अरुण कुमार सिंह
भारत सरकार यूरिया, डीएपी, पोटाश आदि की कीमत को कम रखने के लिए हर वर्ष हजारों करोड़ रु. सब्सिडी पर खर्च करती हैै। अभी 15 दिन पहले ही एक बोरी डीएपी में 1,200 रु. की छूट बढ़ाई गर्ह है, जो पहले 500 रु. थी। यह सब किसानों की लागत को कम करने के लिए किया जाता है, लेकिन तस्कर रोजाना बड़ी मात्रा में खाद नेपाल भेजकर मालोमाल हो रहे हैं और भारत के किसानों को समय पर खाद नहीं मिल रही है
अपने किसानों की आय बढ़ाने के भारत सरकार यूरिया, पोटाश, डीएपी आदि में छूट देती है। यानी इन खादों की जो मूल कीमत होती है, उससे बहुत ही कम दाम पर किसानों को मिलती है। इससे किसानों की कृषि लागत कम होती है और उनकी आय बढ़ती है। किसानों को छूट भारत के करदाताओं के पैसे से मिलती है। इसलिए इसका लाभ भारत के ही किसानों को मिलना चाहिए, लेकिन यह लाभ नेपाल के शराब माफिया उठाने लगे हैं। दरअसल, खाद तस्कर धड़ल्ले से यूरिया नेपाल भेज रहे हैं और प्रतिदिन लाखों रु. की कमाई कर रहे हैं। इन दिनों बिहार में खाद तस्करों की मौज हो रही है। ये तस्कर बिहार के सीमावर्ती क्षेत्रों से डीएपी, यूरिया, पोटाश खरीदकर नेपाल में बेच रहे हैं।
पूर्णिया जिले के जलालगढ़ प्रखंड के महतो नगर चक निवासी किसान लंबोदर महतो ने बताया कि तस्कर फारबिसगंज, नरपतगंज जैसे इलाकों से यूरिया की एक एक बोरी 310—320 रु. में खरीदकर नेपाल में 600 रु. से भी अधिक कीमत पर बेच रहे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि इस समय नेपाल और भारत की सीमा बंद होने के कारण कोई गाड़ी आ—जा नहीं रही है। इसलिए खाद तस्कर साइकिल से ही चोरी—छुपे दिन में कई बार नेपाल और बिहार आते—जाते हैं और खाद की तस्करी करते हैं। नरपतगंज के एक किसान शंभू यादव ने बताया कि इस समय नेपाल में यूरिया की सबसे अधिक मांग है। इसके दो कारण हैै एक, वहां के व्यापारी यूरिया जमा कर रहे हैं, ताकि कुछ दिन बाद खेती—किसानी का काम शुरू होने पर उसे ज्यादा भाव में बेच सकें। दूसरा, नेपाल में देशी शराब बनाने में यूरिया का इस्तेमाल होता है।
यह पता चला है कि तस्करों ने कृषि विभाग से उर्वरक की दुकान का लाइसेंस ले लिया है। इन लोगों की दुकानें भारत—नेपाल की सीमा से लगभग एक किलोमीटर के अंदर ही होती हैं। इसलिए ये लोग बहुत ही आसानी से यूरिया नेपाल तक ले जाते हैं। नेपाल की सीमा से सटे बिहार के फारबिसगंज के एक किसान ने बताया कि खाद की बहुत सारी दुकानें ऐसी भी हैं, जिनके पास लाइसेंस नहीं है। ये लोग खाद की तस्करी के लिए ही दुकान चलाते हैं। नरपतगंज प्रखंड के पथरदेवा के समीप नों मेंस लैंड पर भी खाद की कई दुकानें हैं।
सूत्रों ने यह भी बताया कि अररिया, पूर्णिया, सुपौल और सहरसा जिले से यूरिया की कालाबाजारी सबसे अधिक होती है। सुपौल जिले के एक किसान दामोदरनाथ झा ने बताया कि खाद खरीदते समय किसानों से आधार कार्ड मांगा जाता है, लेकिन तस्करों को बिना किसी पहचानपत्र के खाद दे दी जाती है। बता दें कि इस समय बिहार में 50 किलो डीएपी 1300 रु. में, 45 किलो यूरिया 320 रु. और 50 किलो पोटाश 820 रु. में मिलती है। ये चीजें नेपाल में भारत से दुगुना से अधिक दाम पर बिक रही हैं। नेपाल के सुनसरी जिले के देवानगंज, कप्तानगंज, इनरुआ, भुटहा, हरीनगरा आदि जगहों पर भारतीय खाद धड़ल्ले से मिल रही है।
बिहार के कई संगठनों ने सरकार से मांग की है कि खाद तसकरी पर जल्दी से जल्दी रोक लगाई जाए, नहीं तो कुछ दिनों में बिहार के किसानों को आसानी से खाद नहीं मिल पाएगी।
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