तिब्बत के शीर्ष धर्मगुरु दलाई लामा का चयन सदियों से प्राचीन पद्धति से होता आया है। लेकिन चीन चाहता है कि दलाई लामा उसकी रजामंदी से बनें ताकि तिब्बत पर बीजिंंग की पकड़ और मजबूत हो जाए
आलोक गोस्वामी
तिब्बत के धर्मगुरु 14वें दलाई लामा, तेनजिन ग्यात्सो आगामी 6 जुलाई को 86 साल के हो रहे हैं। उनकी बढ़ती उम्र को देखते हुए धर्मशाला और बीजिंग में अगले दलाई लामा के चयन को लेकर अलग—अलग विचार उभरने लगे हैं। जहां तिब्बती अगले दलाई लामा को सदियों पुरानी पद्धति के माध्यम से ही चुनना चाहते हैं तो वहीं बीजिंग अपने चुने लामा को दलाई लामा की पदवी पर बैठाने पर अड़ा है। कारण यह कि वह चाहता है उनके 'माध्यम' से तिब्बत पर अपना शिकंजा और मजबूत हो जाए। लेकिन इस सबमें अमेरिका भी एक पक्ष बनकर उभर रहा है।
तिब्बती बौद्ध धर्म में दलाई लामा को एक 'जीवंत बुद्ध' की तरह पूजा जाता है। ऐसे लामा जो इस संसार से जाने के बाद नए रूप में अवतरित होते हैं। परंपरागत पद्धति से उस नए रूप की खोज होती है और अंतत: उन्हें खोजकर उनको सर्वोच्च पदवी पर आरूढ़ किया जाता है। बाल रूप में चयनित ये दलाई लामा आगे अपनी भूमिका निभाने के लिए बौद्ध धर्म का विधिवत अध्ययन करते हैं। उल्लेखनीय है वर्तमान दलाई लामा की पहचान भी पारंपरिक रीति से तब की गई थी जब वे सिर्फ 2 साल के थे।
चीन की अकड़
चीन ने ऐसे संकेत दिए हैं कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चयन वही करेगा। कम्युनस्टि चीन की इस हेकड़ी को देखते हुए दलाई लामा के करीबियों को लगता है कि वे संभवत: परंपरा को तोड़ते हुए खुद अपने उत्तराधिकारी का चयन करें। उधर अमेरिका इस मुद्दे को पहले से ही अनेक अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के सामने प्रस्तुत करने की मांग रख चुका है। पिछले साल अमेरिकी दूत सैम ब्राउनबैक ने धर्मशाला में दलाई लामा से मुलाकात की थी। तब ब्राउनबैक ने कहा था कि दोनों के बीच उत्तराधिकारी के मामले पर भी लंबी बात हुई थी।
क्यों चिढ़ा है चीन
दलाई लामा के 2019 में कहा था कि उनका उत्तराधिकारी कोई भारतीय हो सकता है। इस बात से चीन चिढ़ गया था। उसने तब कहा था कि नए लामा को आखिरकार उनकी सरकार से मान्यता लेनी ही पड़ेगी। तिब्बतियों के अनुसार लामा यानी ‘गुरु’ वह हैं जो सभी का मार्गदर्शन करते हैं।
अमेरिका और चीन में तनातनी
दलाई लामा को लेकर अमेरिका और चीन में काफी समय से तनातनी जारी है। राष्ट्रपति जो बाइडन तिब्बत में चीन के मानवाधिकार हनन को लेकर बोलते रहे हैं। तिब्बत और सिंक्यांग को लेकर अमेरिका ने चीन पर कड़े प्रतिबंध लगाए हुए हैं। 2020 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रंप ने दलाई लामा के चयन में चीनी हस्तक्षेप के खिलाफ और उस पर लगाम लगाने के लिए तिब्बती नीति एवं समर्थन कानून 2020 पारित किया था। इस कानून में तिब्बतियों के उनके आध्यात्मिक नेता का उत्तराधिकारी चुनने के अधिकार पर बल दिया गया है, तिब्बत के मुद्दों पर एक विशेष राजनयिक की भूमिका का विस्तार किया गया है। इसमें तिब्बत में अमेरिकी कारोबारी दूतावास स्थापित करने और एक अंतरराष्ट्रीय गठबंधन बनाने की बात की गई है।
अमेरिका ने पहले भी कई बार कहा है कि अगले दलाई लामा का चयन केवल तिब्बती बौद्ध लोग ही करें, इसमें चीन का कोई दखल न हो।
उल्लेखनीय है कि तिब्बत पर कब्जे के 70 साल बाद भी चीन का शिकंजा पूरी तरह मजबूत नहीं हो पाया है। इसी कारण शी जिनपिंग सरकार अब तिब्बत में लामा के रास्ते पकड़ मजबूत करने पर आमादा है। यहां के लोगों के बीच अपनी पैठ बनाने के लिए चीन अब पंचेन लामा का सहारा लेने की तैयारी कर रहा है। पंचेन लामा को तिब्बती बौद्ध धर्म में दलाई लामा के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण पद माना जाता है। 1989 में तत्कालीन पंचेन लामा की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई थी। उन्हें चीन सरकार ने कथित जहर दिलवाया था। पंचेन लामा के परिवार को गायब करने के बाद चीनी सरकार ने अपने प्रभाव वाले बौद्ध लामाओं से ऐसे पंचेन लामा चुनने को कहा जो उसके इशारे पर चलें। इसके बाद चीन ने गाइनचेन नोरबू को आधिकारिक पंचेन लामा घोषित कर दिया था।
दलाई लामा को लेकर अमेरिका और चीन में काफी समय से तनातनी जारी है। राष्ट्रपति जो बाइडन तिब्बत में चीन के मानवाधिकार हनन को लेकर बोलते रहे हैं। तिब्बत और सिंक्यांग को लेकर अमेरिका ने चीन पर कड़े प्रतिबंध लगाए हुए हैं। 2020 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रंप ने दलाई लामा के चयन में चीनी हस्तक्षेप के खिलाफ और उस पर लगाम लगाने के लिए तिब्बती नीति एवं समर्थन कानून 2020 पारित किया था।
टिप्पणियाँ