आशीष कुमार 'अंशु'
मौलवियों को वकील अहमद का किस्सा अपनी तकरीरों के माध्यम से उन तमाम मुसलमानों तक पहुंचाना चाहिए जो घर में पहली बीबी के रहते हुए अपने लिए दूसरी और तीसरी बीबी तलाश रहे हैं। एक से अधिक बीबी रखने की प्रथा को हम 21वीं सदी में चला रहे हैं। एक सभ्य समाज के नाते यह बात हमें शर्मिन्दा करने वाली क्यों नहीं लगती। जहां एक पुरुष चार-चार महिलाओं पर अपना हक रखे। यदि बराबरी के इस जमाने में यही हक मुस्लिम औरतें मांगे तो क्या मौलाना-मौलवी यह हक उन्हें दे पाएंगे ?
भ्रामक मीडिया का एक टैग ट्विटर इस्तेमाल करने वाले नहीं भूले होंगे। यह टैग ट्विटर ने भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता संबित पात्रा द्वारा कथित कांग्रेसी टुलकिट को साझा किए जाने पर लगाया था। ट्विटर को टुलकिट मामले में कितनी जल्दी थी, न्याय करने की। जबकि एक के बाद एक कई मामले सामने आए, जहां 'मेनीपुलेटेड खबरों' से ट्विटर पर ही लोग खेलते रहे और ट्विटर बेपरवाह नजर आया। लोनी में एक धोखाधड़ी और मारपीट के मामले को जिस तरह से ट्विटर ने साम्प्रदायिक रंग देने का प्रयास किया, उसके बाद तो उस पर गाजियाबाद में एफआईआर भी हुई है। अब तो भारत के अंदर ट्विटर की पूरी भूमिका ही भ्रामक मीडिया की नजर आ रही है।
इसी का परिणाम है कि उस पर बुलंदशहर में बजरंग दल द्वारा भारत के नक्शे के गलत चित्रण का मामला दर्ज कराया गया है। यह मामला ट्विटर के भारत में प्रबंध निदेशक मनीष माहेश्वरी पर दर्ज हुआ है। आनन—फानन में ट्विटर ने जरूर अब भारत का विकृत किया गया नक्शा अपनी वेबसाइट से हटा लिया, लेकिन ना उसने गलत नक्शा लगाने के लिए कोई माफी मांगी है और ना ही कोई स्पष्टीकरण दिया है। जिस तरह ट्विटर का भारत विरोधी और हिन्दू विरोधी चरित्र उसके काम काज में बार—बार नजर आ रहा है, उससे लगता नहीं कि भारत में उसकी राह आने वाले समय में आसान रहने वाली है।
अब न्यूयॉर्क पोस्ट का ही ताजा मामला देख लीजिए। उसे तो ट्विटर पर ब्लू टिक मिला हुआ है। वेबसाइट ने 28 जून को अपने ट्विटर हैंडल https://twitter.com/nypost/status/1409558391622619148 से 'इंडियन प्रिस्ट'स वाइफ चॉप्स आफ हिज पेनिस आफ्टर ही वांटेड टु मेरी अगेन' शीर्षक वाली खबर लगाई। इस खबर के लिंक के साथ ट्विटर पर जो तस्वीर साझा की गई है, वह एक हिन्दू पुजारी की है। जो हाथों में दीपक लेकर ईश्वर की आराधना की मुद्रा में है। आमतौर पर ट्विटर पर मौजूद पाठक समूह खबरों को विस्तार से जानने—बूझने के लिए समय खर्च करने वाला वर्ग नहीं है। वह आम तौर पर खबरों को समझता नहीं बल्कि खबरों से गुजरता है। मतलब ट्विटर पर न्यूयार्क पोस्ट की तस्वीर और हेडलाइन की मेल-जोल से वो अपने दिमाग में एक कहानी बुनता है। इस कहानी को गढ़ने में निश्चित तौर पर खबर के शीर्षक के साथ दी गई छवि एक अहम भूमिका निभाती है। वह तस्वीर खबर के शीर्षक के साथ इसी उद्देश्य से लगाई भी गई है। इस तरह जो नैरेटिव बनता है, वह हिन्दू विरोधी है और सचाई से परे है।
खबर साझा किए जाने के दूसरे ही घंटे में इस तस्वीर पर 1200 कमेन्ट आ गए और 650 से अधिक लोगों ने इसे साझा किया। जबकि जितने लोग यहां कमेन्ट और शेयर कर रहे हैं, उससे कई गुना अधिक लोग इस खबर को देखकर बिना किसी प्रतिक्रिया के अपनी एक हिन्दू विरोध राय बनाते हुए आगे बढ़ गए होंगे।
ट्विटर के टिप्पणी खंड में स्मिता देशमुख वेबसाइट पर लानत भेजती हुई लिखती हैं— क्यों फेक नैरेटिव गढ़ रहे हो ? यह एक मुसलमान मौलवी है, जबकि तुम तस्वीर एक हिन्दू पुजारी की लगा रहे हो। कमेन्ट में बार-बार पाठकों द्वारा आगाह किए जाने के बावजूद ना ट्विटर ने इस पूरे मामले पर कोई कार्रवाई की और ना ही न्यूयार्क पोस्ट की वेबसाइट ने खबर लिखे जाने तक कोई भूल सुधार किया है। न्यूयार्क पोस्ट के हवाले से ट्विटर पर चल रही तस्वीर वास्तव में मक्कारी की कहानी है। जहां मौलवी के गुप्तांग कटने की खबर में जान बूझकर हिन्दू पुजारी की तस्वीर लगाई गई है।
दरअसल, वकील अहमद मुजफ्फर नगर के भौराखुर्द की एक मस्जिद में मौलवी था। 22 जून की रात मौलवी की संदिग्ध हालात में मौत हो गई थी। उसके गुप्तांग पर चाकू से बहुत गहरे घाव के निशान थे। पुलिस जांच में अब यह बात सामने आ गई है कि मौलवी की यह हालत उसकी पत्नी हाजरा ने की। चार बेटियों का बाप, मस्जिद का मौलवी वकील अहमद तीसरी निकाह की तैयारी में था। जो बात उसकी दूसरी बीबी को पसंद नहीं आई। तीन बेटियों का निकाह कर चुका बाप वकील अब इस उम्र में अपने लिए तीसरी बीबी लाना चाहता था, जबकि घर में उसकी चौथी बेटी कुंवारी थी। हाजरा ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया है।
मौलवियों को वकील अहमद का किस्सा अपनी तकरीरों के माध्यम से उन तमाम मुसलमानों तक पहुंचाना चाहिए जो घर में पहली बीबी के रहते हुए अपने लिए दूसरी और तीसरी बीबी तलाश रहे हैं। एक से अधिक बीबी रखने की प्रथा को हम इक्कीसवीं सदी में चला रहे हैं, एक सभ्य समाज के नाते यह बात हमें शर्मिन्दा करने वाली क्यों नहीं लगती। जहां एक पुरुष चार-चार महिलाओं पर अपना हक रखे, यदि बराबरी के इस जमाने में यही हक मुस्लिम औरतें मांगे तो क्या मौलाना-मौलवी यह हक उन्हें दे पाएंगे?
ट्विटर बीते कुछ महीनों से जिस तरह का व्यवहार कर रहा है, भारत की जनता ही उस पर एक दिन भ्रामक मीडिया का टैग चिपका देगी। अब भी समय है, ट्विटर को संभल जाना चाहिए।
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