'लापता' बलूच युवाओं के चित्रों के साथ बलूचिस्तान में आएदिन किए जा रहे विरोध प्रदर्शनों पर इस्लामाबाद ध्यान नहीं देता फाइल चित्र
आलोक गोस्वामी
आईएसआई के कथित इशारे पर फौज बलूचों के उत्पीड़न में कोई कसर नहीं छोड़ रही है, आएदिन अगवा हो रहे हैं बलूच कार्यकर्ता
बलूचिस्तान एक बार फिर सिहर उठा है पाकिस्तानी फौजियों के अत्याचारों के सिलसिले से। हाल के दिनों में वहां लगातार बलूची नेताओं और उनके परिजन को अगवा करने, उनकी हत्या करने के नए मामले देखने में आए हैं। इन घटनाओं में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है। ताजा घटना एक युवा बलूच नेता वकील शकीर बलोच के अपहरण से जुड़ी है।
प्राप्त समाचार के अनुसार, बलूच नेता शकीर, जो पेशे से वकील थे, को 10 जुलाई को तब अगवा कर लिया गया जब वे इस्लामाबाद से घर लौटे ही थे। उन्हें तुरबत से अगवा किया गया जहां उनका मूल निवास है। स्थानीय बलूच नेताओं और कार्यकर्ताओं को शकीर को अगवा करने में आईएसआई का हाथ दिख रहा है।
पाकिस्तानी हुकूमत के इशारे पर फौज की इस शर्मनाक हरकत के विरोध में कितने ही लोगों ने ट्विटर पर अपना आक्रोश जाहिर किया है। ज्यादातर ने इसके पीछे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी को जिम्मेदार बताया है। बलूचिस्तान के मानवाधिकार संगठन के अनुसार, इस्लामाबाद में वकालत के प्रशिक्षु के तौर पर कार्यरत शकीर को आईएसआई ने अगवा किया है। शकीर मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर पाकिस्तान की फौज के विरुद्ध आवाज उठाने में आगे रहते थे। शकीर के परिजन भी मानते हैं कि उनको अगवा इसीलिए किया गया क्योंकि वे लगातार मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों पर लोगों का जागरूक करते रहते थे। इससे शायद आईएसआई चिढ़ गई थी और उसने फौज की कथित साठगांठ से इस घटना को अंजाम दिया है।
20 दिसंबर को करीमा अपने घर के पास टहलने के लिए निकली थीं। और बाद में, 22 दिसंबर को उनकी मृत देह एक झील के पास पड़ी मिली थी। इसी तरह बलूच नेता साजिद हुसैन स्टॉकहोम से मार्च में लापता हुए थे जबकि उनकी मृत देह 1 मई को वहां की एक नदी के पास पड़ी मिली थी।
उल्लेखनीय है कि विदेश में रहने वाले बलूच नेताओं, कार्यकर्ताओं तक को नहीं बख्शा गया। ऐसा ही एक मामला था दिसम्बर 2020 में कनाडा में करीमा बलोच की मौत का। वे दूसरी बलूच नेता थीं जो विदेश की धरती पर संदिग्ध हालात में मृत पाई गई थीं और जिसमें बलूच नेताओं ने साफ तौर पर आईएसआई का हाथ बताया था। करीमा से पहले स्वीडन में रह रहे बलूच पत्रकार साजिद हुसैन मार्च 2020 में लापता हुए और 1 मई को उनकी लाश मिली थी। दोनों बलूचों की मौत कई मायनों में एक ही तरफ इशारा कर रही थीं। दोनों बलूच नेताओं के शव पानी के किनारे मिले थे। बलूच एक्टिविस्ट करीमा बलोच की मौत के बाद पुलिस ने शुरुआती तौर पर तो हत्या की संभावना को नकार दिया था लेकिन बलूच एक्टिविस्ट हम्माल हैदर ने उनकी हत्या किए जाने की आशंका व्यक्त की थी। 20 दिसंबर को करीमा अपने घर के पास टहलने के लिए निकली थीं। और बाद में, 22 दिसंबर को उनकी मृत देह एक झील के पास पड़ी मिली थी। इसी तरह बलूच नेता साजिद हुसैन स्टॉकहोम से मार्च में लापता हुए थे जबकि उनकी मृत देह 1 मई को वहां की एक नदी के पास पड़ी मिली थी।
हाल ही में एक बयान जारी करके बलूचिस्तान मानवाधिकार परिषद ने दावा किया था कि इस साल सिर्फ जून माह में ही वहां 37 से ज्यादा लोगों को अगवा किया गया था, जिनमें से 25 लोगों की हत्या होने का पता चला है।
हाल ही में एक बयान जारी करके बलूचिस्तान मानवाधिकार परिषद ने दावा किया था कि इस साल सिर्फ जून माह में ही वहां 37 से ज्यादा लोगों को अगवा किया गया था, जिनमें से 25 लोगों की हत्या होने का पता चला है।
यहां यह जानना समीचीन होगा कि पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने 2017 के अंत में अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि देश से अलग सोच रखने वालों, देश की भलाई के विरुद्ध सोचने वालों को परोक्ष कार्रवाई के जरिए रास्ता से हटाने की एक नीति बनाकर उस पर अमल करना चाहिए। बलूच नेताओं ने तब मुशर्रफ के इस बयान का जबरदस्त विरोध किया था। उन्हें 'बलूचियों का हत्यारा' तक कहा था।
एफएटीएफ की ग्रे सूची में टंगे, अस्तित्व की लड़ाई लड़ते कंगाल पाकिस्तान शायद जिहादी आतंकवाद और मजहबी उन्मादी सत्ता के पाश में जकड़ा रहने को मजबूर है। लेकिन इन हालात में भी वह मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ाते हुए किस तरह बलूचिस्तान में अपनी फौज के दम पर पाशविकता कर रहा है, उसे दुनिया देख रही है।
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