मनोज वर्मा
कोविड महामारी के मुश्किल वक्त में 17वीं लोकसभा ने कामकाज की दृष्टि से एक नई पहचान बनाई है। पांच सत्रों के दौरान लोकसभा की कार्य उत्पादकता 122.2 प्रतिशत रही जो हाल के वर्षो में सर्वाधिक है। लोकसभा में चर्चा अधिक हुई और इस दौरान 107 विधेयक पारित किए गए। अब संसद के मॉनसून सत्र के लिए भी विधायी एजेंडा व्यस्त होना तय है
नई दिल्ली। संसद में 40 से अधिक विधेयकों और पांच अध्यादेशों के लंबित होने के कारण, मोदी सरकार का विधायी एजेंडा मानसून सत्र के लिए व्यस्त होना तय है, जो कि 19 जुलाई 2021 से शुरू होगा और 13 अगस्त, 2021 तक चलेगा। जुलाई में देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बाद मानसून शुरू होने वाला है। पिछले साल भी कोरोना संकट के चलते संसद का मानसून सत्र सितंबर में हुआ था और पिछले साल शीतकालीन सत्र को रद्द करना पड़ा था लेकिन कोरोना संक्रमण काल में भी संसद सदस्यों ने अपने संसदीय दायित्वों का जिस तरह से पालन करते हुए संसद की कार्यवाही में भाग लिया, उसके चलते 17वीं लोकसभा ने कामकाज की दृष्टि से एक नई पहचान बनाई है। 25 मई, 2019 को गठित 17वीं लोकसभा की पहली बैठक 17 जून, 2019 को हुई थी, अब तक इसके पांच सत्र आयोजित हो चुके हैं। इन पांच सत्रों के दौरान लोकसभा की कार्य उत्पादकता 122.2 प्रतिशत रही। जो हाल के वर्षो में सर्वाधिक है। चौथे सत्र में तो लोकसभा की उत्पादकता 167 प्रतिशत रही जो कि ऐतिहासिक है। लिहाजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ट्वीट संदेश में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के कार्यों की तारीफ की। प्रधानमंत्री ने कहा कि बीते दो वर्ष में ओम बिरला जी ने ऐसे कई कदम उठाए हैं जिन्होंने हमारे संसदीय लोकतंत्र को समृद्ध किया है और उत्पादकता में वृद्धि की है। इससे कई ऐतिहासिक और जन-समर्थक कानून पारित हुए हैं। इन कार्यों के लिए ओम बिरला जी को बधाई..! ओम बिरला जी ने पहली बार चुने गए सांसद, युवा सांसदों और महिला सांसदों को सदन में बोलने का मौका दिए जाने पर विशेष बल दिया है। उन्होंने विभिन्न समितियों को भी मजबूत किया है जिनकी हमारे लोकतंत्र में भूमिका महत्वपूर्ण है।
कोरोना के मुश्किल वक्त में अधिक हुई चर्चा
वहीं लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला का कहना है कि लोकतंत्र में हमारा प्रयास विपक्षी सदस्यों के विचारों का सम्मान करने का होना चाहिए। मेरा प्रयास है कि जिस दल का सदन में एक भी सदस्य हो, उसे भी बोलने का पर्याप्त समय दिया जाए। लोकतंत्र में निर्णय व्यापक सहमति के आधार पर लिए जाने चाहिए न कि केवल बहुमत के आधार पर। कोरोना संकट के दौर में भले ही हमें बहुत कुछ सीमित करना पड़ा लेकिन कामकाज सीमित नहीं रहा। कोविड महामारी के मुश्किल वक्त में ज्यादा चर्चा हुई। दो साल में लोकसभा द्वारा 107 विधेयक पारित किए गए। ये दो वर्ष कठिन थे लेकिन हमने अधिकतम सक्रियता दिखाई। कारण, भारत एक सुचारु संसदीय लोकतंत्र है और संसद सदस्य भारत की जनता की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। संसद सदस्य नागरिकों के सामाजिक और आर्थिक कल्याण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। संसद की कार्य प्रक्रिया के नियम होते हैं जिसके अनुसार सदन चलता है। संसदीय चर्चा और कामकाज का व्यापक असर स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, सुरक्षा और विकास जैसे विषयों पर पड़ता है। इसलिए लोकतांत्रिक व्यवस्था में संसदीय कामकाज का महत्व और भी बढ़ जाता है। लोकसभा, जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि यह जनप्रतिनिधियों की सभा है, इसलिए संसद पहुंचा हर प्रतिनिधि जवाबदेह है। ये जवाबदेही जनता के प्रति भी है और संविधान के प्रति भी है। संसद का महत्वपूर्ण कार्य विधान बनाना, प्रशासन पर निगरानी रखना, बजट पारित करना तथा जन साधारण की कठिनाइयों की अभिव्यक्ति करना और राष्ट्रीय नीतियों पर चर्चा आदि करना है।
इस लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में लोकसभा ने पिछले दो वर्षों में सभी सदस्यों को संसदीय लोकतंत्र में अपेक्षित स्वतंत्र वाद—विवाद और चर्चाओं के लिए अनुकूल वातावरण बनाने का काम किया है। दो साल में पांच सत्रों में 114 बैठक हुई और इस दौरान कुल 712.93 घंटे काम हुआ। पांच सत्रों में 107 सरकारी विधेयक पारित हुए। 14वीं, 15वीं और 16वीं लोकसभा के पहले पांच सत्रों की तुलना में 17वीं लोकसभा के पहले पांच सत्रों में अधिक कार्य हुआ है। 17वीं लोकसभा के पहले सत्र में तो सदन की बैठक अभूतपूर्व रूप से 480 घंटे तक चली। विधायी कार्य में सदस्यों की अधिकतम भागीदारी रही है। पांच सत्रों में लोकसभा में सरकारी विधेयकों पर चर्चा में बोलने वाले सदस्यों की संख्या 1744 रही। इस बात के महत्व को समझते हुए कि कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करने हेतु प्रश्न काल लोकसभा के सदस्यों के पास एक प्रभावी साधन है।
एक दिन में 161 सदस्यों ने मामले उठा बनाया रिकॉर्ड
17वीं लोकसभा के दौरान प्रति बैठक औसत 5.37 प्रश्नों के मौखिक उत्तर दिए गए। जो कि 14वीं, 15वीं और 16वीं लोकसभा की अवधि के दौरान दिए गए उत्तरों की तुलना में सर्वाधिक है। 17वीं लोकसभा के दौरान नियम 377 के अधीन उठाए गए मामलों के संबंध में मंत्रियों द्वारा दिए गए उत्तरों का प्रतिशत 89.82 प्रतिशत रहा। शून्यकाल के दौरान लोक महत्व के 3,389 मामले सदस्यों द्वारा उठाए गए। इतना ही नहीं, 18 जुलाई, 2019 को शून्यकाल के दौरान एक ही दिन में सबसे अधिक 161 सदस्यों ने अपने मामले उठाए जो कि एक रिकॉर्ड है। 17वीं लोकसभा में एक नई पहल करते हुए नियम 377 के तहत सदस्यों के द्वारा सप्ताह में पांच दिन मामलों को उठाया जा सकता है। पहले चार दिन ही मामलों को उठा सकते थे। डिजिटल भविष्य की ओर बढ़ते हुए 16वीं लोकसभा के अंतिम सत्र में 44.22 प्रतिशत प्रश्नों की ई सूचनाएं प्राप्त हुई थी। वहीं यह आंकड़ा 17वीं लोकसभा के पांचवें सत्र के दौरान बढ़कर 90.36 प्रतिशत हो गया।
संसदीय समितियों की भूमिका
संसदीय व्यवस्था में और सदन के प्रबंधन एवं संचालन में संसदीय समितियों की भूमिका महत्वपूर्ण है। 17वीं लोकसभा के पहले दो वर्ष के दौरान समितियों की कुल 558 बैठकें हुई और इस दौरान समितियों ने सदन में 272 प्रतिवेदन प्रस्तुत किए। इन प्रतिवेदनों के माध्यमों से समितियों ने कुल 2664 सिफारिशें कीं जिनमें से 1739 सिफारिशों को सरकार ने स्वीकार किया। संसद की कार्यवाही में व्यवधान एक महत्वपूर्ण विषय रहा है। लोकतंत्र में सभी को अपनी बात कहने का, रखने का अधिकार है। असहमति व्यक्त करने का भी अधिकार है। संसद में होने वाली चर्चा यह संकेत देती है कि वैचारिक भिन्नताओं के बावजूद निर्णयन का आधार सहमति है। वस्तुत: एक लोकतांत्रिक प्रणाली वैचारिक भिन्नता या मतभेद से ज्वलंत बनती है और उसका यह ज्वलंत रूप उसे परिपक्वता भी प्रदान करता है। 17वीं लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या सर्वाधिक है। 14वीं और 15वीं लोकसभा के पहले पांच सत्रों में क्रमश: 112 घंटे और 170.25 मिनट व्यर्थ हुए जबकि 17 वीं लोकसभा में न्यूनतम समय व्यर्थ हुआ—कुल 73 घंटे और 44 मिनट।
नए संसद भवन के निर्माण की ऐतिहासिक पहल
17वीं लोकसभा की पहले पांच सत्रों की एक उपलब्धि यह भी रही कि 10 दिसंबर, 2020 को एक नए संसद भवन का निर्माण आरंभ करने की ऐतिहासिक पहल की गई। मौजूदा संसद भवन देश की प्रतिष्ठित इमारतों में से एक है। 21वीं सदी के हमारे सांसद सदस्यों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इस नए भवन को प्रौद्योगिकी से युक्त और सांसदों को कामकाज के लिहाज से बेहतर सुविधाएं मिलें,उसे ध्यान में रख कर बनाया जा रहा है। नया संसद भवन भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर वर्ष 2022 में तैयार हो जाएगा। इस दौरान भारत की संसद ने वैश्विक संसदीय लोकतंत्र की मजबूती के लिए उद्देश्यपूर्ण कदम उठाए। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की भागीदारी और योगदान बढ़ा है। भारत संसदीय समूह के इतिहास में यह पहली बार है जब अंतर संसदीय संघ के दस निकायों में भारतीय सांसदों की सदस्यता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी भी राष्ट्र की संसद वहां के लोगों की आस्था और शासन प्रक्रिया में भागीदारी का जीवंत प्रतीक होती है। 17वीं लोकसभा के दो वर्ष के कामकाज की उपलब्धियां सदन की कार्यवाही में सदस्यों की सार्थक और प्रभावी भागीदारी भारत के सशक्त और जीवंत लोकतंत्र की आधारशिला का प्रमाण है।
मानसून सत्र के मुद्दे
संसदीय कामकाज की दृष्टि से संसद का प्रत्येक सत्र महत्वपूर्ण होता है। इसलिए मुद्दों और कामकाज के लिहाज से 19 जुलाई, 2021 से शुरू होने वाला संसद का मॉनसून सत्र सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के कारण बजट सत्र को समय से पहले खत्म करने के बाद केंद्र सरकार ने पांच अध्यादेश जारी किए। होम्योपैथी केंद्रीय परिषद (संशोधन) अध्यादेश, भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद (संशोधन) अध्यादेश, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग अध्यादेश, दिवाला और दिवालियापन संहिता (संशोधन) अध्यादेश और न्यायाधिकरण सुधार (तर्कसंगत और सेवा की शर्तें) अध्यादेश वर्तमान में लागू है। इन अध्यादेशों को प्राथमिकता के आधार पर लिया जाएगा क्योंकि संविधान इसके लिए संसद सत्र की शुरुआत से केवल छह सप्ताह का समय देता है। उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के अगले साल प्रस्तावित विधानसभा चुनाव को देखते हुए कुछ नए मुद्दे भी मानसून सत्र के दौरान उठ सकते हैं। ऐसा ही एक मुद्दा धर्मांतरण का है। विपक्ष और सत्तापक्ष की ओर से कोरोना प्रबंधन, वैक्सीनेशन, किसान आंदोलन और बंगाल हिंसा जैसे मुद्दे उठाए जाने के संकेत हैं। इसके अलावा माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण(संशोधन) विधेयक, किशोर न्याय विधेयक, नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च जैसे बिल पहले से लंबित हैं।
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