कथित किसान आंदोलन में शामिल किसान नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षा सामने आने लगी है। इसी राजनीतिक योजना के तहत संयुक्त किसान मोर्चा के नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने पंजाब के किसान नेताओं को चुनाव लड़ने की सलाह दी है।
कथित किसान आंदोलन के नेताओं की असली योजना अब सामने आने लगी है। शुरू से ही आंदोलन पर सवाल उठते रहे हैं, लेकिन तस्वीर अब साफ होती दिख रही है। इस कथित आंदोलन का उद्देश्य राजनीतिक है, किसानों का हित कभी नहीं रहा। पंजाब और उत्तर प्रदेश में अगले साल चुनाव को देखते हुए अब ये किसान नेता राजनीतिक धरातल तलाश रहे हैं। राजनीतिक वर्चस्व को लेकर इनमें खींचतान शुरू हो गई है। संयुक्त किसान मोर्चा के नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने किसान नेताओं से पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ने की अपील की है। लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल पंजाब के किसान संगठनों ने इसका विरोध किया है। उन्होंने इसे चढ़ूनी की निजी सोच बताते हुए स्पष्ट कर दिया है कि उनका चुनाव लड़ने का कोई इरादा ही नहीं है।
क्या कहा गुरनाम चढ़ूनी ने?
भारतीय किसान यूनियन हरियाणा के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने किसान संगठनों को मिलकर चुनाव लड़ने का सुझाव दिया है। उन्होंने कहा कि पंजाब में 2022 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, इसलिए ‘मिशन पंजाब’ की शुरुआत अभी से करें। अपनी सरकार बनाएं और फिर उसे मॉडल को देशभर में पेश करें। चढ़ूनी का कहना है कि किसानों का सत्ता में आना जरूरी है। भाजपा को हराने से किसानों का भला नहीं होगा। उत्तर प्रदेश में भाजपा को हराने से पहले पंजाब के किसानों को अपनी सरकार बनानी होगी। इसके लिए योजना बनानी होगी। दरअसल, उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए संयुक्त किसान मोर्चा ने सूबे में महापंचायत और आयोजनों की योजना बनाई है। इसकी शुरुआत सितंबर से होगी। चढ़ूनी का कहना है कि इसके बाद प्रदेश में चुनावी माहौल होगा और मोर्चा भाजपा को हराने में जुट जाएगा। साथ ही, कहा कि अगर प्रदेश में भाजपा हार भी गई तो केंद्र सरकार किसानों की मांगें नहीं मानेगी। पश्चिम बंगाल का उदाहरण देते हुए चढ़ूनी ने कहा कि किसान संगठनों ने वहां भी भाजपा के खिलाफ प्रचार किया। भाजपा तो हार गई, लेकिन क्या केंद्र ने हमारी मांगें मान लीं? चढूनी ने कहा कि सरकारें बदलती रही हैं, लेकिन किसानों का फायदा कभी नहीं हुआ। उनका तर्क है कि विपक्ष ने भी साफ नहीं किया है कि अगर वे सत्ता में आए तो तीनों कृषि कानूनों को खत्म कर देंगे और न्यूनतम समर्थन की गारंटी वाला कानून बनाएंगे।
हरियाणा के मुख्यमंत्री का पलटवार
संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल पंजाब के किसान संगठनों ने चढ़ूनी के इस सुझाव को खारिज कर दिया है। दर्शनपाल ने सफाई देते हुए साफ-साफ कहा है कि ये चढ़ूनी के निजी विचार हैं। संयुक्त किसान मोर्चा और पंजाब के तमाम किसान संगठनों का इससे कोई संबंध नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि पंजाब के किसी भी किसान संगठन के नेता का चुनाव लड़ने का कोई इरादा नहीं है। इधर, चढ़ूनी के बयान पर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि चढ़ूनी का आंदोलन राजनीति से प्रेरित है। इस आंदोलन का किसानों की समस्याओं से कुछ भी लेना-देना नहीं है। किसान तो नए कृषि क़ानूनों को अच्छा मान रहे हैं।
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