पाकिस्तान में हिन्दुओं और ईसाइयों की नाबालिग बेटियों को अगवा करके, उन्हें मुसलमान बनाकर शादीशुदा अधेड़ मुस्लिमों का उनसे निकाह करना जारी है। वहां की अदालतें ही इसमें कथित 'मदद' कर रही हैं, नाबालिग के 'बयान' पर फैसले सुना रही हैं
कितना हास्यास्पद है कि पाकिस्तान की अदालतें एक नाबालिक के 'बयान' को सबूत मानकर किसी मामले का निपटारा कर लेती हैं! और मामला भी एक ईसाई नाबालिग लड़की से चार बच्चों के अब्बू द्वारा कन्वर्जन करके निकाह करने का!
गुजरांवाला के आरिफ टाउन में ईसाई समुदाय का शाहिद गिल दर्जी की दुकान चलाता है। उसके पड़ोस में एक मुस्लिम की दुकान है, साज-सिंगार के सामान की। शाहिद की 13 साल की लड़की को अपने पिता की दुकान पर आते-जाते देखा करता होगा उसका मुस्लिम पड़ोसी दुकानदार। आखिर एक दिन उस मुस्लिम पड़ोसी ने शाहिद से कहा कि, वह अपनी लड़की को उसकी दुकान पर काम में लगा दे, सामान बेचने में मदद करेगी। पिता शाहिद ने इनकार कर दिया। लेकिन पड़ोसी मुस्लिम दुकानदार आएदिन उस पर लड़की को उसकी दुकान पर काम करने को कहने का दबाव बनाने लगा। आखिर एक दिन, गरीब-गुरबे शाहिद ने उसकी बात मान ली, अपनी बेटी को उसकी दुकान पर काम करने की इजाजत दे दी।
शाहिद की 13 साल की बेटी को अपने पिता की दुकान पर आते—जाते देखा करता होगा उसका मुस्लिम पड़ोसी दुकानदार। आखिर एक दिन उसने शाहिद से कहा कि वह अपनी लड़की को उसकी दुकान पर लगा दे, सामान बेचने में मदद करेगी। पिता शाहिद ने इनकार कर दिया। लेकिन आखिर एक दिन, गरीब-गुरबे शाहिद ने उसकी बात मान ली, बेटी को उसकी दुकान पर काम करने की इजाजत दे दी।
फिर हुआ यूं कि, पिछली 20 मई को शाहिद की लड़की देर शाम तक घर नहीं लौटी। चिंता होनी ही थी। अड़ोस-पड़ोस में पूछताछ की, तो पता चला उन्होंने लड़की को उस मुस्लिम दुकानदार और कुछ आदमी-औरतों के साथ एक टेम्पो में बैठकर कहीं जाते देखा था। शाहिद को तो अब काटो तो खून नहीं। क्या करे, क्या न करे।
29 मई को थक-हारकर उसने फिरोजवाला पुलिसथाने में अपनी 13 साल की बेटी की गुमशुदगी की रपट लिखवाई। पड़ोसी मुस्लिम दुकानदार और 7 अन्य के खिलाफ। जांच करने वाले एसआई लियाकत ने डॉन अखबार को बताया कि दो को हिरासत में तो लिया गया है, लेकिन इस बीच लड़की अदालत में पेश हुई थी जहां आपराधिक दंड संहिता की धारा 164 के तहत उसका बयान दर्ज हुआ है। लियाकत ने बताया, 'लड़की ने अदालत में कहा है कि 'वह अपनी मर्जी से घर छोड़कर गई थी, इस्लाम अपनाने और मुस्लिम पड़ोसी से अनुबंध पर निकाह करने के लिए'। अदालत ने उसकी बात सुनकर, उसे उसके 'शौहर' के साथ जाने को कहकर, पुलिस को मामला बंद करने का फरमान दिया, लिहाजा मामला वहीं बंद कर दिया गया।
यह जानकर शाहिद हक्का-बक्का रह गया। अदालत कैसे साढ़े 13 साल की बच्ची के 'बयान' को दर्ज करके फैसला सुना सकती है! मर्जी से कन्वर्ट होकर निकाह करने का उसका बयान कानूनन दर्ज ही नहीं हो सकता। कानूनन तो लड़के की 18 साल और लड़की की 16 साल से कम उम्र में शादी हो ही नहीं सकती।
शाहिद गिल ने लड़की का जन्म प्रमाणपत्र दिखाया कि वह 17 अक्तूबर 2007 को पैदा हुई है। लेकिन अदालत ने उसकी एक न सुनी। वह गया था अदालत तमाम कागजात लेकर और दुहाई दी थी कि बच्ची को छुड़वाएं, लेकिन अदालत ने सब किनारे रख कर टका सा जवाब दे दिया कि 'हम तो उस लड़की के कहे पर यकीन करेंगे'।
शाहिद को समझ नहीं आया कि करे तो क्या करे! उसने बताया कि उसका पड़ोसी मुस्लिम दुकानदार तो पहले से शादीशुदा है और उसके तीन बेटियां और एक बेटा है। अपनी शिकायत में उसने लिखा था कि उसकी बेटी नाबालिग है और उसे जबरन कन्वर्ट करके उसका निकाह किया गया है, शायद उसे डराया-धमकाया गया है।
सब इंस्पेक्टर लियाकत ने बताया, 'लड़की ने अदालत में कहा है कि 'वह अपनी मर्जी से घर छोड़कर गई थी, इस्लाम अपनाने और मुस्लिम पड़ोसी से अनुबंध पर निकाह करने के लिए'। अदालत ने उसकी बात सुनकर, उसे उसके 'शौहर' के साथ जाने को कहकर, पुलिस को मामला बंद करने का फरमान दिया, लिहाजा मामला वहीं बंद कर दिया गया।
वह सरकारी अफसरों के पास गया कि सरकारी कागजातों से लड़की की जन्मतिथि की पुष्टि करके उसे न्याय दिलाएं। गिल ने पुलिस में इस मामले की आगे तहकीकात करने की एक और अर्जी दी है।
कन्वर्जन और जबरन निकाह पर दिसम्बर 2020 में छपी एक रिपोर्ट पर टिप्पणी करते हुए, विदेश विभाग के प्रवक्ता जाहिद हफीज चौधरी ने तब कहा था कि जबरन कन्वर्जन के आरोपों की तहकीकात करने से पता चला है कि ये आरोप बेबुनियाद, फर्जी और दुनिया में पाकिस्तान का नाम खराब करने के मकसद से लगाए जाते हैं।
चौधरी सरकारी अफसर है, उसे शायद जमीनी हकीकत नहीं मालूम। उसे नहीं मालूम कि शाहिद के दिल पर क्या गुजर रही होगी! अपनी 13 साल की बच्ची को मजहबी तत्वों से आजाद कराने को दर-दर भटक रहा है वह। न्याय मिलेगा क्या उसे?
इंटो
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फोटो केप्शन
1 प्रतीकात्मक चित्र
2. पाकिस्तान में हिन्दू संस्थाएं अपने हक और नाबालिग बेटियों के जबरन कन्वर्जन के खिलाफ लगातार आवाज उठाते हैं जो बहरी हुकूमत को सुनाई नहीं देती (फाइल चित्र)
3. नवम्बर 2020 में 13 साल की ईसाई लड़की आरजू रजा उर्फ आरजू फातिमा से कैमरे पर यह बयान दिलवाया गया था कि 'उसने 44 साल के अली अजहर से निकाह के लिए इस्लाम को अपना लिया है'। अली ने अदालत में फर्जी कागज दिखाकर उसे 18 साल का बताया था और अदालत ने उसे सच मान लिया था (फाइल चित्र)
दास्तान-ए-कन्वर्जन
अल्पसंख्यक अधिकारों के संगठन, सेंटर फॉर सोशल जस्टिस ने पिछले साल कहा था कि 2013 से 2020 के बीच, मुल्क में मजहबी अल्पसंख्यकों की नाबालिग लड़कियों को जबरन कन्वर्ट करने के 160 से ज्यादा मामले देखने में आए। इस संगठन का डाटा हैरान करने वाले आंकड़े दिखाता है। पिछले सात साल में जबरन कन्वर्जन के कुल मामलों में से 52 फीसदी पंजाब में, 44 फीसदी सिंध में, संघ शासित क्षेत्र और खैबर पख्तूनख्वा दोनों में 1.23 फीसदी जबकि बलूचिस्तान में ऐसे 0.62 फीसदी मामले दर्ज किए गए हैं। इसके बरअक्स, एसोसिएटिड प्रेस का दिसम्बर 2020 में आया आंकड़ा और हैरान करने वाला है। उसके हिसाब से, पाकिस्तान में हर साल मजहबी अल्पसंख्यकों की 1,000 से ज्यादा नाबालिग लड़कियां जबरिया कन्वर्जन की शिकार होती हैं। इसमें से ज्यादातर तो उनकी मर्जी के बिना उनसे निकाह करने के लिए किए जाते हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं के हवाले से बताया गया है कि, कोरोना काल में, लॉकडाउन की वजह से बच्चियां स्कूल नहीं जा पा रही हैं और ज्यादातर घर में ही रह रही हैं, ऐसे में वे मोहल्ले में खूब दिखाई देती हैं। बस, गिद्ध दृष्टि गढ़ाए बैठे रहने वाले उनको अगवा करके कन्वर्ट करते हैं और निकाह पढ़ा लेते हैं, भले ही वे पहले से चार—छह बच्चों के अब्बू हों।
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