दारुल उलूम में बन रहा पुस्तकालय (फाइल चित्र)
इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारुल उलूम के परिसर में नियमों को ताक पर रखकर इमारतें बनवाई जा रही हैं। अब तक उस पर 25,00,000 रु. का जुर्माना लग चुका है। आगे भी जांच होने वाली है और माना जा रहा है कि जिस तरह से वहां अवैध निर्माण हुआ है, उसे देखते हुए जुर्माने की राशि एक करोड़ रु. से अधिक हो सकती है।
उत्तर प्रदेश में सहारनपुर जिले के देवबंद स्थित इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारुल उलूम में अवैध निर्माण निरंतर चल रहा है। कुछ समय पहले एक सामाजिक कार्यकर्ता विकास त्यागी ने इसकी शिकायत सरकार से की थी। इसके बाद सहारनपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी ने दारुल उलूम का दौरा कर पूरी जानकारी ली थी और संंबंधित विभाग ने अवैध निर्माण की जांच भी की थी। जांच में अवैध निर्माण की बात सामने आने पर दारुल उलूम पर 25,00,000 रु. का जुर्माना भी लगाया गया।
सूत्रों का कहना है कि जुर्माना भरने के बाद भी दारुल उलूम के परिसर में अवैध निर्माण हो रहा है। इसकी जांच के लिए सहारनपुर के उप जिलाधिकारी (एसडीएम) अब तक नौ बार मेरठ स्थित सहयुक्त नियोजक कार्यालय (अवैध निर्माण की जांच कर जुर्माना तय करने वाला विभाग) को पत्र लिख चुके हैं, लेकिन कोरोना का बहाना लेकर यह विभाग अवैध निर्माण की जांच तेजी से नहीं कर रहा है।
यह जानकारी सहारनपुर के उप जिलाधिकारी कार्यालय ने एक आरटीआई के जवाब में दी है। उल्लेखनीय है कि विकास त्यागी ने 18 जून,2021 को आरटीआई के जरिए जानकारी मांगी थी कि दारुल उलूम में अवैध निर्माण की जांच के लिए अब तक किस तरह की कार्रवाई की गई है! इसका जवाब 15 जुलाई,2021 को दिया गया है। इसी में बताया गया है कि अवैध निर्माण के लिए दारुल उलूम पर अब तक 25,00,000 रु. का जुर्माना लगाया है, जिसे संस्थान ने भर भी दिया है। अब अनुमान लगाया जा रहा है कि दारुल उलूम में जिस तरह का अवैध निर्माण हुआ है, उस पर भी जुर्माना लगाया जा सकता है और जुर्माने की राशि एक करोड़ रु. तक जा सकती है।
उल्लेखनीय है कि दो साल पहले दारुल उलूम में एक विशाल पुस्तकालय बनना शुरू हुआ था। कुछ लोगों का कहना था कि इसकी छत पर हैलीपैड भी बनाने की योजना थी, लेकिन इसकी अनुमति संबंधित विभाग से नहीं ली गई थी। दारुल उलूम के संचालकों का कहना था कि उन्हें यह पता नहीं था कि परिसर में निर्माण के लिए इजाजत लेनी पड़ती है।
दरअसल, दारुल उलूम सपा और बसपा की सरकारों के समय बेरोकटोक कुछ भी बनाता रहता था। उनसे कुछ पूछने की हिम्मत किसी सरकारी अधिकारी को नहीं होती थी। इस कारण दारुल उलूम के संचालक स्वछंद हो गए थे। अब योगी राज में कहीं से छोटी शिकायत मिलने पर भी कार्रवाई होने लगी है। इसलिए दारुल उलूम की सच्चाई बाहर आने लगी है।
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