मनोज ठाकुर
पंजाब में कोरोना मरीजों को दवाएं व अन्य वस्तुएं देने के नाम पर ‘फतेह किट’ तैयार की गई। इसके लिए निविदा निकाली गई, जिसमें इसकी कीमत 838 रुपये तय हुई। लेकिन निविदा को बार-बार बदला गया और हर बार किट की कीमत भी बदलती रही
पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार की एक और करतूत उजागर हुई है। इस बार ‘फतेह किट’ नाम से कोरोना संक्रमण के इलाज के लिए दवा खरीद में बड़ा घोटाला सामने आया है। आरोप है कि राज्य सरकार ने कोरोना मरीजों को ‘फतेह किट’ देने के नाम पर जो दवाएं खरीदीं, उसमें कई गड़बडि़यां हैं। इस घोटाले पर से परदा ही नहीं उठता, अगर आरटीआई नहीं लगाई जाती। कुछ दिन पहले यही पंजाब सरकार कोरोना वैक्सीन की कमी के बीच निजी अस्पतालों को वैक्सीन बेचकर मुनाफा कमा रही थी।
दरअसल, सूबे में कोरोना संक्रमण को देखते हुए 20 अलग-अलग दवाओं व सामानों की एक किट तैयार की गई। इसे पंजाब सरकार ने नाम दिया ‘फतेह किट’, जो जरूरतमंद लोगों दिया जाना था। इस किट में डॉक्सीसाइक्लिन, तुलसी की पत्तियां, लिवोसिट्रीजिन, पल्स ऑक्सीमीटर, स्टीमर, हैंड सैनिटाइजर, तीन गुब्बारे, डिजिटल थर्मामीटर, आयुष क्वाथ काढ़ा, गिलोय की गोलियां, बीटाडीन गरारे करने का द्रव और फेस मास्क आदि देने का दावा किया जाता है। हालांकि बहुत से लोगों शिकायत है कि उनकी किट में डॉक्सीसाइक्लिन, तुलसी पत्ती और लिवासिट्रेजिन थी ही नहीं। इस किट के लिए राज्य सरकार ने निविदा निकाली थी।
5 बार बदली गई निविदा
आरटीआई कार्यकर्ता व अधिवक्ता विशाल अग्रवाल ने बताया कि ‘फतेह किट’ के लिए निविदा को 50 दिन में पांच बार बदला गया। किसे फायदा पहुंचाने के लिए ये बदलाव किए गए? इसकी भी जांच होनी चाहिए। निविदा को इस तरह से बढ़ा कर क्या कैप्टन अमरिंदर सरकार लोगों की जान का सौदा कर रही थी? संकट काल में जब लोग मदद के लिए सरकार की ओर देख रहे थे, उस समय इस तरह का घपला सरकार की नियत पर सवाल उठाता है। जो किट महामारी से जूझ रहे लोगों को राहत पहुंचाने के लिए दी जानी थी, उसमें घोटाला किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाता सकता। यह बहुत बड़ा घोटाला है, जिसकी जांच होनी चाहिए। वहीं, जानकारों का कहना है कि निविदा में इतनी बार बदलाव निचले स्तर के कर्मचारी या अधिकारी नहीं कर सकते हैं। इसके लिए किसी न किसी स्तर पर सरकार से जुड़े लोग भी शामिल रहेंगे होंगे। तभी इतना बड़ा बदलाव किया गया। विशाल अग्रवाल ने बताया कि निविदा की आड़ में अपने चहेतों को फायदा पहुंचाने की पूरी कोशिश की गई है। अगर ऐसा नहीं है तो किस किट की कीमत 838 रुपये तय की गई थी, वह बाद में 1338 रुपये कैसे हो गई? यह जांच का विषय है। इस पर सरकार को जरूर जवाब देना चाहिए, क्योंकि यह किट गरीब आदमी की जान से जुड़ी हुई थी।
निविदा के साथ कीमत भी बदलती रही
‘फतेह किट’ के लिए पहली निविदा 1 अप्रैल, 2021 को निकाली गई। इसके लिए संगम मेडिकल स्टोर ने 838 रुपये का रेट दिया, जिसे सरकार ने मंजूर कर लिया। 3 अप्रैल को जो दवा खरीदी गई, उसका रेट 100 रुपये बढ़ा कर अदा किया गया। यानी जो दवा 838 रुपये प्रति किट खरीदी जानी थी, वह 940 रुपये प्रति किट के हिसाब से खरीदी गई। इस बढ़ी हुई दर पर सरकार ने 16,668 ‘फतेह किट’ खरीदी। गड़बड़ी यहीं खत्म नहीं हुई। इसके 15 दिन बाद उसी किट के लिए दूसरी निविदा निकाली गई। 20 अप्रैल को निकाली गई इस निविदा में किट की कीमत 1226.40 रुपये रखी गई। इस दर पर सरकार ने 50 हजार किट खरीदी। इसके बाद 7 मई को फिर निविदा निकाली गई। इस बार किट की कीमत 1338 रुपये प्रति किट रखी गई। ठेका ग्रैंड्वे इनकॉरपोरेशन को दिया गया। इस कीमत पर सरकार ने एक लाख किट खरीदी।
इलाज नहीं, सिर्फ राजनीति कर रही सरकार
‘फतेह किट’ घोटाले पर सामाजिक कार्यकर्ता सतपाल सिंह शर्मा कहते हैं कि पंजाब में कोविड के नाम पर बस राजनीति हुई है। कैप्टन अमरिंदर सरकार को मरते लोगों की चिंता ही नहीं है। तभी तो पहले जो कोरोना वैक्सीन मरीजों को मुफ्त या कम दाम पर लगाई जानी थी, उसे मुनाफा कमाने के लिए निजी अस्पतालों को बेच दिया। निजी अस्पताल संचालकों ने लोगों को लूटने की तैयारी कर ली थी, लेकिन केंद्र सरकार के हस्तक्षेप के बाद यह लूट थम गई। अब ‘फतेह किट’ गड़बड़ी ने साबित कर दिया कि पंजाब में कोविड के नाम पर घोटाला हो रहा है। जिस समय लोग इलाज के अभाव में मर रहे थे, बेहतर सुविधाओं के लिए सरकार की ओर देख रहे थे, उस समय राज्य में संक्रमितों को राहत पहुंचाने के नाम पर ‘फतेह किट’ घोटाले की नींव रखी जा रही थी।
सतपाल शर्मा ने इस मुद्दे पर चिंता जताते हुए कहा कि अब इस मामले में स्वास्थ्य विभाग के किसी कनिष्ठ अधिकारी को बलि का बकरा बनाया जाएगा, जबकि असली अपराधी पर आंच भी नहीं आएगी। इस मामले की सीबीआई जांच होनी चाहिए। तभी सच सामने आएगा। ऐसा लग रहा है कि पंजाब में नशा माफिया, रेत माफिया के साथ अब दवा माफिया भी सक्रिय है।
राज्य के स्वास्थ्य मंत्री कन्नी काट गए
पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री बलबीर सिंह ने इस मामले में कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया। उन्होंने केवल इतना कहा कि मामला पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में है। सरकार वहीं अपना जवाब देगी। इस पर वे अभी कुछ नहीं बोल सकते हैं। दूसरी ओर, आरटीआई कार्यकर्ता विशाल अग्रवाल का कहना है कि उन्होंने इस घोटाले से जुड़े तमाम सबूत अदालत को सौंप दिए हैं। निविदा में गड़बड़ी को देख कर ही पता चल रहा है कि घपला कितने बड़े पैमाने पर हुआ है। उन्होंने कहा, ‘मेरी पूरी कोशिश है कि इस मामले को अंजाम तक पहुंचा सकूं ताकि सच सब के सामने आए। यह आम आदमी की जान के साथ खिलवाड़ है। कोविड से निपटने के लिए सरकार की मंशा और उसके प्रयास पर भी बड़ा सवाल है। इसलिए तमाम जोखिम को उठा कर भी मैं मामले को अदालत तक लेकर आया हूं।’ बता दें कि विशाल की याचिका पर 12 जुलाई को सुनवाई होगी।
कोरोना जैसी महामारी के बीच मुनाफाखोरी, घोटाला करने वाले मानवता के हितैषी नहीं हो सकते। संकट काल में उनका ऐसा व्यवहार गिद्ध की तरह है, जो हमेशा इस ताक में रहता है कि कोई मरे ताकि उसे खा सके। पंजाब में यही हो रहा है।
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