प्रमोद जोशी
उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित आॅक्सीजन आॅडिट कमेटी की अंतरिम रिपोर्ट से दिल्ली की केजरीवाल सरकार का कोरोना के भीषण संकटकाल में भी लोगों की जान बचाने के बजाय मात्र राजनीति के लिए की गई नौटंकी उजागर हो गई है। दिल्ली ने अपनी जरूरत से चार गुना मांग केंद्र के सामने रखी। इस मांग से अन्य राज्यों को कटौती करनी पड़ी जिससे 12 राज्यों में कई मरीजों की मौत हुई। सोशल मीडिया पर लोग मांग कर रहे हैं कि ये मौतें नहीं, हत्याएं हैं। केजरीवाल पर इस झूठ के लिए हत्या का मुकदमा चलना चाहिए।
शुक्रवार 25 जून की सुबह भारतीय मीडिया में खबरें थीं कि उच्चतम न्यायालय की दिल्ली के लिए गठित ‘आॅक्सीजन आॅडिट कमेटी’ ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि 'केजरीवाल सरकार ने कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान जरूरत से चार गुना ज्यादा आॅक्सीजन की मांग की थी।' रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली सरकार को असल में करीब 289 मीट्रिक टन आॅक्सीजन की दरकार थी, लेकिन उसके करीब 1200 मीट्रिक टन आॅक्सीजन की मांग की। इस जरूरत से अधिक मांग का असर उन 12 राज्यों पर देखा गया जहां आॅक्सीजन की कमी के चलते कई मरीजों को अपनी जान गंवानी पड़ी।
दिल्ली में 25 अप्रैल से 10 मई के बीच कोरोना वायरस की दूसरी लहर चरम पर थी। उस समय दिल्ली की आॅक्सीजन जरूरत को लेकर पहले उच्च न्यायालय में और फिर उच्चतम न्यायालय में बहस हुई। इपरिणति में आॅडिट टीम का गठन हुआ, जिसने छानबीन में पाया कि दिल्ली सरकार ने जरूरत से चार गुना ज्यादा आॅक्सीजन की मांग की थी। हालांकि अभी अंतिम रूप से निष्कर्ष नहीं निकाले गए हैं, पर मीडिया में प्रकाशित जानकारी के अनुसार कमेटी ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि दिल्ली को मांग से ज्यादा आॅक्सीजन की आपूर्ति की गई थी।
अभूतपूर्व संकट
कोरोना वायरस की दूसरी लहर के कारण अप्रैल-मई में देश के कई हिस्सों में अस्पतालों में आॅक्सीजन सप्लाई को लेकर कुछ दिन तक विकट स्थिति रही। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए प्रधानमंत्री ने स्वयं इस सिलसिले में कई बैठकों में भाग लिया। गृह मंत्रालय ने हस्तक्षेप करके राज्यों को निर्देश दिया कि वे आॅक्सीजन-वितरण योजना का ठीक से अनुपालन करें।
प्रधानमंत्री को जानकारी दी गई थी कि 20 राज्यों ने 6,785 मीट्रिक टन आॅक्सीजन प्रतिदिन की अभूतपूर्व कुल मांग रखी है, जिसे देखते हुए केंद्र ने 21 अप्रैल से 6,882 मीट्रिक टन प्रतिदिन की स्वीकृति दी थी। यह सामान्य से कहीं ज्यादा बड़ी आपूर्ति थी। एक हफ्ते के भीतर 12 राज्यों में आॅक्सीजन की माँग में एकदम से भारी वृद्धि हो गई थी। उसके पहले 15 अप्रैल को केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने राज्य सरकारों को यह पत्र लिखा था कि 12 राज्यों ने 20 अप्रैल के लिए आॅक्सीजन की जो सम्भावित आवश्यकता जताई थी, वह 4,880 मीट्रिक टनकी थी।
वस्तुत: जरूरत इससे भी ज्यादा थी। गत 21 अप्रैल को स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव निपुण विनायक ने अपने पत्र में इन 12 राज्यों की कुल मांग 5,760 मीट्रिक टन प्रतिदिन की बताई। इन 12 राज्यों में दिल्ली और उत्तर प्रदेश की मांग और ज्यादा हो गई। खासतौर से चार राज्यों में मांग और आपूर्ति में अंतर आ गया। इससे संकट और गम्भीर हो गया। उधर खबरें आर्इं कि कुछ राज्य अपने यहां से आॅक्सीजन को बाहर जाने से रोक रहे हैं। इसके बाद राजनीति के खिलाड़ियों ने आगे बढ़कर खेलना शुरू कर दिया।
केजरीवाल का तमाशा
23 अप्रैल को प्रधानमंत्री की राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ चल रही कॉन्फ्रेंस को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक नाटकीय मोड़ दे दिया। उन्होंने नरेंद्र मोदी से हाथ जोड़कर विनती करते हुए पड़ोसी राज्यों पर आॅक्सीजन ट्रकों को रोकने का आरोप लगाया। इतना ही नहीं, उन्होंने इस कॉन्फ्रेंस को लाइव-स्ट्रीम कर दिया। ऐसे में प्रधानमंत्री को केजरीवाल से कहना पड़ा कि इस मीटिंग का सीधा प्रसारण परम्परा और प्रोटोकॉल के खिलाफ है और अनुचित है। जवाब में केजरीवाल ने माफी मांग ली और कहा कि भविष्य में इस बात का ध्यान रखूंगा। पर उनका काम तो हो चुका था।
संविधान में सार्वजनिक स्वास्थ्य समवर्ती सूची का विषय है। आॅक्सीजन-आपूर्ति सामान्यत: केंद्र के माध्यम से राज्यों और राज्यों से अस्पतालों या जरूरतमंदों तक की जाती है। उसके उत्पादन, परिवहन और वितरण की एक शृंखला है, जिसमें कई पक्ष शामिल हैं। संकट का सामना तभी सम्भव है, जब सब एक साथ खड़े हों और एक-दूसरे पर दोषारोपण न करें। पर दिल्ली में राजनीति का विद्रूप देखने को मिला। एक मई को दिल्ली में महरौली स्थित एक अस्पताल के आईसीयू में भर्ती किए गए 12 कोविड मरीजों की मौत हो गई। अस्पताल ने इन मौतों का जिÞम्मेदार आॅक्सीजन की कमी को बताया। उससे कुछ पहले रोहिणी के एक अस्पताल के आईसीयू में भर्ती 20 लोगों की मौत के लिए भी आॅक्सीजन की कमी को जिम्मेदार बताया गया था। कुछ और अस्पतालों से इसी किस्म की खबरें आईं।
अदालत में मामला
यह मामला दिल्ली हाईकोर्ट पहुंच गया। एक अस्पताल ने दिल्ली सरकार को आॅक्सीजन पहुंचाने में देरी के लिए दोषी ठहराया, वहीं दिल्ली सरकार ने दावा किया कि ये मौतें आॅक्सीजन की कमी से नहीं, बल्कि इस वजह से हुर्इं कि वे अस्पताल में रहने के दौरान पहले से ही बहुत बीमार थे। उधर 4 मई को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने टिप्पणी की कि अस्पतालों को आॅक्सीजन की आपूर्ति न किए जाने की वजह से हो रही मौतें अपराध हैं। उसी दिन दिल्ली उच्च न्यायालय ने मेडिकल आॅक्सीजन देने के आदेश की नाफरमानी पर केंद्र सरकार को कारण बताओ नोटिस जारीकर दिया।
दिल्ली सरकार ने केंद्र पर आरोप लगाया कि उसे उसके हिस्से की पूरी आॅक्सीजन नहीं मिल रही है। वहीं केंद्र ने कहा कि दिल्ली सरकार सप्लाई चेन का प्रबंधन करने में असमर्थ रही है और उसने आॅक्सीजन के टैंकरों की व्यवस्था तक नहीं की थी। केंद्र्र की तरफ से यह भी कहा गया कि केजरीवाल सरकार ने आॅक्सीजन संयंत्र लगाने में देरी की। केंद्र सरकार के सूत्रों ने यह दावा किया कि चार अस्पतालों में प्रस्तावित आॅक्सीजन प्लांट लगाने में इसलिए देरी हुई क्योंकि दिल्ली सरकार ने साइट रेडीनेस का सर्टिफिकेट पेश नहीं किया। इसी तरह रेल मंत्रालय के सूत्रों ने यह भी आरोप लगाया कि दिल्ली सरकार ने 'आॅक्सीजन एक्सप्रेस' के लिए क्रायोजेनिक टैंकर उपलब्ध नहीं कराए।
उधर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को लिखे एक पत्र में दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि कुछ राज्यों में ‘जंगलराज’ के कारण दिल्ली में आॅक्सीजन नहीं पहुंच पा रही। सिसोदिया ने हरियाणा और उत्तर प्रदेश का नाम लेकर कहा कि इन राज्यों में आॅक्सीजन प्लांटों में पुलिस अधिकारियों और वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों को तैनात किया गया है जिन्होंने अन्य राज्यों के लिए आॅक्सीजन की आपूर्ति को अपने राज्यों की तरफ मोड़ दिया है।
अचानक बढ़ी मांग
कोविड महामारी की शुरुआत से पहले पिछले साल जनवरी, फरवरी और मार्च की तिमाही में भारत में औसतन 850 टन आॅक्सीजन का प्रतिदिन मेडिकल क्षेत्र में उपयोग हो रहा था। अप्रैल 2020 से यह मांग बढ़ने लगी और 18 सितंबर तक यह मात्रा तीन हजार टन प्रतिदिन हो गई। अक्तूबर 2020 के बाद, जब कोविड के मामले कम होने लगे तो मांग घटने लगी। 11 फरवरी तक करीब 1,200 टन मेडिकल आॅक्सीजन की हर दिन जरूरत पड़ रही थी। उसके बाद मांग अचानक बढ़ी और देखते ही देखते 8,000 टन से भी ज्यादा की जरूरत पैदा हो गई।
मांग दस गुना बढ़ गई, पर आॅक्सीजन के परिवहन, भंडारण और वितरण का बुनियादी ढांचा पहले जैसा ही था। दिल्ली में आॅक्सीजन संकट की एक मुख्य वजह यह भी है कि दिल्ली में कभी आॅक्सीजन बनाने का संयंत्र नहीं लगा और दिल्ली आॅक्सीजन के लिए हमेशा पड़ोसी राज्यों पर निर्भर रही। दिल्ली सरकार को यह जानकारी देनी चाहिए कि पिछले डेढ़ साल में उसने इस दिशा में क्या काम किया।
ज्यादा बड़ा सवाल यह है कि जब दिल्ली में हाहाकार मचा था, तब आॅक्सीजन की कमी थी या नहीं? मांग बढ़ी थी, इससे किसी को इनकार नहीं, पर क्या वितरण में कोई कमी थी? यह अकुशलता थी या मामले को राजनीतिक मोड़ देने की कोशिश? उस दौरान पैदा हुई हड़बड़ी और शोर के कारण क्या आॅक्सीजन का कृत्रिम संकट पैदा नहीं हुआ? ऐसे तमाम सवालों के जवाबों की अब जरूरत है।
टास्क फोर्स बनी
7 मई को उच्चतम न्यायालय ने केंद्र को आदेश दिया कि दिल्ली को प्रतिदिन 700 मीट्रिक टन की सप्लाई की जाए। बहस के दौरान सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि दिल्ली को अधिकतम 415 मीट्रिक टन की जरूरत है। मेहता ने दिल्ली के आॅक्सीजन आॅडिट की मांग भी उठाई थी। उसके पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को अदालत की अवमानना का नोटिस जारी दिया था, जिसपर केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से अपील की थी।
उस मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से कहा गया कि दिल्ली को जरूरत से ज्यादा आॅक्सीजन मिल रही है, जबकि राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश आॅक्सीजन की कमी से जूझ रहे हैं। दिल्ली और केंद्र्र के बीच तब चली वह बहस अब तार्किक परिणति पर पहुँचने वाली है।
उच्चतम न्यायालय के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की पीठ ने गत 8 मई को राष्ट्रीय स्तर पर इस समस्या के अध्ययन और समाधान के लिए एक 12 सदस्यीय टास्क फोर्स का गठन करके आॅडिट रिपोर्ट पेश करने को कहा था। दिल्ली के लिए अलग से एक सब-ग्रुप बनाया गया, जिसमें एम्स के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया के अलावा चार सदस्य और हैं।
अंतरिम रिपोर्ट
पिछले हफ्ते मीडिया में खबर थी कि इस टीम ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट दी है। इस कमेटी को पेट्रोलियम एंड आॅक्सीजन सेफ्टी आॅर्गनाइजेशन (पेसो) ने बताया था कि दिल्ली के पास सरप्लस आॅक्सीजन था, जो दूसरे राज्यों को मिल सकता था। अस्पतालों में बिस्तरों के आधार पर की गई गणना के हिसाब से दिल्ली को सिर्फ 289 मीट्रिक टन आॅक्सीजन की जरूरत थी, लेकिन उसने 1140 मीट्रिक टन तक की जरूरत बताई। यह जरूरत से लगभग चार गुना अधिक था।
हालांकि आॅडिट कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई है, पर मीडिया में जो विवरण प्राप्त है, उनमें एक तथ्य यह भी है कि 13 मई को आॅक्सीजन टैंकर अधिकतर अस्पतालों में खाली ही नहीं हो सके क्योंकि वहां पहले ही आॅक्सीजन टैंक 75 प्रतिशत से ज्यादा क्षमता के साथ भरे हुए थे। यहां तक कि सरकारी अस्पतालों जैसे एलएनजेपी और एम्स ने भी फुल टैंक होने की बात कही थी।
रिपोर्ट की मीडिया में उपलब्ध जानकारी के अनुसार 29 अप्रैल से 10 मई के बीच दिल्ली में आॅक्सीजन की खपत को लेकर कुछ अस्पतालों द्वारा रिपोर्टिंग में बड़ी गलतियां की गई थीं जिन्हें सही करना पड़ा। दिल्ली सरकार ने टास्क फोर्स को जानकारी दी कि आॅक्सीजन की मांग अस्पतालों द्वारा हस्ताक्षरित फॉर्म के आधार पर की गई थी। इन बातों पर अदालत में ही विचार होगा।
रिपोर्ट की खबर के सामने आने के बाद शनिवार को जब पत्रकारों ने डॉ. गुलेरिया से सवाल किए, तो उन्होंने कहा कि यह अंतरिम रिपोर्ट है। आॅक्सीजन की जरूरत हर रोज बदलती रहती है। मामला अदालत के विचाराधीन है। उनकी इस बात का अर्थ क्या लगाया जाए? अतीत की किसी खास तारीख की स्थिति तो वही रहेगी, जो उस दिन थी। उसमें तो अब बदलाव आने से रहा।
टास्क फोर्स की सिफारिश है कि बड़े शहरों जैसे दिल्ली और मुंबई की आॅक्सीजन जरूरत को पूरा करने के लिए ऐसी रणनीति बने जिससे यहां की जरूरत की 50 प्रतिशत आॅक्सीजन का उत्पादन स्थानीय स्तर पर ही हो जाए। या फिर आसपास के इलाकों से मिल जाए। दूसरी सिफारिश है कि सभी 18 मेट्रो शहरों को आॅक्सीजन के लिहाज से आत्मनिर्भर बनाया जाए जिसके लिए कम से कम 100 मीट्रिक टन आॅक्सीजन स्टोरेज की सुविधा शहर में ही हो।
रिपोर्ट पर राजनीति
टास्क फोर्स ने भविष्य की व्यवस्था को लेकर जो सुझाव दिए हैं, उनमें इस बात को जरूर शामिल किया जाना चाहिए कि आपात-स्थिति में किस प्रकार प्रबंध किया जाए। ऐसे मामलों को राजनीति से बाहर रखना चाहिए। इस रिपोर्ट की खबर आने के बाद दिल्ली सरकार ने पहले यही कहा कि ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं है, जबकि मीडिया में यह भी कहा जाता है कि दिल्ली सरकार के पास उसके दो-तीन दिन पहले से इस बात की जानकारी थी।
दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, सच तो यह है कि ऐसी कोई रिपोर्ट है ही नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने एक आॅक्सीजन आॅडिट कमेटी बनाई है। हमने इसके कई सदस्यों से बात की है। उनका कहना है कि उन्होंने तो अब तक रिपोर्ट साइन ही नहीं की है। यह रिपोर्ट है कहां?
इसके जवाब में बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने एक ट्वीट में दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को इस हलफनामे की कॉपी शेयर करते हुए लिखा है-मनीष जी, आंखें बंद कर लेने से सच नहीं बदल जाता। उन्होंने दावा किया कि दिल्ली सरकार को इस रिपोर्ट की प्रति तीन दिन पहले ही दे दी गई थी।
मीडिया में प्रकाशित विवरण के अनुसार, 22 जून को उच्चतम न्यायालय की सेंट्रल एजेंसी सेक्शन के एक अधिकारी ने रिपोर्ट की जानकारी उच्चतम न्यायालय, केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और अन्य संबंधित एजेंसियों को दे दी थी। इस अधिकारी ने अपने मेल में बताया कि एक हलफनामे के तौर पर इस अंतरिम रिपोर्ट को स्वास्थ्य मंत्रालय सेंट्रल एजेंसी सेक्शन को ई-फाइलिंग के जरिए साझा किया गया है। उधर सोशल मीडिया पर लोग मांग कर रहे हैं कि दिल्ली की चार गुना मांग के कारण अन्य राज्यों में आॅक्सीजन की कमी से हुई मौतें, हत्याएं हैं और इस मामले में केजरीवाल पर मुकदमा चलना चाहिए। ल्ल
पीड़ित परिवारों को मुआवजा
कोरोना से जान गंवाने वालों के परिजनों को मुआवजा देने की मांग वाली याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने बुधवार 30 जून को कहा कि कोरोना से मरने वालों के परिजनों को मुआवजा मिलना चाहिए। यह राशि कितनी होगी, इसका निर्धारण केंद्र सरकार ही करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को निर्देश दिया कि वह कोविड-19 के कारण मरने वालों के परिवारों को अनुग्रह राशि का भुगतान करने के लिए छह सप्ताह के भीतर दिशानिर्देश तैयार करे। बता दें कि याचिका में चार लाख रुपये की मांग की गई थी। इस सिलसिले में दो याचिकाएं अदालत के सामने थीं।
उच्चतम न्यायालय ने 21 जून को उन दो जनहित याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसमें केंद ्रऔर राज्यों को कोरोना वायरस से जान गंवाने वाले लोगों के परिवारों को कानून के तहत 4-4 लाख रुपये मुआवजा देने और मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करने के लिए एक समान नीति बनाने का अनुरोध किया गया था। अदालत दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
टिप्पणियाँ