पाकिस्तान में लश्करे तोयबा के आतंकी शिविरों में तालिबानी लड़ाकों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। पाकिस्तान की फौज इस सबमें कथित मदद कर रही है।
अमेरिकी और नाटो सेनाओं के अफगानिस्तान की धरती से लौटने और तालिबान लड़ाकों के तेजी से फिर से अफगानिस्तान में फैलते जाने के समाचार चिंता पैदा करते हैं। लेकिन इससे भी ज्यादा चिंता की बात है कि तालिबान जिहादियों ने पाकिस्तान में पल रहे भारत विरोधी आतंकवादी संगठनों, लश्करे-तोयबा और जैशे-मोहम्मद से हाथ मिला लिया है। बताते हैं, उन्होंने 200 से ज्यादा गुटों के तौर पर एक हजार से ज्यादा आतंकवादी तालिबान की मदद में उतारे हैं। वे तालिबान जिहादियों के साथ मिलकर अफगानिस्तान की फौजों के लिए सिरदर्द बढ़ा रहे हैं। इस खबर से चिंता इसलिए भी ज्यादा है कि इनके बीच करीब आठ फिदायीन भी हैं। फिलहाल, समाचारों के अनुसार, ये आतंकी कुणार, नागरहार, हेलमंड और कंधार में अफगानी सुरक्षाकर्मियों से लोहा ले रहे हैं। संभवत: लश्करे तोयबा और जैशे मोहम्मद के आतंकियों की मदद से तालिबान के अनुसार, उन्होंने अफगानिस्तान के अधिकांश शहरों और गांवों पर कब्जा कर लिया है।
रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसी खबरों ने जहां अफगानिस्तान सरकार की चिंताएं बढ़ाई हैं वहीं ये भारत के लिए भी सतर्क रहने का समय है। पाकिस्तान में तालिबान की दखल के बारे में सब जानते हैं। वहां आतंकी शिविरों की मौजूदगी से सब परिचित हैं। उन शिविरों में तालिबानी लड़ाकों के प्रशिक्षण और अब अफगानिस्तान में पाकिस्तानी आतंकियों के जाकर लड़ने की खबर पर भारत के रणनीतिकारों का निश्चित रूप से ध्यान होगा।
हैदराबाद में प्रशिक्षण
सुरक्षा एजेंसियों के सूत्र बताते हैं कि पाकिस्तान के पंजाब सूबे में, हैदराबाद में लश्करे तोयबा के शिविरों में तालिबानी लड़ाके हथियारों का प्रशिक्षण ले रहे हैं। इस प्रशिक्षण में पाकिस्तान की सेना भी कथित मदद दे रही है।
मीडिया में आई रिपोर्ट के अनुसार, लश्कर और जैश से जुड़े आतंकवादी अफगानिस्तान के पूर्वी और दक्षिण पूर्वी इलाकों में तालिबान की मदद कर रहे हैं। अफगानिस्तान के ये इलाके पाकिस्तान की सीमा से सटे हैं। कुणार और नागरहार की सीमाएं पाकिस्तान के जनजातीय इलाकों से सटी हैं, जबकि दो इलाके बलूचिस्तान से सटे हैं। ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान और ईरान जैसे देशों से सटे अफगानिस्तान के 18 सीमांत जिलों में हालात नाजुक बने हुए हैं।
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