शाश्वत हिंदू राष्ट्र दरअसल है क्या?
May 25, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम संघ

शाश्वत हिंदू राष्ट्र दरअसल है क्या?

by WEB DESK
Jul 5, 2021, 04:26 pm IST
in संघ, दिल्ली
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

डॉ. मनमोहन वैद्य
 

    इन दिनों हिंदू और राष्ट्रवाद जैसे शब्दों पर जोरदार विमर्श और बहस सुनने को मिल रही है। हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्रत्व के संबंध में यह उलझाव, उनके अंतर्निहित भारतीय संदर्भ को समझे बिना, उन्हें पश्चिमी मानकों से मापने के कारण हो रहा है

     राष्ट्र-राज्य की अवधारणा का उदय यूरोप में 15वीं सदी के बाद हुआ था। पश्चिम में 'राष्ट्रों' का इतिहास राज्य की शक्ति के साथ जुड़ा रहा जिसका इस्तेमाल विस्तार और औपनिवेशिक पांव पसारने के लिए किया जाता था, जिस कारण कई युद्ध सामने आए। 'राष्ट्रवाद' शब्द का उदय भी इसी संदर्भ में हुआ था। यहां 'वाद' प्रत्यय का उपयोग एक प्रकार के विचारों को इंगित करता है जिन्हें ताकत के आधार पर प्रसारित और अमल में लाया गया। साम्यवाद, समाजवाद, फासीवाद, नाजीवाद आदि विचारधाराएं इसी बात की ओर संकेत करती हैं। नतीजतन, यूरोप में आज 'राष्ट्रवाद' हिटलर और मुसोलिनी की नकारात्मक छाया में नजर आता है। वे जोर देकर कहते हैं, 'हमने (यूरोपीय देशों ने) राष्ट्रवाद के नाम पर उत्पीड़न, हमलों को अंजाम दिया है, इसलिए तुम (हिंदू) भी ऐसा ही करो।' इसके लिए उन्होंने अपने सर्वश्रेष्ठ बौद्धिकों और नीतियों का इस्तेमाल किया और आर्य आक्रमण सिद्धांत उनके विशाल असलहे के कुछ शस्त्र रहे हैं। 'हिंदूवाद' और 'हिंदुत्ववादी' जैसे शब्दों का प्रतिपादन भी इसी अभ्यास का अंश रहा है। जबकि भारत में 'हिंदुत्ववाद' जैसा कुछ भी नहीं है। यहां हम एक हिंदू समाज हैं जो हिंदुत्व (वाद नहीं भाव) को मानते हैं। यही कारण है कि भारतीय भाषाओंं में 'राष्ट्रवाद' शब्द का चलन 'नेशनलिज्म' का अंग्रेजीनुमा अनुवाद मात्र रहा है।
    भारतीय संदर्भ में 'राष्ट्र' शब्द वैदिक पृष्ठभूमि से संबंध रखता है। एक ओर जहां पश्चिमी रष्ट्रवाद राज्य की शक्ति से संबंध रखता है, वहीं राष्ट्र की भारतीय अवधारणा जीवन के भू-सांस्कृतिक मूल्योंं से जुड़ी हैं। इसमें किसी पर कुछ थोपने या उत्पीड़न से जुड़ा कोई विचार दूर-दूर तक नहीं है। अत: भारतीय संदर्भ में 'राष्ट्रवाद' या नेशनलिज्म जैसे शब्द ही अप्रासंगिक हो जाते हैं। दरअसल, यहां राष्ट्र या राष्ट्रीयता जैसे शब्द-संदर्भ मिलते हैं। इसलिए, 'भारत की राष्ट्रीयता' जैसा वाक्य इस्तेमाल करना सबसे उचित होगा।

    राष्ट्र का आध्यात्मिक प्रसाद
    हिंदू विचारधारा के अनुसार 'राष्ट्र' का अर्थ है आमजन। इसका अर्थ किसी स्थान विशेष पर रहने वाले लोगों की गिनती नहीं, बल्कि उनके विचार, जीवन के प्रति दृष्टिकोण, प्रकृति एवं ब्रह्मांड के साथ उनका संबंध, इतिहास एवं परंपरा आदि के प्रति उनका रुझान होता है। संक्षेप में कहें तो यहां मतलब समूचे समाज पर असर डालने और उसका स्वरूप गढ़ने वाली चीजों से है।
    भारतभूमि पर रहने वाले सभी लोग, जो हिमालय से हिंद महासागर तक फैले हैं, विभिन्न भाषा-भाषी, जातियोंं, इष्टदेवों, अर्चना विधियों, खानपान की आदतों, परिधानों आदि के बावजूद जीवन, आदर्शो, प्रकृति, समाज और समूची मानवजाति के प्रति समान विचार रखते हैं। हजारों वर्षों से, इस दृष्टिकोण का एक संस्कृति के तौर पर पोषण और अभ्यास किया गया है जो समाज को एकसूत्र में बांधे रखता है। यही सूत्रबद्धता इसे 'राष्ट्र' का दर्जा देती है। विविधता में एकता दर्शाने वाली आध्यात्मिकता आधारित एकीकृत और संपूर्ण विश्वदृष्टि ही भारत और भारतीयता की पहचान है।
    इसी आध्यात्मिक मंथन के आधार पर सभी भारतवासियों को विभिन्न रूपों में एक ही जीवात्मा नजर आती है। इशावास्यम् इदम् सर्वम् अर्थात् ब्रह्मांड में मूर्त एवं अमूर्त सभी वस्तुएं उसी आत्मा (चैतन्य) का ही स्वरूप हैं। अपने समक्ष दिखने वाली विविधता में मूलभूत एकता देखना ही हमारी वैचारिक बुनियाद रही है। इसलिए, विविधता का अर्थ हमारे लिए 'अलग' होना नहीं होता। विविधता में दिखने वाली एकता को पश्चिम की 'बहुलता' के अर्थ से नहीं जोड़ना चाहिए। बहुलता में भिन्नताओं को एक साथ रखने का प्रयास किया जाता है, जबकि भारतीय विचारधारा के अनुसार, विविधता में सौहार्द और एकता को धर्म या जीवनशैली का दर्जा दिया जाता है। अत: पश्चिमी और भारतीय विचारों में बुनियादी अंतर है कि जहां पश्चिम में 'सब एक हैं' पर जोर दिया गया है, वहीं भारत में नैसर्गिक तौर पर 'सबकुछ एक' माना जाता है। भारत में वस्तुओं, लोगों, प्रक्रिया अथवा विचारों के साथ इसका व्यावहारिक स्वरूप नजर आता है। भारत में विविधता को विरोधी नहीं माना जाता। 'अन्य' को शत्रु की संज्ञा नहीं दी जाती। इसीलिए, बिना शक्ति प्रदर्शन या हिंसा के यहां सबको शांतिपूर्ण तरीके से स्थान मिलता है और अस्तित्व एवं विकास के लिए उपयुक्त आदर और जगह मिलती है, और इसी आधार पर समवेत राष्ट्र का निर्माण होता है जो वैचारिक धरातल पर उसके क्षेत्रफल से भी कहीं बड़ा दिखता है। स्वीकार्यता और समायोजन के ये श्रेष्ठ विचार भारतीय दर्शन और जीवनशैली के मूल में हैं और इसी कारण भारत अनोखा, बेजोड़ और व्यापक बनता है। इस आध्यात्मिक सोच का परिणाम यह है कि ईश्वर तक पहुंचने के कई मार्ग हैं और वे सभी बराबर और सच्चे हैं। ठीक इसी आधार पर स्वामी विवेकानंद शिकागो विश्व संसद के समक्ष कह पाए थे,
    'हम न केवल वैश्विक सहिष्णुता में विश्वास रखते हैं, बल्कि सभी धर्मों को सच्चा मानते हैं। मुझे गर्व है कि मैं उस राष्ट्र का हिस्सा हूं जिसने दुनियाभर के उत्पीडि़तों और शरणार्थियों को अपने यहां शरण दी है।'
    इस अंतर्निहित सोच के एक अन्य पक्ष में माना जाता है कि मानव अस्तित्व शरीर, मस्तिष्क, बौद्धिकता और आत्मा का सम्मिश्रण होता है। मनुष्य की आत्मा, सर्वोच्च आत्मा (चैतन्य) का ही अंश होती है, जो व्यक्ति के रूप में व्याख्यायित होती है। मानव आत्मा की सर्वोच्च क्षमता को पहचान कर सर्वोच्चआत्मा से संवाद की स्थिति बनती है, जो मुक्ति या मोक्ष कहलाती है, और यही मानव जीवन का अंतिम ध्येय भी होता है। इस क्षमता को पहचानने के लिए समय-समय पर कई ऋषियों एवं संतों ने मार्ग सुझाए हैं। व्यक्ति इनमें से किसी भी मार्ग को चुन कर अपना पथ प्रशस्त कर सकता है। यही मार्ग धर्म कहलाते हैं। अत: भारत सच्चा धार्मिक लोकतंत्र है जिसमें सबको अपना धर्म चुनने की आजादी है।
    हिंदुओं का मानना है, 'प्रत्येक अंतर्मन स्वच्छ है। लक्ष्य है बाहरी एवं भीतरी अनुशासन से दिव्यात्मा को अपने भीतर जागृत करने का। यह कार्य के जरिये हो, उपासना से, मानसिक अनुशासन या ध्यान से। इनमें से कोई भी, या और कुछ या सब, मुक्ति ही लक्ष्य है।'
    व्यक्ति, समाज, प्रकृति एवं ब्रह्मांड चैतन्य के चार भिन्न स्तर हैं और इनके बीच कोई द्वंद्व नहीं होता। इसके विपरीत, दोनों के बीच सामंजस्य एवं संगम है। इनके बीच संतुलन बैठाना ही धर्म है। इसलिए धर्म एक व्यापक अवधारणा है और सिर्फ 'रिलिजन' का पर्यायवाची मात्र नहीं। धर्म का संरक्षण एवं सुरक्षा का अर्थ है व्यक्ति, समाज, पर्यावरणीय एवं वैश्विक संतुलन बनाना। यह विचार किसी भी धार्मिक अवधारणा के खिलाफ नहीं जाता। धर्म के इन्हीं शाश्वत सिद्धांतों में विश्वास और उनका पालन ही किसी व्यक्ति को 'हिंदू' बनाता है।
     
    हिंदू वैश्विक विचार
    जैसा कि पहले बताया गया, सतही तौर पर दिखने वाली तमाम विविधताओं के बावजूद, भारत में संपूर्ण समाज के लिए वैश्विक विचार विकसित किया गया और दुनिया ने उसके आध्यात्मिक एवं एकीकृत रूप को हमारे राष्ट्र की अनोखी चारित्रिक विशेषता माना। इसलिए किसी को पसंद आए या नहीं, इस वैश्विक विचार को 'हिंदू' कहा जाता है। यही हमारे समाज की अनूठी राष्ट्रीय पहचान है। डॉ़ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इसी वैश्विक विचार पर अपनी पुस्तक का शीर्षक 'द हिंदू व्यू ऑफ लाइफ' रखा था।
    गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने अपनी प्रभावशाली पुस्तक 'स्वदेशी समाज' में जो लिखा है, वह भी इस मायने में महत्वपूर्ण है। वे कहते हैं, 'विविधता में एकता का अहसास, विविधता में एकता की स्थापना-यही भारत में धर्म की मूल अवधारणा रही है। भारतीय आत्मा भिन्न विचार को अपना विरोधी नहीं मानती, वह अन्य लोगों को अपना शत्रु नहीं कहती। यही कारण है कि बिना त्याग या विध्वंस के, वह सबको एक महान तंत्र में समाहित करना चाहती है। इसीलिए वह सभी मार्गों को अपनाती है और उन सबकी महानता को उनके अपने आलोक में परखती है।'
    वे आगे लिखते हैं, 'भारत के इस गुण के कारण हमें किसी अन्य समाज को अपना विरोधी नहीं मानना चाहिए। प्रत्येक नया संघर्ष हमें हमारे भीतर झांक कर अपना दृष्टिकोण व्यापक करने में सहायक होगा। हिंदू, बौद्ध, मुस्लिम एवं ईसाई एक बिंदु पर आ मिलेंगे। यह बिंदु अ-हिंदू नहीं बल्कि विशेष तौर पर हिंदू होगा। इसके अंग कितने भी विदेशी क्यों न हों, इसका जीवन और आत्मा भारत की ही रहेगी।'
    अत: हिंदुत्व का अर्थ है, आध्यात्मिकता आधारित समन्वयवादी एवं व्यापक वैश्विक दृष्टिकोण। यह समूचे हिंदू समाज का विशिष्ट लक्षण है। पूरी दुनिया ने इसका अनुभूत किया और भारत पहुंचे कई आगंतुकों और प्रतिष्ठित विशेषज्ञों ने इसे दर्ज किया। यही कारण है कि राष्ट्र के लिए 'हिंदू' एक विशेषण के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। और 'हिंदू राष्ट्र' इसकी नैसर्गिक धारा होने के साथ-साथ निर्विवाद एवं शाश्वत सत्य है। यह राष्ट्र सुदूर अतीत से अस्तित्व में रहता आया है और कभी बनावटी इकाई नहीं रहा।

     
       भ्रामक राजनीति
    राजनीतिक संवादों के दौरान समाजवादी-वामपंथी पृष्ठभूमि वाले बौद्धिकों ने जान-बूझकर हिंदू राष्ट्र की परिभाषा के बारे गलतफहमियां पैदा कीं। उन्होंने भ्रामक धारणा फैलाई कि हिंदू राष्ट्र 'धर्मतंत्र राज्य' की नींव साबित होगा जहां किसी एक धर्म को मानने वालों को विशेषाधिकार होंगे और अन्य धर्मावलंबियों के साथ भेदभाव होगा। सच तो यह है कि भेदभाव का विचार ही अपने आप में भारत के लिए अनजाना है। अतीत में भारत के किसी भी शासक ने धर्म के नाम पर भेदभाव करने की नहीं सोची थी। कम से कम, मुगलों के आगमन तक तो भारत का इतिहास कुछ ऐसा ही रहा।
    हिंदू राष्ट्र के सिद्धांत को प्रतिपादित करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के दूसरे सरसंघचालक गुरुजी गोलवलकर के कुछ बयानों को तोड़-मरोड़ कर मिथ्यारोपण के साथ निशाने पर लिया जाता रहा है। 1971 में उनके द्वारा सैफुद्दीन जिलानी के उस साक्षात्कार का हवाला दिया जाता है, जिसमें उन्होंने कहा था,
    'हमारी धार्मिक मान्यताओं और दर्शन के अनुसार, एक मुस्लिम हिंदू जैसा ही होता है।' आरोप लगाते समय गुरुजी द्वारा आगे कहे शब्दों को जान-बूझकर छोड़ दिया जाता है, जिसमें उन्होंने कहा था, 'केवल हिंदू ही ईश्वर के समीप तक नहीं पहुंचेगा। प्रत्येक व्यक्ति को अपने अनुसार मार्ग चुनने का अधिकार है। यही हमारी प्रवृत्ति रही है।'

    आज भी संघ की शाखाओं में कई मुस्लिम एवं ईसाई शामिल होते हैं। उनके साथ किसी भी तरह से अलग व्यवहार नहीं किया जाता। चूंकि हिंदू कन्वर्जन में विश्वास नहीं रखते, इसलिए उनसे किसी हिंदू संप्रदाय को मानने का आग्रह भी नहीं किया जाता। अपने चुने हुए धर्म और उपासना विधि के अभ्यास के बिना वे स्वयंसेवकों के तौर पर काम करते हैं। 1998 में विदर्भ क्षेत्र में एक विशाल कैम्प में करीब 30,000 स्वयंसेवक तीन दिन तक रुके थे। चूंकि वह रमजान का महीना था, इसलिए देखा गया कि कुछ मुस्लिम स्वयंसेवक इफ्तार से रोज़ा खोलते थे।
    हिंदू धर्म को जातिवाद के साथ जोड़ने का शैतानी अभियान भी चल रहा है, जिसमें हिंदू धर्मावलंबियों को मनुवादियों की संज्ञा दी जाती है, यानी ऐसे लोग जो मनुस्मृति के सिद्धांतों के अनुसार सामाजिक ताने-बाने को गढ़ना चाहते हैं। दुर्भाग्यवश, यह सच है कि पिछली कुछ सदियों से समाज में जाति आधारित भेदभाव और छुआछूत रही है, परंतु यह प्रत्येक धर्म का सच है। सच तो यह है कि रा.स्व.संघ के किसी भी शीर्षस्थ ने कभी जाति आधारित भेदभाव को न तो बढ़ावा दिया और न ही कभी उसे बनाए रखने की वकालत की। यही नहीं, 1969 में उडुपी में श्री गुरुजी ने प्रत्येक संप्रदाय के धार्मिक नेताओं के साथ एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें कहा गया था, 'अस्पृश्यता को धर्म की कोई मान्यता नहीं है और उसका कोई धार्मिक आधार भी नहीं है।' वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तीसरे सरसंघचालक बालासाहेब देवरस का बयान है, 'यदि अस्पृश्यता पाप नहीं है, तो दुनिया में कुछ भी पाप नहीं है। अस्पृश्यता जैसे अमानवीय अभ्यास का समूल नाश होना चाहिए।' उनके ये शब्द जातिप्रथा और उससे जुड़े घिनौने रूपों को समाप्त करने के आरएसएस के प्रण को दर्शाते हैं।

    हिंदुत्व के खिलाफ एक अन्य दुर्भावना से जुड़ा अभियान चल रहा है, जिसमें कहा जाता है कि वह महिला विरोधी है और उन्हें 'कमतर प्रकृति' का मानता है। आरएसएस की शीर्षस्थ निर्णायक इकाई, अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के अनुसार, 'प्राकृतिक अंतर के अलावा, महिलाओं के प्रति कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए और उन्हें निर्णय लेने की प्रक्रिया का हिस्सा बनने और समाज एवं राष्ट्रीय जीवन के प्रत्येक पक्ष में समान अवसर मिलने चाहिए।' इसलिए रा.स्व.संघ की महिला विरोधी छवि इसके विरोधियों द्वारा गढ़ा गया एक और भ्रामक अभियान है और पूरी तरह झूठ पर टिका है।
    वाम-उदारवादियों का एक पसंदीदा आरोप है कि हिंदुत्व के पैरोकार खुले विमर्श से दूर औैर अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ हैं। इसके विपरीत, ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि अभिव्यक्ति और विमर्श की जितनी आजादी हिंदू सोच का हिस्सा रही है, उसका पूरी दुनिया में कोई सानी नहीं मिलता। भगिनी निवेदिता ने इसे कुछ इस तरह कहा है, 'यदि ब्रूनो भारत में होता तो उसे कभी जिंदा नहीं जलाया जाता।' यही सच गैलीलियो के बारे में भी है। इस संदर्भ में डॉ़ अभय बंग की कहानी आदर्श दिखती है। डॉ़ बंग पूरी सहृदयता के साथ जनजातियों का उपचार करते रहे हैं। उन्हें संघ के एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया गया था। चूंकि महाराष्ट्र के कुछ कथित उदारवादी और प्रगतिशील समूह भी उन्हें अपने कार्यक्रम में आमंत्रित करना चाहते थे, उन्होंने डॉ़ बंग की कड़ी आलोचना शुरू कर दी। अनेक समाजवादी पत्र-पत्रिकाओं ने उन पर निजी हमले करने शुरू कर दिए थे। डॉ़ बंग का कहना था कि रा.स्व. संघ के मंच पर भी वे अपने विचार पूरी मजबूती से रखने वाले थे, इसलिए यह व्यर्थ का शोर-शराबा क्यों, लेकिन प्रगतिशीलों ने उनकी एक न सुनी। आखिरकार डॉ़ बंग रा.स्व.संघ के कार्यक्रम में गए और अपने विचार दृढ़ मत के साथ सबके सामने रखे। उन्होंने अपने विचारपत्रों की प्रति महाराष्ट्र के एक प्रगतिशील साप्ताहिक साधना को भी भेजी, परंतु साधना ने उनका प्रकाशन नहीं किया। अभिव्यक्ति की आजादी के पैरोकारों द्वारा अभिव्यक्ति की आजादी का यह निराला रूप सबके सामने था।

    केरल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओंं द्वारा रा.स्व.संघ के कई स्वयंसेवकों की हत्याएं हो चुकी हैं। दरअसल, जिन अधिकांश स्वयंसेवकों को माकपा की हिंसा में निशाना बनाया गया है, वह पहले इसी पार्टी के सदस्य थे। वामपंथी दल में अभिव्यक्ति की आजादी की सचाई को देख उसे लगातार छोड़कर संघ में आ मिलने वाले लोगों की गिनती अभी जारी है। अपनी केरल यात्रा के दौरान मैं पी. केशवन नायर नामक व्यक्ति से मिला। वह वामपंथी नेता थे। उन्हें 'साइंस इन वेदाज़' विषय पर एक लेख लिखने के कारण पार्टी से निकाल बाहर किया गया था। उन्होंने माकपा की विचारधारा और कार्यशैली से जुड़े अपने अनुभवों पर 'बियॉन्ड रैड' नामक एक पुस्तक भी लिखी है। वे लिखते हैं, 'यह पुस्तक भारतीय संदर्भ में लंबे समय से जरूरी रहा एक अभ्यास है, जिसमें मार्क्सवादियों ने साम्यवाद की असफलता और उससे जुड़ी क्रूरता को जानने के लिए पूरे उत्साह के साथ अपने सिद्धांत के सच्चे आकलन को जबरन दबाया। धार्मिक एवं राजनीतिक सर्वसत्तावाद जैसी कई परंपराओं की तरह ही साम्यवाद एक ही तरह की आजादी देता है, और वह है अपनी प्रशंसा करने की आजादी।'
    कहना न होगा कि वे लोग जो एक सिद्धांत पर यकीन कर उससे बाहर के विचारों को गलत मानते हैं, वही अभिव्यक्ति की आजादी का नारा बुलंद करते दिख रहे हैं। अफसोस इस बात का भी है कि अन्य विचारों को मानने वालों को मार डालने की नीति का पालन करने वाले ही सहिष्णुता का पाठ पढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। इस प्रक्रिया में हिंदू और हिंदुत्व उनके पसंदीदा निशाना रहते हैं, क्योंकि हिंदुत्व सत्य की अभिव्यक्ति के लिए सभी विधाओं और विचारों को समाहित करने की बात करता है।
     
    एक अन्य मिथ्या प्रचार यह फैलाया जाता है कि हिंदुत्व मूलत: आध्यात्मिक विचारधारा है और इसमें भौतिक पक्षों का कहीं जिक्र नहीं आता। यह सच है कि दुनियावी इच्छाओं को सीमित कर अपने भीतर दैवीय तत्व की पहचान की जा सकती है, और इसे सभी भारतीय संप्रदायों द्वारा जीवन का अंतिम लक्ष्य भी कहा गया है। अत: भौतिकवाद के गुणगान की अपेक्षा परित्याग और सीमित उपभोग को जीवन का प्रधान मूल्य माना गया है। इसका अर्थ यह नहीं कि हिंदू विचार में भौतिक प्रगति का कोई स्थान न हो। जीवन के प्रधान मार्गदर्शक सिद्धांत धर्म की एक परिभाषा है – यतो अभ्युदय निष्रेयस सिद्धि स: धर्म:। इसका अर्थ है कि भौतिक उन्नति और मोक्ष का समान स्थान है। अत: चार पुरुषार्थों – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का हिंदू विचारधारा में समान महत्व है। इस सब को व्यक्ति एवं समाज कठोर श्रम और दृढ़ता से प्राप्त कर सकते हैं; ये उपलब्धियां राज्य की जिम्मेदारी नहीं होतीं। राज्य केवल इनकी दिशा में काम करने वाले संस्थानों के संरक्षक की भूमिका निभा सकता है। पश्चिम में 'राष्ट्र' का विचार भूगोल से जुड़ा है और राज्य उसका अभिन्न अंग होता है। वहीं भारतीय संदर्भ में राष्ट्र का विचार उसके लोगों की संप्रभुता से जुड़ा है। शाश्वत के सभी पक्षों तथा वैयक्तिक, पारिवारिक, पेशेवराना एवं समाज के अन्य स्तरों के सभी हिंदू मूल्यों का बोध और अभिव्यक्ति हिंदुत्व का प्रमुख लक्ष्य है। इस शाश्वत राष्ट्र का अंग होने के कारण और इन मूल्यों पर अपने निजी जीवन में गौरवान्वित होने तथा सामाजिक स्तर पर इनकी रक्षा और इन्हें प्रोत्साहित करने वाले प्रयासों का अंश के तौर पर हमें 'हिंदू होने' पर गर्व होना चाहिए।
    (लेखक रा.स्व.संघ के सहसरकार्यवाह हैं)

 

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

India Exposes Pakistan

‘पाकिस्तान के आतंकी हमलों में 20,000 भारतीयों की हुई मौत’, UNSC में भारत ने गिनाए पड़ोसी के ‘पाप’

ghar wapsi

घर वापसी: सुंदरगढ़ में 14 आदिवासियों की घर वापसी, मिशनरियों के प्रलोभन से बने थे ईसाई

India has becomes fourth largest economy

जापान को पीछे छोड़ भारत बना दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, 4.18 ट्रिलियन डॉलर का आकार

PM Narendra Modi Varanasi visit

‘ऑपरेशन सिंदूर हमारे संकल्प, हमारे साहस और बदलते भारत की तस्वीर है’, मन की बात में बोले PM मोदी

CM साय का आत्मनिर्भर बस्तर विजन, 75 लाख करोड़ की इकोनॉमी का लक्ष्य, बताया क्या है ‘3T मॉडल’

dr muhammad yunus

बांग्लादेश: मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में काउंसिल ने कहा-‘सुधार जरूरी!’, भड़काने वाले लोग विदेशी साजिशकर्ता

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

India Exposes Pakistan

‘पाकिस्तान के आतंकी हमलों में 20,000 भारतीयों की हुई मौत’, UNSC में भारत ने गिनाए पड़ोसी के ‘पाप’

ghar wapsi

घर वापसी: सुंदरगढ़ में 14 आदिवासियों की घर वापसी, मिशनरियों के प्रलोभन से बने थे ईसाई

India has becomes fourth largest economy

जापान को पीछे छोड़ भारत बना दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, 4.18 ट्रिलियन डॉलर का आकार

PM Narendra Modi Varanasi visit

‘ऑपरेशन सिंदूर हमारे संकल्प, हमारे साहस और बदलते भारत की तस्वीर है’, मन की बात में बोले PM मोदी

CM साय का आत्मनिर्भर बस्तर विजन, 75 लाख करोड़ की इकोनॉमी का लक्ष्य, बताया क्या है ‘3T मॉडल’

dr muhammad yunus

बांग्लादेश: मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में काउंसिल ने कहा-‘सुधार जरूरी!’, भड़काने वाले लोग विदेशी साजिशकर्ता

Defence deal among Israel And NIBE

रक्षा क्षेत्र में भारत की छलांग: NIB लिमिटेड को मिला इजरायल से ₹150 करोड़ का यूनिवर्सल रॉकेट लॉन्चर ऑर्डर

the Wire Omar Rashid Rape a women

‘द वायर’ के पत्रकार ओमर रशीद द्वारा बलात्कार का मामला और फिर एक बार सेक्युलर गैंग की अंतहीन चुप्पी

कार्रवाई की मांग को लेकर लोग एकत्र हुए

तिलक लगाकर आने पर मुस्लिम युवक ने हिंदू नेता को मारा चांटा, सर्व हिंदू समाज का जोरदार प्रदर्शन

By-elections

चार राज्यों की 5 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की घोषणा, 19 जून को मतदान

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies