद ED ने जो खुलासा किया उससे यह स्पष्ट होता है कि भारत के कुछ मीडिया संस्थान जिनमें न्यूज़ क्लिक भी शामिल है उसकी चाबी दरअसल चीन के पास है। आप अगर गौर करेंगे तो न्यूज़क्लिक के समाचारों को कवर करने के तरीके से आपको उस पर चीन और वामपंथी ताकतों की छाप स्पष्ट रूप से दिखेगी।
आइए जानते हैं कि ED ने जांच के बाद न्यूज़ क्लिक को लेकर क्या खुलासे किए हैं?
न्यूज़ क्लिक की स्थापना 2009 में प्रवीण पुरकायस्था ने की थी। इसकी स्थापना के कुछ दिनों के बाद ही इस चैनल को विदेशों से फंड मिलने शुरू हो गए थे। इसी सिलसिले में इसी साल फरवरी में संदिग्ध आर्थिक गतिविधियों के कारण ED ने न्यूज़ क्लिक के दिल्ली स्थित कार्यालय और इसके मालिक के घर छापा मारा था। जिसके बाद सारे वामपंथी मीडिया गुट के लोग सामने आकर इसे प्रेस की स्वतंत्रता पर सवाल बता रहे थे। हालांकि ED ने कहा कि उसे कुछ संदिग्ध दस्तावेज मिले हैं। ED ने न्यूज़ क्लिक के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग की जांच शुरू की। इस जाँच के दौरान कई अहम सबूत मिले हैं।
जाँच में केंद्रीय एजेंसी ED ने क्या पाया?
न्यूज़ क्लिक और उसके प्रोमोटर्स ने श्रीलंका-क्यूबा मूल के एक कारोबारी नेवीले रोई सिंघम से एक करार किया था जो शक के घेरे में है। PPK News Click Private Limited को जो 38 करोड़ रुपये की जो फंडिंग मिली थी उसका मुख्य स्रोत इसी कारोबारी को माना जा रहा है। इस कारोबारी के संबंध चीन से भी हैं। न्यूज़ क्लिक को यह रकम 2018 से 2021 के बीच विदेशों से मिली। मामले की जांच कर रही ED के सूत्रों के अनुसार कारोबारी नेविले का संबंध चीन की सत्ताधारी पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना से भी है। भीमा कोरेगांव हिंसा से भी इस पोर्टल के तार जुड़ रहे हैं, क्योंकि विदेशों से मिले पैसों का कुछ हिस्सा भीमा कोरेगांव हिंसा की पृष्ठभूमि तैयार करने वाले और जेल में बंद तथाकथित एक्टिविस्ट गौतम नवलखा को भी गया है। प्रवर्तन निदेशालय ने जेल में गौतम कि प्रवीर से संबंधों के बारे में पूछताछ भी की है।
हालांकि ED ने प्रवीर से इस रकम के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने CPC और चीन से किसी भी प्रकार के संबंध होने से इनकार कर दिया है। उन्होंने कहा यह रकम उन्हें "Exports Of Services" के बदले में मिला है। उन्होंने यह भी बताया कि सिंघम एक अमेरिकी कारोबारी हैं जो एक सॉफ्टवेयर कंपनी चलाया करते थे। उन्होंने उस कंपनी को 700-800 (करीब 522 से 596 करोड़) मिलियन डॉलर में बेच दिया। उन्होंने यह भी दावा किया कि सारे फंड उन्हें अमेरिका की जानी-मानी संस्थाओं से मिले हैं और इसके लेनदेन के दौरान RBI के सभी नियमों का पालन भी किया गया है।
लेकिन इससे उलट ED का कहना है कि न्यूज़ क्लिक को अमेरिका की "जस्टिस एंड एजुकेशन फंड्स इंक" , GSPAN LLC, और "ट्राईकॉन्टिनेंटल लिमिटेड इंक" से फंड प्राप्त हुए हैं। बड़ी बात यह है कि इन तीनों कंपनियों का पता एक ही है। इसके अलावा ब्राजील के "सेंट्रो पॉपुलर डेमीदास" से भी फंड्स मिले हैं। कुछ दिनों पहले ही ED ने न्यूज़ क्लिक के शेयर होल्डर के ठिकानों पर भी छापा मारा था, जहां ED को CPC से ईमेल के द्वारा की गई कई बातचीत भी हाथ लगी थी।
ED के सूत्रों का यह भी कहना है कि न्यूज़ क्लिक को मिले पेमेंट कुछ खास कार्यों से जुड़े थे। इसमें अफ्रीका में चीन के कामकाज को मजबूत बनाना भी शामिल है। अफ्रीका में अक्सर चीन पर पूंजीवादी और तानाशाही होने के आरोप लगते रहते हैं। अफ्रीका में चीन की छवि ठीक करने और अलीबाबा के मालिक जैक मा पर चीनी सरकार द्वारा की गई कार्यवाई का बचाव जैसे कार्य भी शामिल हैं।
न्यूज़ क्लिक को मिले रकम का एक हिस्सा बाप्पादित्य सिन्हा नाम के एक व्यक्ति को भी गया है। यह वही व्यक्ति है जो भारत में शीर्ष कम्युनिस्ट नेताओं के ट्विटर हैंडल को मैनेज करता है। ED ने जब प्रवीर पुरकायस्था से बाप्पादित्य को दिए गए रकम के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि बाप्पादित्य ने हमारी कंपनी को सॉफ्टवेयर दिए थे इसके बदले में उन्हें पेमेंट दिया गया है।
इतना ही नहीं ED को जांच में यह भी पता चला है कि एक इलेक्ट्रिशियन को भी 1.55 करोड़ रुपए का पेमेंट किया गया है। ED ने इसकी भी जानकारी मांगी है। कंपनी के शेयर के दाम 11000 होने पर भी पूछताछ की जिसका प्रबीर पुरकायस्था ने बचाव किया है।
ED के इन हालिया खुलासों से यह तो स्पष्ट है कि दाल में कुछ तो काला है। यह बात भी किसी से छुपी नहीं है कि कई अन्य देशों में भी चीन अपने नैरेटिव फैलाने के लिए अलग-अलग मीडिया संस्थानों को फंडिंग करता आया है। न्यूज़ क्लिक को भी कम ही दिनों में बड़ी संख्या में विदेशों से फंड मिलने शुरू हो गए थे। यह बात इस मामले को और भी संदेहास्पद बनाती है।
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