शांतनु गुप्ता
अखिलेश यादव ने आजमगढ़ से चुनाव लड़ा और 17वीं लोकसभा के लिए चुने गए। लेकिन निर्वाचित होने के बाद न तो उन्होंने आजमगढ़ का अधिक दौरा किया और न ही संसद में अपने निर्वाचन क्षेत्र के बारे में कोई सवाल उठाया। जब उत्तर प्रदेश के सभी 80 लोकसभा सांसदों के प्रदर्शन का विस्तृत डेटा का विश्लेषण किया तो पाया कि अखिलेश यादव यूपी के सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले सांसद हैं
2014 के आम चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हारने के बाद अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए कट्टर प्रतिद्वंद्वी मायावती के साथ गठबंधन किया। लेकिन वह अवसरवादी प्रयोग भी विफल रहा और सपा को यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से केवल 5 सीटें ही मिलीं। अखिलेश यादव ने खुद एक सुरक्षित सीट- आजमगढ़ से चुनाव लड़ा और 17वीं लोकसभा के लिए चुने गए। लेकिन निर्वाचित होने के बाद न तो उन्होंने आजमगढ़ का अधिक दौरा किया और न ही संसद में अपने निर्वाचन क्षेत्र के बारे में कोई सवाल उठाया। जब उत्तर प्रदेश के सभी 80 लोकसभा सांसदों के प्रदर्शन का विस्तृत डेटा का विश्लेषण किया तो पाया कि अखिलेश यादव यूपी के सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले सांसद हैं।
शोध का ढांचा
उत्तर प्रदेश के लोकसभा के सभी 80 सदस्यों के लिए चार मानकों पर विस्तृत डेटा विश्लेषण किया। (ए) उपस्थिति, (बी) उठाए गए प्रश्न, (सी) संसदीय बहस में भागीदारी और (डी) निजी सदस्य बिल प्रस्तुत करना। इस दौरान मैंने पीआरएस लेजिस्लेटिव के डेटाबेस से 1 जून, 2019 से 13 फरवरी, 2021 की अवधि में यूपी के सांसदों के लोकसभा डेटा को लिया है और इसका विस्तृत विश्लेषण किया है।
इस विश्लेषण में उत्तर प्रदेश के 8 मंत्रियों को अध्ययन से बाहर रखा है, क्योंकि मंत्री बहस में सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसलिए पीआरएस बहस के हिस्से के रूप में उनकी भागीदारी की रिपोर्ट नहीं करता है। मंत्री भी उपस्थिति रजिस्टर पर हस्ताक्षर नहीं करते हैं। प्रश्न पूछते हैं, या निजी सदस्य बिल पेश नहीं करते हैं।
मैंने 2 सांसदों-समाजवादी पार्टी के आजम खान और बहुजन समाज पार्टी के अतुल कुमार सिंह को विश्लेषण से बाहर रखा है, क्योंकि वे दोनों इस अवधि के दौरान काफी समय से जेल में रहे।
उपस्थिति
राष्ट्रीय और राज्य औसत की तुलना में उत्तर प्रदेश के सांसदों की उपस्थिति
विभिन्न डेटा रेंज में यूपी के सांसदों की पार्टीवार उपस्थिति
हर सांसद से कम से कम इतनी अपेक्षा की जाती है कि वह संसद के सत्रों में उपस्थित रहे। उत्तर प्रदेश के सांसदों का इस मामले में अच्छा रिकॉर्ड है। यूपी के सांसदों की औसत उपस्थिति 88 फीसदी है, जो इसी अवधि में राष्ट्रीय औसत 82 फीसदी से 6 फीसदी अधिक है।
लेकिन 36 फीसदी उपस्थिति के साथ समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की यूपी के सांसदों में सबसे कम उपस्थिति है (देखें चार्ट-1)। इस अवधि में 44 फीसदी उपस्थिति के साथ सोनिया गांधी का यूपी के सांसदों के बीच दूसरा सबसे खराब उपस्थिति रिकॉर्ड है। यह काबिले तारीफ है कि यूपी से भाजपा के 4 सांसद भोलानाथ, जगदंबिका पाल, प्रदीप कुमार और राजवीर दिलेर की इस दौरान शत-प्रतिशत उपस्थिति रही। यह भी उल्लेखनीय है कि छह बार के दो सांसदों- पंकज चौधरी और बृज भूषण शरण सिंह, जो दोनों ही भाजपा से हैं, क्रमश: 95 फीसदी और 98 फीसदी उपस्थिति है।
90-100 फीसदी रेंज में 80 फीसदी भाजपा सांसदों की उपस्थिति है। बसपा के 60 फीसदी सांसदों की उपस्थिति 90-100 फीसदी रेंज में है, लेकिन केवल 20 फीसदी एसपी सांसदों की उपस्थिति 90-100 फीसदी रेंज में है
संसद में पूछे गए प्रश्न
राष्ट्रीय और राज्य औसत की तुलना में उत्तर प्रदेश के सांसदों द्वारा पूछे गए प्रश्न
संसद सदस्यों के पास 'संसदीय प्रश्नों' के रूप में एक विशेष हथियार होता है। इन प्रश्नों के माध्यम से वे अपने निर्वाचन क्षेत्र, अपने इलाके, राज्य या किसी अन्य राष्ट्रीय समस्या की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित कर सकते हैं। यूपी के सांसदों ने औसतन 66 प्रश्नों के राष्ट्रीय औसत की तुलना में 44 प्रश्न पूछे। आइए पता करें कि यूपी के औसत को कौन नीचे खींच रहा है। अखिलेश यादव और सोनिया गांधी ने इस दौरान सरकार से शून्य सवाल पूछे।
भाजपा के 19 सांसदों और बसपा के 1 सांसद ने इस अवधि में राष्ट्रीय औसत 66 प्रश्नों से अधिक प्रश्न पूछे। सपा और कांग्रेस सांसदों में से किसी ने भी राष्ट्रीय औसत से ज्यादा सवाल नहीं पूछे। भाजपा के 23 और बसपा के 4 सांसदों ने राज्य के 44 सवालों के औसत से ज्यादा सवाल पूछे। संसद में अपने अध्यक्ष अखिलेश यादव के निराशाजनक प्रदर्शन से सीखते हुए, समाजवादी पार्टी के किसी भी सांसद ने राज्य के औसत से भी ज्यादा सवाल नहीं पूछे।
यूपी के 11 सांसदों ने इस दौरान 100 से ज्यादा सवाल पूछे, जो राष्ट्रीय औसत से काफी ज्यादा थे-जगदंबिका पाल, विजय कुमार दुबे, रवींद्र श्याम नारायण, कौशल किशोर, हरीश चंद्र उर्फ हरीश द्विवेदी, अशोक कुमार रावत, रवींद्र कुशवाहा, अजय मिश्रा टेनी, विनोद कुमार सोनकर, पुष्पेंद्र सिंह चंदेल और भोला सिंह। ये सभी 11 सांसद भाजपा के हैं। 87 प्रश्नों के साथ, बसपा के रितेश पांडे, गैर-भाजपा सांसदों में सरकार से सवाल पूछने में सबसे आगे रहे।
बहसों में भाग लिया
राष्ट्रीय और राज्य औसत की तुलना में उत्तर प्रदेश के सांसदों द्वारा वाद-विवाद की भागीदारी
उत्तर प्रदेश के लोग सकारात्मक तर्क करने के लिए जाने जाते हैं। स्वस्थ वाद-विवाद एवं विचार मंथन किसी भी समस्या के समाधान की ओर ले जाता है। संसद देश में उच्चतम स्तर पर स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और वैश्विक मुद्दों पर बहस करने का सबसे बड़ा मंच है। उत्तर प्रदेश के सांसदों ने औसतन 25.4 बहसों में भाग लिया, जो 21.2 बहसों में भागीदारी के राष्ट्रीय औसत से अधिक था। लेकिन इसी अवधि में अखिलेश यादव ने केवल 4 बहसों में भाग लिया, सोनिया गांधी ने केवल बहस में भाग लिया। उल्लेखनीय है कि भाजपा के पुष्पेंद्र सिंह चंदेल ने 510 बहसों में और बसपा के मलूक नागर ने 139 बहसों में भाग लिया, जो राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक है।
उत्तर प्रदेश के सांसदों द्वारा वाद-विवाद की भागीदारी
निजी सदस्य बिल संसद एक महत्वपूर्ण संसदीय साधन है, जिसके द्वारा कोई भी गैर-मंत्री भी संसद में बिल पेश कर सकता है और सदन उस पर बहस भी करता है। इस अवधि में उत्तर प्रदेश के केवल 9 सांसदों ने संसद में निजी सदस्य विधेयक पेश किए। ये सभी 9 सांसद भाजपा के हैं। यूपी के सांसदों ने औसतन 0.3 निजी सदस्य बिल पेश किए जो राष्ट्रीय औसत के बराबर है। लेकिन इस अवधि में अखिलेश यादव और सोनिया गांधी ने संसद में कोई निजी सदस्य बिल पेश नहीं किया। उल्लेखनीय है कि भाजपा के पुष्पेंद्र सिंह चंदेल, अजय मिश्रा टेनी और रवींद्र श्यामनारायण ने इस अवधि में चार-चार निजी सदस्य विधेयक पेश किए, जो राष्ट्रीय औसत से काफी ऊपर हैं।
सांसदों द्वारा प्रस्तुत निजी सदस्य विधेयक
लोग संसद में अपनी समस्याओं और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए राजनीतिक नेताओं को वोट देते हैं। उपस्थिति, पूछे गए प्रश्न, वाद-विवाद और गैर-सरकारी विधेयक के सभी चार मामलों में, अखिलेश यादव का संसद में प्रदर्शन बहुत निराशाजनक है। यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के विपरीत, यूपी के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सांसद रहते हुए काफी सक्रिय थे। उदाहरण के लिए, 2014-2017 (16वीं लोकसभा) के दौरान योगी आदित्यनाथ ने 50.6 के राष्ट्रीय औसत की तुलना में 57 बहसों में भाग लिया। योगी आदित्यनाथ ने 199 के राष्ट्रीय औसत की तुलना में 306 प्रश्न पूछे और उस दौरान 1.5 के राष्ट्रीय औसत की तुलना में 3 निजी सदस्य बिल पेश किए।
राष्ट्रीय और राज्य औसत की तुलना में उत्तर प्रदेश के सांसदों द्वारा प्रस्तुत निजी सदस्य विधेयक
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अखिलेश यादव न तो संसद में सक्रिय हैं और न ही वे मैदान पर ज्यादा नजर आते हैं। इसके उलट योगी आदित्यनाथ अपनी अत्यंत कर्मठ जीवन शैली के लिए जाने जाते हैं। उदाहरण के लिए— कोविड की दूसरी लहर के दौरान योगी आदित्यनाथ कोराना से ठीक होते ही, ग्राउंड जीरो पर पहुंच गए। उन्होंने दो हफ्ते में कई जिलों की निगरानी की। अपने दौरे के दौरान योगी अखिलेश यादव के गृह नगर सैफई (इटावा) और लोकसभा क्षेत्र आजमगढ़ भी गए। इसी दौरान अखिलेश ने लखनऊ में अपने महलनुमा घर में खुद को बंद कर लिया और सिर्फ ट्वीट करने को ही अपना कर्त्तव्य माना। सुना जाता है कि मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव लग्जरी कारों, महंगी साइकिलों और विदेशी छुट्टियों के काफी शौकीन हैं। मुझे लगता है कि यही सब शौक उन्हें संसद और ग्राउंड जीरो से गायब रखते हैं। अखिलेश यादव की इस उदासीनता से ये साफ़ है कि- जातीय समीकरणों और तुष्टीकरण की राजनीति के आधार पर चुनाव जीतने वाले राजनेताओं को जमीन पर लोगों के साथ समय बिताने या संसद में ईमानदारी से अपने लोगों की बात रखने की कोई लालसा नहीं होती।
(लेखक जाने-माने नीति विश्लेषक हैं)
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