हरियाणा में नूंह एक जगह है। यह मुस्लिम-बहुल मेवात जिले का जिला केंद्र है। इस जिले में बरसों से हिंदू प्रताड़ित हो रहे हैं। गत दिनों कुछ अधिवक्ताओं ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर मांग की थी कि न्यायालय मेवात में घटने वाली घटनाओं की जांच के लिए एक एसआईटी गठित करे, लेकिन अदालत ने याचिका को ही खारिज कर दिया
गत दिनों सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर हुई। इसमें बताया गया कि हरियाणा के मुस्लिम-बहुल मेवात मेें हिंदुओं के साथ बहुत अन्याय हो रहा है। इसलिए न्यायालय वहां हो रही घटनाओं की जांच के लिए एक एसआईटी का गठन करे। लेकिन सुनवाई के प्रारंभ में ही मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन. वी. रमना, न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की पीठ ने कहा कि वे अखबारों में छपी खबरों के आधार पर दाखिल इस याचिका को नहीं सुनेंगे। याचिका की पैरवी करने वाले वकील विकास सिंह ने दलील दी कि मामले के सभी याचिकाकर्ता पेशे से वकील हैं। उनमें से दो ने स्वयं उस क्षेत्र का दौरा कर वहां की स्थिति का अध्ययन किया है। लेकिन पीठ इन बातों से आश्वस्त नहीं हुई और याचिका को खारिज कर दिया।
बता दें कि यह याचिका अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री, विष्णु शंकर जैन आदि ने दायर की थी। इसमें कहा गया था कि मेवात के 431 गांवों में से 103 गांवों में एक भी हिंदू नहीं बचा है। योजनाबद्ध तरीके से हिंदुओं को परेशान किया जा रहा है। बड़े पैमाने पर हिंदू लड़कियों को दबाव देकर कन्वर्ट किया जा रहा है। याचिका में यह मांग भी की गई थी कि न्यायालय पिछले 10 साल में हिंदुओं की तरफ से मुसलमानों को बेची गई संपत्ति का हर सौदा अमान्य करार दे। याचिका में यह बताया गया था कि इलाके में बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय हिंदुओं के बुनियादी अधिकारों का हनन कर रहा है। पुलिस सभी मामलों में निष्क्रिय बनी रहती है। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय एक एसआईआटी का गठन करे, जो वहां की स्थितियों की जांच कर रपट दे।
इतनी बातों को सामने रखने के बाद भी पीठ याचिका की सुनवाई के लिए तैयार नहीं हुई।
इसके बाद यह बहस छिड़ी हुई है कि आखिर सर्वोच्च न्यायालय ने बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों और रोहिंग्या मुसलमानों के मामले को भी तो 'मानवता' के आधार पर सुना था, वह मेवात में प्रताड़ित हिंदुओं के मामले को भी सुन सकता है। इस बहस में आम लोग भी शामिल हैं, तो बहुत सारे वकील भी। सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन कहते हैं, ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जब अदालतों के आदेशों पर लोगों ने सवाल खड़े किए हैं।
उन्होंने सलमान खान का उदाहरण देते हुए कहा कि एक सड़क दुर्घटना के मामले में मुंबई उच्च न्यायालय ने बिना आदेश की प्रति दाखिल हुए मौखिक प्रार्थना पर उन्हें जमानत दे दी थी। उस समय लोगों में चर्चा हुई थी कि अच्छा होता न्यायालय निचली अदालत के आदेश की प्रति आने के बाद कुछ निर्णय देता।
उन्होेंने यह भी कहा कि कथित भीेड़ द्वारा हत्या (मॉब लीचिंग) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने तुरंत सुनवाई कर गोसेवकों के विरुद्ध सख्त निर्णय दिया था। इसी तरह कथित कठुआ बलात्कार मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने तुरंत आदेश दिया था। श्री जैन का यह भी कहना है कि भीमा कोरेगांव के मामले में अभियुक्त बनाए गए नक्सलियों को उनके घर में ही नजरबंद रखने का आदेश हुआ था, जबकि कुछ विशेषज्ञों का कहना था कि ऐसे अपराधियों को जेल में ही रखना उचित होता।
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