बालेन्दु शर्मा दाधीच
हाइपरलूप में जमीन के भीतर गहराई में बनी हजारों किमी लंबी ट्यूब्स या सुरंगों के भीतर से छोटे-छोटे पॉड्स या वाहन गुजरेंगे। यह आगामी कल के परिवहन का अद्वितीय रूप होगा
हाइपरलूप सिस्टम से 1,000-1,200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से जमीनी यात्रा का सपना पूरा हो सकता है। शायद हाँ, शायद ना। विमानों के लिए यह रफ्तार आम बात है लेकिन हाइपरलूप जमीनी परिवहन में वैसी ही क्रांति ला सकता है जैसी कि कभी विमानों के आविष्कार से दुनिया की दूरियाँ सिमट आई थीं। हाइपरलूप, माने जमीन के भीतर गहराई में बनी हुई हजारों किलोमीटर लंबी ट्यूब्स या सुरंगों के भीतर से छोटी-छोटी पॉड्स या वाहनों का गुजरना। परिवहन का यह तौर-तरीका अब तक की किसी प्रणाली से नहीं मिलता- यह सबसे अलग और अद्वितीय है।
जिन ट्यूब्स या सुरंगों के भीतर से पॉड्स को गुजरना है, उनमें से हवा को पूरी तरह से निकाल दिया जाता है ताकि उनके भीतर घर्षण न हो। चूंकि घर्षण रफ्तार को कम करता है, इसलिए उसकी गैर-मौजूदगी में ये पॉड वाहन 1,200 किलोमीटर प्रति घंटा तक की रफ्तार से यात्रा कर सकेंगे। इन वाहनों में पहिए नहीं होते और वे खाली स्थान में तैरते हुए आगे बढ़ते हैं। कुछ-कुछ इसी अंदाज में बुलेट ट्रेन भी यात्रा करती है लेकिन यहां पर बात जमीन की गहराई में सुरंगों के भीतर यात्रा करने की हो रही है। हाइपरलूप के परीक्षण हुए हैं लेकिन फिलहाल यह इस्तेमाल के लिए उपलब्ध नहीं है। उम्मीद है कि 2021 तक दुनिया में पहला हाइपरलूप रूट काम करना शुरू कर देगा।
यात्राओं के इस विकल्प की जरूरत क्यों पड़ी? यह सवाल बहुत मुश्किल नहीं है। परिवहन की रफ्तार को तेज से और तेज करते चले जाने की जरूरत पड़ रही है ताकि मुसाफिरों और सामान को ढोने का समय कम से कम किया जा सके। परिवहन महंगा भी हो रहा है और ट्रैफिक बढ़ रहा है। हाइपरलूप परिवहन के लिए सुरंगें बनाने पर तो बहुत ज्यादा खर्च होगा लेकिन बाकी प्रणालियों में बिजली का इस्तेमाल होना है। इसकी खपत भी बहुत कम होगी। इसका मतलब यह कि यात्रा न सिर्फ सुपर फास्ट होगी बल्कि सुपर सस्ती भी और इसमें प्रदूषण का नाम तक नहीं होगा और न ही ट्रैफिक जाम जैसी चीजें कभी आएंगी क्योंकि हर पॉड को एक ही सुरंग के भीतर से गुजरना है। मिसाल के तौर पर अमेरिका के लास एंजिलिस और सैन फ्रासिस्कों शहरों के बीच 620 किलोमीटर की यात्रा का टिकट 20 डॉलर मात्र होगा। भारतीय मुद्रा में करीब 1,400 रुपए। यात्रा आधे घंटे में पूरी हो जाएगी।
आपको यह जानकर खुशी और हैरत, दोनों होगी कि हाइपरलूप के लिए शुरुआती तौर पर जो रूट प्रस्तावित हैं, उनमें अमेरिका, कनाडा, यूरोप और दुबई के कुछ मार्गों के साथ-साथ भारत के भी कई मार्ग शामिल हैं। मसलन- मुंबई से पुणे, चेन्नई से मुंबई, अमरावती से विजयवाड़ा और चेन्नई से बंगलुरु। दुनिया के दूसरे अहम मार्गों में न्यूयॉर्क से वाशिंगटन, पेरिस से एम्सटर्डम, टोरंटो से मॉन्ट्रियल और जाबेल अली से दुबई शामिल हैं।
तकनीक क्रांतिकारी है मगर आसान नहीं है। अमेरिका के नेवादा रेगिस्तानी क्षेत्र में छोटी दूरियों के बीच इसके सफल परीक्षण हो चुके हैं लेकिन चुनौतियाँ भी बहुत हैं। एक हजार किलोमीटर प्रति घंटे से भी ज्यादा तेज रफ्तार से चल रहे वाहनों को अगर इमरजेंसी में ब्रेक लगाना पड़ा तो क्या होगा? क्या वाहन खुद और यात्री इसके प्रभाव को झेल पाएंगे? अगर वाहनों को कहीं घूमना पड़ा तब क्या वे ट्यूब के किनारों से नहीं टकरा जाएंगे? जरा सोचिए कि हम अपनी कार या मोटर साइकिल से 50-60 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से भी जब सड़क पर टर्न लेते हैं तो वह कोई कम खतरनाक अनुभव नहीं होता। बीस गुना ज्यादा रफ्तार से चल रहे वाहन के साथ क्या होगा, वह भी तब जब सुरंग बहुत संकरी है? इस संकरेपन की वजह से पॉ़ड्स की चौड़ाई बहुत कम होगी और लोगों को बैठने तथा इधर-उधर हिलने-डुलने के लिए अधिक आजादी नहीं होगी। बहुतों के लिए यह एक डरावना अनुभव भी हो सकता है, खास तौर पर इसलिए कि वाहनों में खिड़कियाँ भी नहीं होंगी और आप बाहरी दुनिया से पूरी तरह कटे होंगे।
एक आशंका यह भी कि अगर बीच रास्ते में बिजली चली गई तो? अगर कभी भूकंप आया या फिर कोई हल्की सी भी भूगर्भीय गतिविधि हुई तो यात्रियों की सुरक्षा और पूरे ढाँचे की बनावट खतरे में तो नहीं पड़ जाएगी? सवाल बहुत हैं और चिंताएँ भी। लेकिन आने वाला समय इनके जवाब तलाश ही लेगा, उम्मीद करनी चाहिए।
(लेखक सुप्रसिद्ध तकनीक विशेषज्ञ हैं)
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