अरविंद केजरीवाल सरकार द्वारा लो फ्लोर बसों की खरीद में हेरा—फेरी का मामला विवादों में है। मामले की गंभीरता को देखते हुए उपराज्यपाल ने जांच के आदेश देते हुए तीन सदस्यीय समिति गठित कर दी है
अरविंद केजरीवाल सरकार ने इसी साल जनवरी में दो कंपनियों को एक हजार लो फ्लोर बसें खरीदने के लिए ऑर्डर दिया था। अब तक कंपनियों ने बसे उपलब्ध नहीं कराई हैं, लेकिन बस खरीद पर फेरा-फेरी के आरोप लग रहे हैं। मामले की गंभीरता को देखते हुए उपराज्यपाल ने जांच के आदेश देते हुए तीन सदस्यीय समिति गठित कर दी है।
दरअसल बस खरीद में फेरा-फेरी का संदेह जब और पुख्ता तब हुआ जब मामले की जांच के लिए दिल्ली पुलिस की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) ने केजरीवाल सरकार से अनुमति मांगी थी। लेकिन दिल्ली सरकार की ओर से कोई अनुमति नहीं दी गई। यदि बस खरीद में किसी प्रकार घोटाला नहीं है तो केजरीवाल सरकार जांच से क्यों भाग रही है ? उसे मंजूरी दे देनी चाहिए। बस खरीद मामले में आरोप है कि बस की कीमत से अधिक राशि अगले तीन सालों में इसके रख रखाव पर खर्च की जानी है। जबकि नियम से बसों की देख-रेख की अगले तीन साल की सारी जिम्मेदारी बस बेचने वाली कंपनियों को उठानी चाहिए थी।
केजरीवाल की सरकार इस सारे मामले को ठंडे बस्ते में डालकर चुप-चाप बसों की खरीद कर लेना चाहती थी, लेकिन भाजपा विधायक विजेंद्र गुप्ता ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया। गुप्ता ने उपराज्यपाल अनिल बैजल को पत्र लिखकर जांच के लिए आग्रह किया था। पत्र में गुप्ता ने दावा किया था कि बसों की खरीद को लेकर वित्तीय गड़बड़ी का पता चला है। यह गड़बड़ी भी पत्र के अनुसार परिवहन विभाग की अंदरूनी जांच में ही सामने आई है। अब उपराज्यपाल जल्दी से एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) को जांच की अनुमति दे दें तो दिल्ली वाले भी बस घोटाले का सच जान पाएं। इस पूरे मामले की गंभीरता को देखते हुए उपराज्यपाल ने जांच के आदेश देते हुए तीन सदस्यीय समिति गठित कर दी है। समिति दो सप्ताह में रिपोर्ट देगी।
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