शशांक द्विवेदी
सरकार ने देश भर में 3.3 करोड़ हेक्टेयर कम उपजाऊ या बंजर जमीन में रतनजोत की खेती को चिन्हित किया है। अगर जैव ईंधन विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधों से तैयार किया जाए तो भारत अपनी जरूरतों का 10 प्रतिशत ईंधन खुद तैयार कर सकता है और इससे 20 हजार करोड़ रुपये के बराबर विदेशी मुद्रा की बचत मुमकिन होगी।
पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि प्रदूषण को कम करने और आयात पर निर्भरता घटाने के लिए पेट्रोल में 20 फीसद एथेनॉल मिलाने के लक्ष्य को पांच साल घटाकर 2025 कर दिया गया है। पहले यह लक्ष्य 2030 तक पूरा किया जाना था। एथेनॉल सम्मिश्रण से संबंधित रूपरेखा के बारे में विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट जारी करने के बाद मोदी ने कहा कि अब एथेनॉल 21वीं सदी के भारत की बड़ी प्राथमिकताओं से जुड़ गया है। उन्होंने कहा,‘एथेनॉल पर ध्यान केंद्रित करने से पर्यावरण के साथ ही एक बेहतर प्रभाव किसानों के जीवन पर भी पड़ रहा है। पिछले वर्ष सरकार ने 2022 तक ईंधन ग्रेड के एथेनॉल को 10 फीसद पेट्रोल में मिलाने का लक्ष्य तय किया था।
कृष्ण क्रांति यानी ब्लैक रिवोल्यूशन
किसी आधारभूत उत्पाद या तकनीक के संदर्भ में दूसरों पर आश्रित रहना देश के अर्थतंत्र के लिए कितना भारी पड़ता है, इसका ज्वलंत और पीड़ाकारी प्रमाण है भारत में कच्चे तेल की कमी। पेट्रोल और डीजल की कीमतों में लगातार हो रही मूल्य वृद्धि ने आम आदमी को परेशान किया है। कच्चे तेल की कीमतों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निरंतर उतार-चढ़ाव से पेट्रोलियम उत्पादों की कमी वाले देशों के अर्थतंत्र को जड़ से हिला दिया है। आज सच्चाई यह है कि हम अपनी मांग का 75 फीसद से अधिक तेल आयात करते हैं और इसके लिए हर साल सैकड़ों अरब डॉलर की भारी-भरकम विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ती है। रुपये की घटती और डालर की बढ़ती हुई कीमतों की वजह से ये राशि और भी ज्यादा बढ़ जाती है, जिससे भारतीय खजाने पर बोझ बढ़ रहा है। तेल के आयात के कारण ही भारत का विदेशी व्यापार घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। ऐसी विषम परिस्थितियों में हमें इसका स्थायी समाधान खोजना होगा। इसलिए अब हमें इस दिशा में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के ठोस तथा सकारात्मक उपायों पर विचार करना पड़ेगा।
कृषि के क्षेत्र में हरित क्रांति एवं श्वेत क्रांति के बाद अब समय है कृष्ण क्रांति यानी ब्लैक रिवोल्यूशन का। पेट्रोलियम उत्पादों के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास को कृष्ण क्रांति नाम दिया गया है। इसका उद्देश्य देश को पेट्रोल और डीजल में आत्मनिर्भर बनाना है। चूंकि कच्चा तेल काले रंग का होता है, इसलिए इसके उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास को कृष्ण क्रांति कहा जायेगा। यह देश में एक ऐसी क्रांति होगी जिसकी एक बार शुरुआत हो जाने के बाद देश को हमेशा जरूरत रहेगी। इसके लिए हमें देश में दूसरे तरीकों से पेट्रोल और डीजल को बनाना होगा या इसका विकल्प तैयार करना होगा।
विश्व के कई देशों जैसे—संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राजील आदि में एथेनॉल मिश्रित पेट्रोलियम का सफल प्रयोग हो रहा है। ब्राजील में फसल पर कीटनाशी पाउडर छिड़कने वाले विमान इपनेमा का ईंधन, पारम्परिक ईंधन में एथेनॉल को मिलाकर तैयार किया जाता है। यह प्रदूषण रहित होने के साथ—साथ किसी भी अन्य अच्छे ईंधन की तरह उपयोगी होता है। अब इसका प्रयोग विदेशों में मोटरकारों में अधिक होता जा रहा है। असल में 2014 तक भारत में औसतन सिर्फ एक से डेढ़ फीसद एथेनॉल मिलाया जाता था, लेकिन आज यह करीब 8.30 फीसद तक पहुंच गया है। वर्ष 2013-14 में जहां देश में 38 करोड़ लीटर एथेनॉल खरीदा जाता था, वह अब आठ गुना से भी ज्यादा बढ़कर करीब 320 करोड़ लीटर हो गया है। पिछले साल पेट्रोलियम कंपनियों ने 21,000 करोड़ रुपए का एथेनॉल खरीदा और इसका बड़ा हिस्सा देश के किसानों, विशेष कर गन्ना किसानों को गया और उन्हें इससे बहुत लाभ हुआ।
एथेनॉल गन्ना, चुकंदर, मक्का, जौ, आलू, सूरजमुखी या गंध सफेदा से तैयार किया जाता है। यह गन्ना, गेहूं व टूटे चावल जैसे खराब हो चुके खाद्यान्न तथा कृषि अवशेषों से भी निकाला जाता है। इससे प्रदूषण भी कम होता है और किसानों को आमदनी का एक विकल्प भी मिलता है। एथेनॉल चीनी मिलों से निकलने वाली गाद या शीरा से बनाया जाता है। पहले यह बेकार चला जाता था, लेकिन अब इसका सदुपयोग हो सकेगा और इससे गन्ना उत्पादकों को भी लाभ होगा। यह पेट्रोल के प्रदूषक तत्वों को भी कम करता है। ब्राजील में बीस प्रतिशत मोटरगाड़ियों में इसका प्रयोग होता है। अगर भारत में ऐसा किया जाए तो पेट्रोल की बचत के साथ-साथ विदेशी मुद्रा की बचत में भी यह सहायक होगा। देश में कई लाख हेक्टेयर भूमि बेकार पड़ी है। अगर मात्र एक करोड़ हेक्टेयर भूमि में ही एथेनॉल बनाने वाली चीजों की खेती की जाए तो भी देश तेल के मामले में काफी हद तक आत्मनिर्भर हो जाएगा।
बायोडीजल के लिए जटरोपा
इसी तरह बायोडीजल के लिए रतनजोत या जटरोपा का उत्पादन किया जा सकता है। कई विकसित देशों में वाहनों में बायोडीजल का सफल प्रयोग किया जा रहा है। इंडियन ऑयल द्वारा इसका परीक्षण सफल रहा है। वर्तमान वाहनों के इंजन में बिना किसी प्रकार का परिवर्तन लाए इसका प्रयोग संभव है। जटरोपा समशीतोष्ण जलवायु का पौधा है, जिसे देश में कहीं भी उगाया जा सकता है। इसे उगाने के लिए पानी की भी अत्यंत कम आवश्यकता होती है। यह बंजर जमीन पर भी आसानी से उग सकता है। जटरोपा की खेती के लिए रेलवे लाइनों के पास खाली पड़ी भूमि का उपयोग किया जा सकता है।
पिछले दिनों प्रधानमंत्री संयुक्त राष्ट्र में ‘‘मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे'' के बारे में उच्च स्तरीय संवाद को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए कहा कि भारत 2030 तक 2.6 करोड़ हेक्टेयर बंजर भूमि को सुधारेगा जिससे 2.5 से 3 बिलियन (250 से 300 करोड़) टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर अतिरिक्त कार्बन सिंक हासिल हो सकेगा। साथ ही भारत विकासशील देशों को भूमि-बहाली की रणनीति विकसित करने की मदद करने की दिशा में काम कर रहा है।भूमि क्षरण आज दुनिया के दो-तिहाई हिस्से को प्रभावित करता है, अगर इसे नियंत्रित नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं, जब हमारा समाज, अर्थव्यवस्था, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और जीवन की गुणवत्ता की नींव नष्ट हो जाएगी। वास्तव में कम होती उपजाऊ भूमि और सूखा मानवता के लिए चिंता का कारण हैं। यह पूरी दुनिया के लिए खतरे का संकेत है। भारत में, पिछले 10 वर्षों में, लगभग 30 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र जोड़ा गया है। इसने संयुक्त वन क्षेत्र को देश के कुल क्षेत्रफल का लगभग एक-चौथाई तक बढ़ा दिया है।
कम होती उपजाऊ भूमि या बंजर जमीन में जटरोपा का उत्पादन करके हम न सिर्फ इस जमीन का बड़े पैमाने पर उपयोग कर पाएंगे बल्कि बायोडीजल बना कर देश को प्रदूषण से भी मुक्ति दिलाएंगे। वैज्ञानिक और व्यावहारिक परीक्षणों से साबित हो चुका है कि जटरोपा पौधे के बीजों से सस्ते गुणवत्तायुक्त जैव ईंधन का उत्पादन किया जा सकता है। जटरोपा पौधा भारत में बंजर भूमि पर भी आसानी से उगने वाले तिलहन वर्ग के बीज जैव ईंधन यानी जैव डीजल बनाने के लिए उपयोगी है। साढ़े तीन किलो जटरोपा बीज से एक लीटर जैव ईंधन बन सकता है। सरकार ने देश भर में 3.3 करोड़ हेक्टेयर कम उपजाऊ या बंजर जमीन में रतनजोत की खेती को चिन्हित किया है। अगर जैव ईंधन विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधों से तैयार किया जाए तो भारत अपनी जरूरतों का 10 प्रतिशत ईंधन खुद तैयार कर सकता है और इससे 20 हजार करोड़ रुपये के बराबर विदेशी मुद्रा की बचत मुमकिन होगी। जैव ईंधन तेल की कुल मात्रा में से कम से कम 10 प्रतिशत का विकल्प बन सकता है। भारत और चीन की अर्थव्यवस्था के तेज विकास को देखते हुए यहां इसी रफ्तार से ऊर्जा की मांग भी बढ़ रही है। भारत में ऊर्जा की प्रति व्यक्ति खपत, अमेरिका, जापान और चीन की तुलना में कम है, लेकिन हम अपनी आबादी के लिहाज से इस खपत को दो गुना कर दें तो, देश को काफी अधिक मात्रा में ऊर्जा की जरूरत होगी। ज्यों-ज्यों जैव ईंधन का उत्पादन बढ़ेगा इसके दामों में कमी आयेगी।
बायोडीजल और एथेनॉल से कम होगा कार्बन उत्सर्जन
इस बात में कहीं कोई संदेह नहीं है कि पेट्रोल में एथेनॉल के मिश्रण और बायोडीजल से देश में कार्बन उत्सर्जन कम होगा। कार्बन उत्सर्जन कम होने के बजाय बढ़ा है इसके साथ ही दुनिया भर में कई तरह का प्रदूषण भी बढ़ा है। भयंकर वायु प्रदूषण के कारण हालात तो यहां तक हो गए हैं कि दुनिया भर के कई शहर रहने लायक ही नहीं बचे हैं। अधिकांश नदियां, तालाब, पेड़-पौधे, पशु-पक्षियों की प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। कथित विकास पर्यावरण को हर दिन, हर समय, हर जगह लील रहा है।
अमेरिकी अन्तरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा किए गए ‘कार्बन इन आर्कटिक रिजर्वायर्स वल्नरेबिलिटी एक्सपेरिमेंट’ के अनुसार, पिछले 10 लाख वर्ष में इस समय वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 100 पीपीएम अधिक है। संभव है यह स्तर पिछले 2.5 करोड़ वर्षों में सर्वाधिक हो। पृथ्वी के पर्यावरण में आए इस बदलाव का सबसे अहम पहलू यह है कि पिछले कुछ दशकों से कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में तेजी से इज़ाफा हो रहा है, अर्थात भविष्य में इसमें और तेजी से वृद्धि होगी।
वास्तविकता तो यह है कि पिछले 18 वर्ष में जैविक ईंधन के जलने की वजह से कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन 40 प्रतिशत तक बढ़ चुका है और पृथ्वी का तापमान 0.7 डिग्री सेल्शियस तक बढ़ा है। अगर यही स्थिति रही तो सन् 2030 तक पृथ्वी के वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा 90 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी।
भारत पेरिस समझौते के तहत कार्बन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में तेजी से काम कर रहा है। ऐसे में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर काम करते हुए हमें जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता कम करनी होगी। इसीलिये जिस गति से विश्व में पेट्रोलियम उत्पादों का उपभोग हो रहा है, उसके अनुसार विश्व में अगले 40 साल की मांग पूरी करने के लिए ही कच्चे तेल के भंडार हैं। भविष्य में होने वाली तेल की कमी को पूरा करने के लिए अभी से गंभीरता पूर्वक कदम उठाने होंगे। पेट्रोल में एथेनॉल के 20 प्रतिशत मिश्रण और बायोडीजल से देश में ईंधन आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ेगा और कच्चे तेल के आयात में कमी आएगी। जिससे देश का अर्थ तंत्र मजबूत होगा। ब्लैक रिवोल्यूशन या कृष्ण क्रांति भारत की टिकाऊ विकास को मजबूत करेगी। देश की वर्तमान और भावी सुरक्षा के लिए कृष्ण क्रांति का सफल होना बहुत जरूरी है। सरकार को अपने तमाम प्रयासों से इसके मार्ग में आने वाली प्रत्येक कठिनाई को दूर करना होगा।
(लेखक मेवाड़ यूनिवर्सिटी में डायरेक्टर और टेक्निकल टूडे पत्रिका के संपादक हैं)
टिप्पणियाँ