राजेश प्रभु सालगांवकर
महाराष्ट्र में राज्य सरकार के अस्पतालों में सेवा देने वाले आयुर्वेदिक चिकित्सकों को सरकारी वाहन चालकों से भी कम वेतन मिल रहा है। इसलिए इन चिकित्सकों ने सरकार से आग्रह किया है कि या तो सम्मानजनक वेतन दें, नहीं तो सामूहिक रूप से मरने की अनुमति प्रदान करें। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की नीतियों से आयुर्वेदिक चिकित्सक बहुत परेशान हैं
महाराष्ट्र में कोरोना का प्रकोप अभी भी कम नहीं हुआ है। इसका सबसे बड़ा कारण है राज्य सरकार की नीति। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भले ही कुछ भी दावा करें, लेकिन उनकी नीतियां राज्य के लोगों तक अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचने नहीं दे रही हैं। राज्य में चिकित्सकों और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों के प्रति अच्छा व्यवहार नहीं हो रहा है। यही कारण है कि कोरोना के खिलाफ अच्छी तरह लड़ाई नहीं लड़ी जा रही है।
डॉक्टर के साथ—साथ अन्य स्वास्थ्य कर्मचारी भी परेशान हैं। ये लोग कम वेतन में विपरीत परिस्थितियों में काम कर रहे हैं। जहां एलोपैथ के चिकित्सक नहीं जाते हैं, वहां आयुर्वेद के चिकित्सकों को भेजा जाता है। आश्चर्य की बात तो यह है कि सरकारी अस्पतालों में कार्यरत ये चिकित्सक आयुर्वेद की जगह एलोपैथ की दवाई लिखते हैं। ऐसे ज्यादातर चिकित्सक सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत हैं। इनकी संख्या लगभग 300 है। ये लोग 20—25 साल से कार्य कर रहे हैं, लेकिन इनकी नौकरी स्थाई नहीं की गई है। इस कारण इन लोगों को केवल 24,000 रु. मासिक मानधन मिलता है, जबकि अस्पतालों में कार्यरत स्थाई गाड़ी चालकों को शुरू में ही 25,000 रु. से अधिक वेतन मिलता है। वहीं अन्य स्वास्थ्यकर्मियों को 40,000—50,000 रु. के बीच वेतन मिलता है। 'अस्थाई चिकित्सा अधिकारी संगठन, महाराष्ट्र' के अध्यक्ष डॉ. शेषराव सूर्यवंशी ने बताया कि हमारे साथी डॉक्टर घर से दूर रहकर या परिवार के साथ भी दुर्गम क्षेत्र में रहकर अपनी सेवा दे रहे हैं। यहां तक कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में भी हमारे साथी लोगों की सेवा कर रहे हैं।
Follow Us on Telegramउन्होंने यह भी कहा कि पालघर, ठाणे, नाशिक, अमरावती, नंदुरबार, धुले, गड़चिरौली, गोंदिया, चंद्रपुर, नांदेड, नागपुर, यवतमाल, पुणे, रायगढ़ जैसे जिलों के दुर्गम क्षेत्रों में एलोपैथ के चिकित्सक नहीं जाना चाहते हैं, लेकिन हमारे साथी कहीं भी और कभी भी सेवा देने के तैयार हैं और सेवा दे भी रहे हैं, लेकिन सरकार हमारे साथ सौतेला व्यवहार कर रही है। बरसों से काम करने के बाद भी एक चपरासी से कम वेतन मिल रहा है, वहीं दूसरी ओर इस कोरोना काल में सरकार बहुत सारे निजी चिकित्सकों की मदद ले रही है और उन्हें 60,000 रु. प्रतिमाह वेतन दिया जा रहा है। लेकिन जो आयुर्वेदिक चिकित्सक 20 से अधिक समय से अपनी सेवा दे रहे हैं, उन्हें गुजरा लायक मानधन भी नहीं दिया जा रहा है।
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