प्रदीप सरदाना
चंद्र शेखर अपनी वृद्दावस्था के चलते पिछले करीब 20 बरसों से फिल्मों में काम नहीं कर रहे थे। लेकिन उनका दिल अब भी फिल्मों के लिए धड़कता था। चंद्र शेखर जी ने भारतीय सिनेमा को बहुत योगदान दिया है। यह बात अलग है की अधिकांश लोग उनके इस योगदान को नहीं जानते।
फिल्म-टीवी अभिनेता चंद्र शेखर ने यूं 98 वर्ष की उस उम्र में इस दुनिया को अलविदा किया, जो उम्र आज बहुत कम लोगों को मिलती है। लेकिन इसके बावजूद जब 16 जून को उनके निधन का समाचार मिला तो मन दुखी हुआ। असल में चंद्र शेखर एक ऐसे दिग्गज अभिनेता थे, जिन्होंने अपनी फिल्मों से ही नहीं अपने कार्यों से भी फिल्म उद्योग को बहुत कुछ दिया।
फिर इस समय वह भारतीय सिनेमा के दो सर्वाधिक आयु वाले अभिनेताओं में से एक थे। अब सिर्फ दिलीप कुमार सबसे ज्यादा उम्र के अभिनेता हैं। जबकि चंद्र शेखर दिलीप कुमार से सिर्फ 6 महीने छोटे थे। यूं चंद्र शेखर अपनी वृद्दावस्था के चलते पिछले करीब 20 बरसों से फिल्मों में काम नहीं कर रहे थे। लेकिन उनका दिल अब भी फिल्मों के लिए धड़कता था। चंद्र शेखर जी ने भारतीय सिनेमा को बहुत योगदान दिया है। यह बात अलग है की अधिकांश लोग उनके इस योगदान को नहीं जानते।
आज युवा पीढ़ी के अधिकतर लोग, चंद्र शेखर को ‘रामायण’ सीरियल के आर्य सुमंत के रूप में जानते हैं। सन 1987 में जब पहली बार दूरदर्शन पर रामानन्द सागर के सीरियल ‘रामायण’ का प्रसारण हुआ तो अपने सधे और मंझे हुए अभिनय से चंद्र शेखर ने अपनी सुमंत की भूमिका को यादगार बना दिया। लॉकडाउन के चलते पिछले एक वर्ष से ‘रामायण’ सीरियल का प्रसारण फिर से लगातार किसी न किसी चैनल पर हो रहा है।
चंद्र शेखर सिर्फ एक अच्छे अभिनेता ही नहीं, एक शानदार इंसान भी थे। मेरा सौभाग्य रहा कि मैं उनसे बरसों पहले भी मिलता रहा और कुछ समय पहले भी मुंबई में उनके घर जाकर, उनके साथ बैठकर बहुत सी बातें कीं। हालांकि पिछले कुछ समय से उन्हें सुनने में दिक्कत थी। ज्यादा बोलना भी उनके लिए मुश्किल था। फिर भी वह मेरे साथ जैसे तैसे देर तक बतियाते रहे। मेरे सवालों के जवाब भी देते रहे।
अपनी इस मुलाक़ात के दौरान उन्होंने मुझसे कहा कि मुझसे मिलने के लिए अक्सर कोई न कोई संपर्क करता रहता है। लेकिन मैं मना कर देता हूँ। हालांकि मना करना मुझे बुरा लगता है लेकिन मना इसीलिए करता हूँ कि मैं अब ठीक से सुन नहीं पाता। ज्यादा देर किसी से बात नहीं कर सकता। फिर किसी से मिलकर क्या करूँ। लेकिन आपको मैं मना नहीं कर सका।
पत्नी की पुण्यतिथि वाले ही दिन ही हुआ निधन
इसे संयोग कहें या कुछ और कि चंद्र शेखर जी की पत्नी पुष्पा देवी का निधन 16 जून 2010 को हुआ था और चंद्र शेखर जी ने स्वयं भी अपनी अंतिम सांस 16 जून को ली। चंद्रशेखर जी के पुत्र अशोक शेखर से मेरी बात हुई तो वह बोले- यूं चंद्रशेखर जी की तबीयत 10 जून को खराब हुई थी। इसलिए हमने उन्हें उस दिन अस्पताल में भी दाखिल कराया। लेकिन अगले दिन ही वह घर आ गए। उन्हें वैसे कोई रोग नहीं था। बस अधिक उम्र के कारण उन्हें कुछ दिक्कतें थीं। अगले दिन वह कुछ बेहतर लगे। लेकिन 15 जून शाम 4 बजे उनकी तबीयत ज्यादा बिगड़ गयी। परिवार के हम सभी सदस्य उनके साथ बैठे रहे। लेकिन उन्होंने पूरी रात निकाल दी। 16 जून को सुबह 7 बजे उन्होंने उसी तारीख को अपने प्राण त्यागे जिस तारीख को हमारी माता जी का निधन हुआ था।‘’
यहाँ बता दें चंद्र शेखर जी का विवाह पुष्पा देवी से 13 साल की उम्र में ही हो गया था। अपनी पत्नी से उनका अथाह प्रेम तो था ही, वह उनका सम्मान भी बहुत करते थे। वह बातचीत में कहते थे कि लोग कहते हैं- ‘’फिल्मी दुनिया में पति पत्नी के रिश्ते नहीं निभते लेकिन हम इस बात की मिसाल हैं कि फिल्मी दुनिया में भी पति पत्नी के सम्बंध खूब निभते हैं।‘’ चंद्र शेखर जी की पत्नी का जब निधन हुआ तब उनकी शादी को 74 साल हो चुके थे।
बहुत संघर्ष के बाद मिला फिल्मों में काम
चंद्र शेखर वैद्य का जन्म 7 जुलाई 1923 को हैदराबाद में हुआ था। यह सिर्फ 18 साल के थे तो मुंबई आ गए। मुझे अपनी बातचीत में चंद्रशेखर जी ने बताया था-‘’ फिल्मों में काम करने की इच्छा लेकर मैं एक स्टूडियो से दूसरे स्टूडियो भटकता रहा। लेकिन कोई स्टूडियो में घुसने भी नहीं देता था। बड़ी मुश्किल से 1944 में शालीमार स्टूडियो में मुझे नौकरी मिली। यहीं रामानन्द सागर से भी मेरी पहली मुलाक़ात हुई, जो वहाँ स्टूडियो के प्रचार का काम देखते थे। लेकिन बाद में वह लेखक बन गए और उन्होंने एक उपन्यास लिखा –‘और इंसान मर गया’ जो काफी पसंद किया गया। बाद में जब रामानन्द सागर ने फिल्में बनायीं तो उनके साथ कुछ फिल्में भी कीं। बाद में उन्होंने ‘रामायण’ सीरियल बनाया तो उसमें मैंने आर्य सुमंत का किरदार निभाया। जिसने मुझे नयी पहचान दी।‘’
चंद्र शेखर जी ने मुझे पीछे एक खास बात और बताई कि वह ‘रामायण’ में तो आर्य सुमंत बने लेकिन 1950 के दशक में फिल्म ‘बजरंगबली’ में वह हनुमान भी बन चुके हैं। चंद्रशेखर बताते थे-‘’मैं लंबा चौड़ा एक दम फिट होता था। इसलिए मुझे हनुमान का रोल मिल गया। वह फिल्म भी अच्छी चली थी।‘’
शांताराम को मानते थे अपना गुरु
चंद्र शेखर ने फिल्मों में शुरुआत एक जूनियर आर्टिस्ट के रूप में की। कुछ छोटी छोटी भूमिकाओं के बाद उनका सितारा तब चमका जब उस दौर के सुप्रसिद्द फ़िल्मकार वी शांताराम ने चंद्र शेखर को 1953 में अपनी फिल्म ‘सुरंग’ में एक अहम भूमिका में लिया। इसके बाद इन्हें अच्छी पहचान मिली। जहां चंद्र शेखर ने वी शांताराम से काफी कुछ सीखा। इसलिए चंद्रशेखर वी शांताराम को अपना गुरु मानते थे।
उधर ‘सुरंग’ के बाद 1954 में इनकी दो प्रमुख फिल्में आयीं। एक देवकी बोस की ‘कवि’ जिसमें यह गीता बाली और भारत भूषण के साथ थे। दूसरी एच एस रवेल की ‘मस्ताना’। इस फिल्म में मोतीलाल और निगार सुलताना प्रमुख भूमिकाओं में थे। बस इसके बाद चंद्रशेखर की फिल्मों में गाड़ी सरपट दौड़ने लगी। कुछ फिल्मों में वह नायक भी बने।
इनकी शुरुआती दौर की खास फिल्मों में काली टोपी लाल रुमाल,औरत तेरी यही कहानी, बारादरी, गेट वे ऑफ इंडिया, फैशन, पासिंग शो, रूप कुमारी, ज़िंदगी के मेले, अंगुलीमाल, सपने सुहाने और किंग काँग के नाम लिए जा सकते हैं।
भारत भूषण थे खास दोस्त
चंद्र शेखर के यूं तो फिल्म उद्योग में सभी से अच्छे रिश्ते रहे। सभी के साथ काम किया। लेकिन अभिनेता भारत भूषण इनके प्रिय मित्र थे। यहाँ तक दोनों कुछ समय तक मुंबई में एक ही घर में साथ साथ भी रहे। भारत भूषण के साथ चंद्र शेखर ने कुछ फिल्में भी कीं। जबकि भारत भूषण की कुछ फिल्मों में चंद्र शेखर ने निर्माण में भी उनके साथ भागीदारी की। दोनों की साथ की गयी फिल्मों में बरसात की रात, मीनार और बसंत बहार भी हैं।
फिल्म ‘चा चा चा’ ने मचाई धूम
बहुत कम लोग जानते हैं कि चंद्र शेखर बहुत अच्छे डांसर भी थे। ब्रिटेन से इन्होंने बाकायदा पश्चिमी नृत्य का प्रशिक्षण लिया था। वह बताते थे- ‘’मैं तब टॉप का डांसर था। मुझे मेरे डांस के लिए भी कई पुरस्कार मिले। सन 1964 में मैंने निर्माता बनकर अपनी फिल्म ‘चा चा चा’ बनाई। इसका निर्देशन भी किया और इसकी कहानी, पटकथा, संवाद भी मैंने ही लिखे। साथ ही इसमें हीरो भी मैं था। यह फिल्म अपने संगीत के कारण भी सुपर हिट रही।‘’
यहाँ यह भी दिलचस्प है कि इस फिल्म में चंद्र शेखर ने अपने साथ नायिका के रूप में अभिनेत्री हेलन को लिया। हेलन उस दौर की सर्वाधिक लोकप्रिय डांसर थीं। इसलिए हेलन को फिल्म की नायिका बनाकर चंद्र शेखर ने हेलन के करियर को नया मोड़ दे दिया। बाद में हेलन को डांसर के साथ अभिनेत्री के रूप में भी कई फिल्में मिलने लगीं।
‘चा चा चा’ फिल्म को इसलिए भी याद किया जाता है कि सुप्रसिद्द कवि नीरज की एक गीतकार के रूप में यह पहली फिल्म थी। फिल्म के नीरज के लिखे गीत ‘सुबह न आई, शाम न आई’ को रफी ने गाया था। इसके अलावा ‘चा चा चा’ का एक गीत ‘एक चमेली के मंडवे तले’ तो इतना हिट हुआ कि आज भी यह गीत भुलाया नहीं जा सका है।
‘चा चा चा’ फिल्म अपने समय से आगे की फिल्म थी। इसमें फिल्म का नायक पूरन नेत्रहीन होने के साथ हरिजन था। नायिका लाली उसे मुंबई ले जाकर उसकी आँखों की रोशनी तो दिला देती है। लेकिन उसके पिता उसकी शादी पूरन से करने से इसलिए इंकार कर देते हैं। क्योंकि वह हरिजन है। उस दौर में ऐसी फिल्म बनाने का साहस बहुत कम लोग कर पाते थे। दूसरा फिल्म में चा चा चा जैसे डांस और इसकी प्रतियोगिता डालकर फिल्म को आधुनिक रंग दिया गया था। जब ‘चा चा चा’ फिल्म आई तब रंगीन फिल्मों का युग शुरू हो गया था। लेकिन रंगीन फिल्मों के युग में यह ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म भी खूब चली। इस फिल्म के बाद चंद्र शेखर ने 1966 में एक और फिल्म ‘स्ट्रीट सिंगर’ भी बनाई। यह फिल्म भी सफल हुई।
पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका में भी हुए लोकप्रिय
1970 के दौर में चंद्र शेखर ने चरित्र भूमिकाओं को अपनाकर भी काफी लोकप्रियता पाई। कई फिल्मों में तो वह पुलिस इंस्पेक्टर में रूप में भी अच्छे खासे लोकप्रिय हुए। चरित्र भूमिकाओं में चंद्र शेखर की यादगार फिल्मों की बात करें तो उनमें कटी पतंग, कन्यादान, रंगा खुश, संन्यासी, अनपढ़, धर्मा, द बर्निंग ट्रेन, घर वाली बाहर वाली, साजन बिना सुहागन, महबूबा, कर्मयोगी, निकाह और हुकूमत तो हैं ही। साथ ही अमिताभ बच्चन के साथ कुली, गंगा जमुना सरस्वती, नमक हलाल और शराबी में भी चंद्र शेखर की भूमिकाएँ बहुत पसंद की गईं। चंद्र शेखर जी की अंतिम फिल्म ‘तकदीर का बादशाह’ (2002) थी। वह बताते थे कि उन्होंने 250 से अधिक फिल्मों में काम किया है।
देश और समाज सेवा में भी रहे सक्रिय
चंद्र शेखर ने जहां अपनी किशोरावस्था में भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया और बाद में भी देश और समाज के लिए कई उल्लेखनीय कार्य किए। फिल्म उद्योग के लिए तो चंद्र शेखर हर वक्त अपनी सेवाएँ देने के लिए तत्पर रहते थे। फिल्मों में काम करने वाले कलाकारों और तकनीकी व्यक्तियों के कल्याण के लिए चंद्र शेखर ने ‘सिंटा’ नाम की संस्था बनाने में अहम भूमिका निभाई। जिससे बुरे वक्त में कलाकारों को मदद मिल सके, उनका शोषण न हो। साथ ही पुराने से पुराने कलाकारों के साथ नए कलाकारों को भी इसी मंच से सम्मानित करने की पहल भी चंद्र शेखर जी ने की। फिल्म उद्योग के लिए चंद्र शेखर जिस निस्वार्थ भावना से कार्य करते थे वैसी मिसाल आज बहुत कम मिलती हैं। तभी सभी कहते हैं-चंद्र शेखर साहब की बात ही कुछ और थी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक हैं)
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