आशीष कुमार 'अंशु'
पीड़ितों के बीच से एक युवक को काफी समझा बुझाकर, विश्वास दिलाकर टीम ने तैयार किया था, मोहल्ले में मार्गदर्शन के लिए। उसे पीड़ित परिवारों का घर दिखाना था और उस परिवार की सही जानकारी देनी थी। स्थानीय युवक होने की वजह से उसके लिए यह सब आसान था। लेकिन जब उसे लेकर टीम गांव तक पहुंची। वहां पार्टी दफ्तर से महिलाओं और पुरुषों का हुजूम निकला। उनके हाथों में चप्पल, पत्थर, गोश्त काटने वाला चाकू था। उन्होंने सबसे पहले टीम के सामने ही उस युवक को पीटा जो मार्गदर्शक बन कर आया था
पश्चिम बंगाल में चुनाव नतीजों के बाद हुई हिंसा को लेकर कलकत्ता उच्च न्यायालय की चिन्ता कोई छुपी हुई बात नहीं है। राज्य में कानून व्यवस्था की जिस तरह धज्जियां उड़ी हैं, उसके बाद एक पल को लगा कि राज्य में कानून का नहीं जंगल का ही शासन चल रहा है। जिसे तृणमूल के लोग बार—बार झूठलाते रहे। जबकि उस दौरान हजारों लोग पलायन कर चुके थे और बड़ी संख्या में ऐसी महिलाएं सामने आकर सच बताने को भी तैयार हुईं, जिन्होंने तृणमूल के गुंडों का अत्याचार सहा था, जिनका यौन शोषण हुआ था। पश्चिम बंगाल की मीडिया तृणमूल के भय की वजह से सच दिखा नहीं पा रही।
सच आया उन लोगों के माध्यम से जो पश्चिम बंगाल छोड़कर दूसरे राज्यों में जान बचाकर भाग आए थे या फिर पश्चिम बंगाल में रहते हुए दूसरे राज्यों में अपने रिश्तेदारों के संपर्क में थे। सोशल मीडिया ने ऐसी दबी हुई आवाजों को मुखरता के साथ उठाया। उन्हें आवाज दी। पश्चिम बंगाल में बीजेपी के पिछड़ी जाति मोर्चा से जुड़े एक पदाधिकारी ने बताया कि वे बंगाल से जान बचाकर भाग आए हैं, लेकिन शुभचिन्तकों के माध्यम से उन्हें खबर मिली है कि उनके सिर पर दस लाख रुपए का ईनाम रख दिया गया है। जान बचाने के लिए ही वे दिल्ली आए हैं।
पलायन, हत्या, बलात्कार, यौन उत्पीड़न से जुड़ी अनगिनत घटनाओं पर कोलकाता उच्च न्यायालय ने चुनाव परिणाम के बाद हुई हिंसा पर 18 जून, 2021 को समिति बनाने का निर्देश दिया। कोलकाता उच्च न्यायालय के दिशा निर्देश पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य राजीव जैन के नेतृत्व में सात सदस्यीय समिति का निर्माण हुआ। समिति में अल्पसंख्यक आयोग से आतिफ रशीद, महिला आयोग से राजूबेन एल देसाई, मानवाधिकार आयोग के महानिदेशक समेत तीन लोग और शामिल किए गए।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की टीम 27—29 जून तक तीन दिनों तक पश्चिम बंगाल में थी। 27 जून को ही टीम के सदस्य और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के उपाध्यक्ष आतिफ रशीद पर हमला हुआ। आतिफ ने वे वीडियो जारी किए, जिसमें हमलावर साफ देखे जा सकते हैं।
अब पूरी टीम रिपोर्ट बनाने में जुट गई है। यह जिम्मेवारी का काम है। जिसमें घटनाओं से जुड़ा एक—एक ब्यौरा सही प्रकार से दर्ज हो। जिससे न्यायालय मामले की गंभीरता को समझ सके। वैसे आतिफ मानते हैं कि जो पश्चिम बंगाल के हालात बना दिए गए हैं, उसे अब ममता की पुलिस नियंत्रित नहीं कर पाएगी। हालात को सामान्य बनाने के लिए वहां जमीन पर सेना को उतरना होगा।
आतिफ ट्विटर पर एक वीडियो शेयर करते हुए लिखते हैं, ''इस वीडियो को देखिये कैसे पश्चिम बंगाल के जाधवपुर में दंगाई सीआईएसएफ के जवानों के साथ भी मार—पीट कर रहें हैँ। सीआईएसएफ के जवानों की मौजूदगी में इनकी इतनी हिम्मत है तो आम आदमी जिसका क़ुसूर सिर्फ इतना था की उसने अपनी मर्ज़ी से वोट किया। इन्होंने उनका क्या हाल कर रखा होगा।''
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की टीम जब दलित बस्तियों में गई। वहां क्रूरता का तृणमूल नाच देखकर वे सब हैरान रह गए। जाधवपुर की इन बस्तियों में ना अब तक उदित राज पहुंच पाए हैं और ना चन्द्रशेखर रावण। इन दोनों के लिए अब उत्तर प्रदेश में भी कहा जाने लगा है कि इनमें जितना रिचार्ज होता है, उतना ही चलते हैं। जो सारा खर्च उठाता है, उसका ही काम करते हैं। आप चन्द्रशेखर और उदित राज दोनों के सोशल मीडिया टाइम लाइन से गुजर जाइए। आपको ना दिल्ली के दलित दंगा पीड़ितों के लिए संवेदना के दो शब्द वहां मिलेंगे और ना ही ये लोग जाधवपुर के सवाल पर मुंह खोलेंगे। ऐसा क्यों होता है ? क्या यह सच है कि ऐसे मामलों पर बोलने से उनकी फंडिंग का स्त्रोत प्रभावित हो सकता है ?
पश्चिम बंगाल के जाधवपुर में दलित समाज के जले हुए, टूटे हुए घरों की तस्वीरें मानवाधिकार आयोग की टीम अपने साथ लेकर आई है। उन तस्वीरों को देख कर कोई भी संवेदनशील इंसान रो पड़ेगा; लेकिन दलित संगठन के नाम पर जो लोग चर्च के इशारे पर काम कर रहे हों, उन्हें मौत की खामोशी के बीच कन्वर्जन की संभावनाएं ही नजर आएंगी। बहरहाल, मानवाधिकार आयोग की टीम जिस दलित मोहल्ले में गई थी, वहां से घरों के लोग दो महीने पहले ही पलायन कर चुके थे। उन दलित परिवारों का गुनाह सिर्फ इतना था कि उन्होंने तृणमूल को वोट ना देकर, अपनी मर्ज़ी से वोट किया था।
क्या यह ममता का लोकतंत्र है ? जहां तृणमूल को छोड़कर दूसरी पार्टी को वोट करना अपराध है। इस अपराध की सजा तृणमूल के गुंडे तय करते हैं। आयोग की टीम वहां सच जानने के लिए पहुंची तो उन पर भी हमला किया गया। ऐसे लोग जो आयोग की टीम पर अर्धसैनिक बल और स्थानीय पुलिस की मौजूदगी में हमला कर सकते हैं, तो वे लोग ग़रीब और दलित परिवारों का क्या हाल करते होंगे। इसका सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है।
आतिफ के अनुसार—कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश के बाद पोस्ट पोल वॉइलेन्स की जांच कर रही टीम के सदस्य के नाते जब हम जाधवपुर पहुंचे तो वहां हमने 40 से अधिक घर टूटे हुए व जले हुए पाए। उन घरों में जो लोग चुनाव से पहले रहते थे, उनका कोई अता पता नहीं था। कुछ स्थानीय गुंडों ने हमारा भी घेराव किया। हमारे काम—काज में बाधा पहुंचाई। काम नहीं करने दिया और उन्होंने पथराव की भी कोशिश की।
राज्य के हालात की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आतिफ कहते हैं कि यदि मुझसे फिर जाधवपुर जाने को कहा जाए तो मैं ही इंकार कर दूं। वहां जो देखा है और महसूस किया है, उसकी दहशत मुझ पर हावी है। वहां के आम लोगों का हाल इससे समझा जा सकता है। तृणमूल की राज्यव्यापी नृशंसता का सबसे बड़े शिकार दलित और आदिवासी हैं।
जब यह टीम जाधवपुर पहुंची थी, उसके एक घंटे पहले स्थानीय डीएम और एसएसपी को इसकी सूचना दे दी थी। पीड़ितों के बीच से एक युवक को काफी समझा बुझाकर, विश्वास दिलाकर टीम ने तैयार किया था, मोहल्ले में मार्गदर्शन के लिए। उसे पीड़ित परिवारों का घर दिखाना था और उस परिवार की सही जानकारी देनी थी। स्थानीय युवक होने की वजह से उसके लिए यह सब आसान था। लेकिन जब उसे लेकर टीम गांव तक पहुंची। वहां पार्टी दफ्तर से महिलाओं और पुरुषों का हुजूम निकला। उनके हाथों में चप्पल, पत्थर, गोश्त काटने वाला चाकू था। उन्होंने सबसे पहले टीम के सामने ही उस युवक को पीटा जो मार्गदर्शक बन कर आया था। पीड़ित पक्ष का कानून पर विश्वास इसलिए भी नहीं जम रहा क्योंकि वहां गुंडों ने सीआईएसएफ के जवानों पर भी हमला किया। उन पर पत्थर और चप्पल फेंके गए। महिलाएं गोश्त काटने वाला चाकू दिखाकर डराने का काम कर रहीं थी। अब ऐसे में कौन यकीन करेगा कि यह आंखों देखा हाल एक लोकतांत्रिक राज्य का है। जिसे भारतीय गणराज्य में पश्चिम बंगाल के नाम से जाना जाता है।
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