स्वाति शाकम्भरि
असम में गोहत्या पर रोक लगाने के लिए मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने विधानसभा में 'असम मवेशी संरक्षण विधेयक, 2021' प्रस्तुत किया है। बदरुद्दीन अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ की भारी आपत्ति के बावजूद राज्य की भाजपा सरकार अपने घोषणापत्र में किए गए हर वादे को पूरी ईमानदारी से पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध दिख रही है।
असम में ताजपोशी के बाद मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा लगातार अपने चुनावी वादों को पूरा करने का धुआंधार अभियान चला रहे हैं और इस कड़ी में 12 जुलाई को उन्होंने विधानसभा में 'असम मवेशी संरक्षण विधेयक, 2021' प्रस्तुत कर एक और मील का पत्थर गाड़ दिया। वैसे तो इस विधेयक का संकेत राज्यपाल प्रो. जगदीश मुखी ने नई सरकार के प्रथम सत्र के दौरान मई मास में ही कर दिया था लेकिन यह मील का पत्थर इसलिए साबित हो रहा है कि इस अंतराल में विरोधी दल 'गाय' के नाम पर विरोध के जो पैंतरे आजमाने की ताक में थे, विधेयक प्रस्तुत होने के बाद वे सभी पैंतरे धरे के धरे रह गए और सरकार ने अपना लक्ष्य भी साध लिया। यह कानून पूरे असम में लागू होगा और मवेशी शब्द बैल, गाय, बछिया, बछड़े, भैंस, भैंसा और भैंस के बच्चों पर लागू होगा।
विधेयक की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह विधेयक सभी मवेशियों के संरक्षण और उनके मांस के व्यापार पर कतिपय प्रतिबंध के प्रावधान की बात करता है किंतु गोवंश के सरंक्षण पर विशिष्ट ठोस प्रावधान भी इसमें किए गए हैं। विधेयक में कहा गया है कि राज्य में मवेशियों के मांस का व्यापार कुछ निश्चित स्थानों पर ही किया जा सकता है, अन्यत्र नहीं। साथ ही, हिंदू, जैन, सिख और गोमांस नहीं खाने वाले समुदाय की बहुलता वाले क्षेत्रों में गोमांस का व्यापार पूर्णतः प्रतिबंधित कर दिया गया है। इतना ही नहीं, मंदिरों, सत्रों (वैष्णव उपासना स्थल) और सक्षम प्राधिकार द्वारा घोषित ऐसे पूजा स्थलों के पांच किलोमीटर के दायरे में भी यह व्यापार प्रतिबंधित हो जाएगा। अब तक ऐसा प्रावधान गिने चुने राज्यों में ही किया गया है। यही वह बिंदु है जिसे लेकर विपक्ष को उगलते बन रहा है न निगलते। विपक्ष के नेता देवव्रत शैकिया इस पर कानूनी राय लेने की बात कर रहे हैं तो उनके सहयोगी दल एआईयूडीएफ के नेतागण इस पर साम्प्रदायिक सुर उठा चुके हैं। शैकिया इस बात से ज्यादा परेशान दिख रहे हैं कि नए मंदिर तो कहीं भी बन सकते हैं और यदि लगातार मंदिर बनाए जाने लगे तो नए कानून के अनुसार गोमांस का कारोबार कहीं हो ही नहीं पाएगा।
इस विधेयक और गोहत्या रोकथाम को लेकर सरकार की गंभीरता का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि किसी और विधायक को यह मौका न देकर मुख्यमंत्री ने स्वयं यह विधेयक प्रस्तुत किया और उस पर चर्चा की शुरुआत की। यह विधेयक पारित हो जाने की स्थिति में 'असम मवेशी संरक्षण अधिनियम, 1950, स्वत: निरस्त हो जाएगा। नया कानून गोवंश समेत सभी मवेशियों की हत्या, उनका मांस खाने और लाने-ले जाने को कड़ाई से प्रतिबंधित करेगा। मुख्यमंत्री के अनुसार पुराने अधिनियम में इसके लिए पर्याप्त कानूनी प्रावधानों का अभाव था।
प्रस्तुत विधेयक के अनुसार सामान्य रूप से गोहत्या पूर्णतः प्रतिबंधित रहेगी। गाय के अलावा किसी मवेशी को नियत स्थान पर भी मारने के पूर्व पशु चिकित्सा अधिकारी द्वारा उपयुक्त प्रमाणपत्र प्राप्त करना जरूरी होगा। यह प्रमाणपत्र तभी जारी किया जाएगा जब गाय से इतर मवेशी की आयु 14 साल से अधिक हो। गाय, बछिया या बछड़े को तभी मारा जा सकता है जब वह स्थायी रूप से अपाहिज हो। विधेयक के अनुसार, साथ ही उचित रूप से लाइसेंस प्राप्त या मान्यता प्राप्त बूचड़खानों को मवेशियों को काटने की अनुमति दी जाएगी। अगर अधिकारियों को वैध दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए जाते हैं तो नया कानून राज्य के भीतर या बाहर गोवंश के परिवहन पर रोक लगाएगा। हालांकि एक जिले के अंदर कृषि उद्देश्यों के लिए मवेशियों को ले जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा।
बड़ी बात यह भी है कि इस नए कानून के तहत सभी अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती होंगे। दोषी पाए जाने वाले किसी भी व्यक्ति को कम से कम तीन साल की कैद या 3,00,000 से 5,00,000 रुपए तक का जुर्माना या दोनों हो सकता है। नए कानून के तहत अगर कोई दोषी दूसरी बार उसी या संबंधित अपराध का दोषी पाया जाता है तो सजा दोगुनी हो जाएगी।
माना जा रहा है कि नया कानून कड़ाई से लागू हो जाए तो यह बांग्लादेश से होने वाली अवैध गो-तस्करी पर भी अंकुश लगाएगा। बांग्लादेश सीमा पर गो तस्करी का मुद्दा असम में हमेशा गरमाया रहता है। गत दो मास में हिमंत सरकार गो तस्करों के साथ बेहद कड़ाई से पेश आ रही है। मादक द्रव्यों की तस्करी और गैंडों के शिकार की रोकथाम के लिए जिस तरह अभियान चलाए जाते थे, उसी तरह से गो-तस्करी रोकथाम के लिए असम सरकार ने गत दो माह में सघन राज्यव्यापी अभियान चलाया है। मुख्यमंत्री ने भी निर्देश दिया है कि गो-तस्करों को किसी भी कीमत पर गिरफ्तार किया जाना है। मुख्यमंत्री के इस रुख से एआईयूडीएफ में ज्यादा बेचैनी देखी गयी। विधेयक प्रस्तुत होने के बाद उसके अनेक विधायकों ने एक सुर में इसे 'मुसलमानों पर आघात' बताया। मानकछार के विधायक अमीनुल इस्लाम ने यहां तक सवाल खड़ा कर दिया कि सीमावर्ती मेघालय, मिजोरम, नागालैंड में जब गोहत्या पर प्रतिबंध नहीं है तो असम में क्यों जरूरी है! इन सबसे बेपरवाह असम सरकार अपने फैसले पर दृढ़ दिख रही है और गोहत्या रोकथाम पर दृढ़ता से कदम उठा रही है।
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