डॉ अजय खेमरिया
खुद को निष्पक्ष औऱ अंतरराष्ट्रीय स्तर का दावा करने वाले कथित पत्रकारों की पत्रकारिता अभी भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रतीक मानी जाती है। ऐसे पत्रकारों का पूरा गिरोह देश में बेख़ौफ़ होकर सक्रिय है, जिसका घोषित एजेंडा है-हर कीमत पर मोदी,भाजपा औऱ हिन्दुत्व को बदनाम करना
उत्तर प्रदेश में चुनाव से पहले दंगा भड़काने में पूरी सेकुलर ब्रिगेड काम पर लग गई है।गाजियाबाद के निकट लोनी में एक मामूली झगड़े को सांप्रदायिक रंग देने के आरोप में ट्विटर के अलावा दो कांग्रेस नेताओं एवं तीन पत्रकारों पर आपराधिक मामला दर्ज किया गया है। नफरत और साम्प्रदायिक एजेंडे पर खड़ा एक कथित बौद्धिक तबका लंबे समय से देश का वातावरण खराब करने में जुटा हुआ है, लेकिन उलटबांसी यह है कि आरोप मोदी सरकार पर लगाए जाते है कि देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, पत्रकारिता और अल्पसंख्यकों (सुन्नी मुसलमानों केवल) की सुरक्षा खतरे में है। ताजा लोनी विवाद में यह सुपारीबाज बुद्धिजीवी गिरोह फिर से बेनकाब हो गया है। किसी जादुई ताबीज को लेकर आपसी विवाद को लिंचिंग जैसे मामले से जोड़ा गया और सुनियोजित ढंग से उसमें जयश्रीराम का ऐंगल भी लगाकर साम्प्रदायिक रंग दे दिया गया। एक ऐसा वीडियो जिसमें कोई आवाज ही नहीं है, ट्विटर पर यह प्रचारित कर दिया जाता है कि वीडियो में जयश्रीराम न बोलने पर एक मुस्लिम बुजुर्ग की पिटाई की जा रही है। उसकी दाड़ी काटी जा रही है। इससे पहले कि इस वीडियो और ट्विटर के जरिये यूपी में दंगे की नियोजित पटकथा जीवंत होती, गाजियाबाद पुलिस ने मामले की सचाई सामने ला दी। यहां सवाल घटना की सचाई सामने आने से बड़ी है, क्योंकि इस घटना ने जिन चेहरों को बेनकाब किया है वे 2014 से लगातार देश में एक प्रायोजित एजेंडा चला रहे हैं। इस एजेंडे का एकमात्र सूत्र है मोदी, भाजपा और हिंदुत्व को नफरत की हद तक बदनाम करने के लिए अपनी पूरी मक्कारी झोंक देना। इसके लिए देश के अंदर और बाहर मौजूद भारत विरोधी तत्वों से हाथ मिलाने में भी यह वर्ग संकोच नहीं करता है। कहने को इस मामले में आरोपित तीन कथित पत्रकार हैं-मोहम्मद ज़ुबैर, राणा अयूब एवं सबा नकबी।
इन तीनों कथित पत्रकारों को आप अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर टीवी से लेकर सोशल मीडिया पर सक्रिय देखते हैं। तथ्य यह है कि इन तीनों का एकमात्र एजेंडा है मोदी सरकार के बहाने हिन्दुत्व को बदनाम करना। इनके अलावा आरफा खानम, प्रतीक सिन्हा, सिद्धार्थ, राजदीप सरदेसाई, अभिसार शर्मा, पुण्यप्रसून वाजपेयी, अजित अंजुम, आशुतोष के अलावा आल्ट न्यूज, द वायर, जनचौक, क्विंट, कारवां, लल्लन टॉप जैसे प्रोपेगंडा वेबसाइटस पत्रकारिता के नाम पर लगातार देश में साम्प्रदायिकता को बढ़ाने वाले दुष्प्रचार में लगी हैं। कांग्रेस एवं मोदी विरोधी राजनीतिक दल इस प्रोपेगंडा गिरोह को पीछे से बैकअप उपलब्ध कराते हैं। जैसा कि लोनी घटना में हुआ। इधर क्विंट, वायर, आल्ट जैसी वेबसाइट से यह फर्जी पटकथा जारी हुई तत्काल राहुल गांधी ने इसे लपकते हुए रामभक्तों को निशाने पर ले लिया। कुछ ऐसा ही एजेंडाधारी स्वरा भास्कर ने करने में देर नहीं की। नफरत की एम्बेसडर बनीं कथित पत्रकार आरफा खान एवं राणा अयूब के कान अतीन्द्रिय श्रेणी के ही होने चाहिये क्योंकि उन्होंने इस म्यूट वीडियो में यह सुन लिया कि बुजुर्ग को जबरन जयश्रीराम कहलवाया जा रहा है।
वैसे राणा अयूब सार्वजनिक तौर पर मोदी—अमित शाह के विरुद्ध झूठ का प्रोपेगंडा चलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में भी बेपर्दा हो चुकी हैं। "गुजरात फाइल्स"-एनाटॉमी ऑफ ए कवरअप' कूटरचना में इन्ही राणा अयूब ने हरेन पांड्या की हत्या की मनगढ़ंत कहानियां गढ़ी औऱ फिर एक जेबी एनजीओ से सुप्रीम कोर्ट में नए सिरे से जांच के लिए जनहित याचिका दायर कराई। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात फाइल्स को फर्जी, मनगढ़ंत, काल्पनिक बताकर खारिज कर दिया। दिल्ली दंगों के दौरान दो साल पुराना कोई वीडियो ट्वीट कर नफरत फैलाने के मामले में भी इन मोहतरमा का दामन दागदार रहा है। खुद को निष्पक्ष औऱ अंतरराष्ट्रीय स्तर का दावा करने वाले इन कथित पत्रकारों की पत्रकारिता अभी भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रतीक मानी जाती है। ऐसे पत्रकारों का पूरा गिरोह देश में बेख़ौफ़ होकर सक्रिय है, जिसका घोषित एजेंडा है-हर कीमत पर मोदी,भाजपा औऱ हिन्दुत्व को बदनाम करना।
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