ग्वादर में इमरान ने बलूचों के लिए खास हमदर्दी तो जताई है, लेकिन क्या वे बलूचों की भलाई के कदम उठाएंगे या उन पर यूं ही अत्याचार होते रहेंगे
5 जुलाई को ग्वादर के दौरे पर गए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने वहां इस बात के संकेत दिए हैं कि वे बलूच अलगाववादी गुटों से बातचीत कर सकते हैं। उल्लेखनीय है कि बलूच लोग वर्षों से अलग बलूचिस्तान की मांग करते आ रहे हैं। बलूच नेताओं का मानना है कि 1948 तक आजाद रहे बलूचिस्तान पर पाकिस्तान ने जबरन कब्जा किया हुआ है। वहां स्वतंत्रता की मांग करने वालों को पाकिस्तानी सेना का दमन सहना पड़ता है। उन्हें अगवा किया जाता है, औरतों का आएदिन बलात्कार किया जाता है। युवाओं को ऐसा गायब किया जाता है कि आगे फिर कभी उनका पता ही नहीं चलता। न्याय की गुहार इस्लामाबाद के बहरे कानों से टकराकर लौटती रही है।
'अलगाववाद' का दमन
लेकिन अब ग्वादर में इमरान के बातचीत का जो संकेत दिया है उससे भी कोई बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं नजर आती बलूचिस्तान वालों को। इमरान ने यह भी कहा कि बलूस्तिान की समस्या उनसे पहले की सरकारों की पैदा की हुई है। उन्होंने कहा कि बलूचिस्तान में अलगाववाद की मुख्य वजह है पूववर्ती सरकारों की इस सुदूर सूबे के प्रति दिखाई गई उदासीनता। यहां के विकास को अनदेखा किया गया। यही वजह है कि बलूच वाले खुद को देश की मुख्यधारा से कटा महसूस करने लगे हैं। इमरान के ग्वादर में हुए इस कार्यक्रम में बड़ी तादाद में स्थानीय बुजुर्ग और छात्र मौजूद थे। जैसा पहले बताया, पाकिस्तान के गठन के बाद से ही बलूचिस्तान के लोग उससे पृथक होने की मांग करते आ रहे हैं। इसी 'अलगाववाद' को दबाने के लिए पाकिस्तान की सेना ने बलूचिस्तान में अमानवीय अत्याचार किए। हजारों लोग, खासकर युवा और छात्र दिनदहाड़े गायब किए जाते रहे, और परिवार के लोग कलपते छोड़ दिए जाते। हजारों बलूचों पर झूठे मुकदमे ठोककर जेल में ठूंस दिया गया।
पाकिस्तानी सेना द्वारा बलूचों के दमन के विरुद्ध बार-बार उठी हैं आवाजें, पर कभी सुनवाई नहीं हुई। (प्रकोष्ठ में) प्रधानमंत्री इमरान खान (फाइल चित्र)
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