मनोज वर्मा
युवा नेता कांग्रेस क्यों छोड़ रहे हैं ? कांग्रेस पार्टी के भीतर और बाहर आज कल हर कोई यह सवाल पूछता नजर आ रहा है। राहुल गांधी के करीबी नेताओं में रहे जितिन प्रसाद ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया तो मौका देख राजस्थान में सचिन पायलट और उनके समर्थकों ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
पंजाब कांग्रेस में भी घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है। कांग्रेस में शीर्ष स्तर पर हालात यह हो गए हैं कि चाहे कांग्रेस के बुर्जुग नेता हो या युवा नेता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से कोई खुश नहीं है। कांग्रेस में राहुल गांधी के जो करीबी माने जाते थे वो एक—एक कर या तो पार्टी छोड़ रहे हैं या किनारे लगा दिए जा रहे हैं। तो क्या राहुल गांधी के करीबी नेताओं को कांग्रेस छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है ?
जितिन प्रसाद कोई पहले ऐसे नेता नहीं हैं, जिन्होंने कांग्रेस छोड़कर भाजपा ज्वाइन की हो। राहुल गांधी के करीबियों में से एक ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा की सदस्यता ली थी और इसके बाद मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिर गई और भाजपा की बन गई। सिंधिया चले गए और राहुल गांधी देखते रह गए। जब जितिन प्रसाद भाजपा में चले गए और उत्तर प्रदेश में सक्रिय प्रियंका गांधी देखती रह गई। तो कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी हारती बिखरती पार्टी को संभालने के लिए कभी राहुल गांधी को आगे करती हैं तो कभी प्रियंका गांधी को। लेकिन कांग्रेस में राज्यों में टकराव कम होने के बजाए बढ़ता चला रहा है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कहा कि कांग्रेस को संगठन के सभी स्तरों पर व्यापक बदलाव लाना चाहिए, जिससे यह नजर आए कि वह जड़ता की स्थिति में नहीं है। सिब्बल पिछले साल कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पार्टी में व्यापक बदलाव के लिए पत्र लिखने वाले जी-23 नेताओं में शामिल थे। उन्होंने उम्मीद जताई कि कोविड-19 महामारी के मद्देनजर हाल में टाले गए सांगठनिक चुनाव जल्द ही कराए जाएंगे।
ज्योतिरादित्य सिंधिया और अब जितिन प्रसाद जैसे युवा नेताओं के भाजपा में जाने पर पूर्व केंद्रीय मंत्री सिब्बल ने कहा, 'अनुभव व युवाओं के बीच संतुलन बनाने की तत्काल आवश्यकता है।' उन्होंने पूर्व में कहा था कि 'आया राम, गया राम' की राजनीति से अब यह 'प्रसाद की राजनीति' तक पहुंच गई है और पूछा कि क्या जितिन प्रसाद को भाजपा से प्रसाद मिलेगा। उन्होंने संकेत दिए कि नेता अपने राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए पार्टी छोड़कर जा रहे हैं।
अब तो पार्टी के युवा नेताओं में बढ़ते असंतोष को देखते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा,‘कुछ तो मजबूरियां रही होंगी वर्ना यूं ही कोई बेवफा नहीं होता। सिंधिया और प्रसाद का इतना बड़ा बदलाव सिर्फ अपने करियर ग्रोथ को लेकर नहीं है बल्कि अब कांग्रेस के युवा नेताओं को लगने लगा है कि पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के सामने उनके करियर में ग्रोथ संभव नहीं है।
नाम न छापने की शर्त पर कांग्रेस के एक नेता ने बताया, ‘पार्टी में कई युवा नेता हैं जिन्हें लगने लगा है कि उनकी पार्टी में राजनीतिक कोई ग्रोथ नहीं होने दी जा रही है। उनके करियर में एक तरह की शीशे की दीवार है जो उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ने नहीं दे रही है।' शायद यही वजह है कि देशभर में अच्छे युवा और वाइब्रेंट नेता होने के बाद भी कांग्रेस में बुजुर्ग नेताओं का बोलबाला है और युवा नेताओं में असंतोष तेजी से बढ़ रहा है। वहीं कुछ नेता खुलकर भारतीय जनता पार्टी के अनुच्छेद 370, जनसंख्या नियंत्रण सहित कई निर्णयों में पार्टी लाइन से इतर उनके साथ नजर आए, जिसमें मिलिंद देवड़ा जैसे कई नेता शामिल हैं।
कांग्रेस में सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद की तिकड़ी मशहूर थी, जिसमें दो भाजपा में जा चुके हैं। अब इस तिकड़ी में केवल सचिन पायलट बचे हैं। जितिन प्रसाद के भाजपा में शामिल होने के बाद सचिन पायलट हैश टैग ट्विटर पर ट्रेंड कर रहा है। यूजर्स सचिन पायलट के अगले कदम को लेकर कई तरह के कयास लगा रहे हैं। सचिन पायलट की नाराजगी और उनके मुद्दे अब तक अनसुलझे होने पर सियासी हलकों में जबरदस्त चर्चाएं हैंं। जितिन प्रसाद सचिन पायलट के दोस्त हैं, प्रसाद के भाजपा में शामिल होने पर सचिन पायलट ने दुख जताया है। करीब 11 महीने पहले सचिन पायलट ने जब बगावत की थी और उन्हें प्रदेशाध्यक्ष और डिप्टी सीएम पद से बर्खास्त किया था, उस वक्त जितिन प्रसाद ने भी इसी तरह प्रतिक्रिया दी थी। जितिन ने ट्वीट कर लिखा था- 'सचिन पायलट सिर्फ मेरे साथ काम करने वाले नहीं बल्कि मेरे दोस्त भी हैं। इस बात को कोई नकार नहीं सकता कि उन्होंने पूरे समर्पण के साथ पार्टी के लिए काम किया है। उम्मीद करता हूं कि ये स्थिति जल्द सही हो जाएगी। ऐसी नौबत आई इससे दुखी भी हूं।' अब सचिन पायलट की मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से खींचतान लगातार बढ़ती ही जा रही है। पिछले साल बगावत के बाद हुई सुलह की वजह से पायलट 18 विधायकों के साथ वापस लौटे थे। तब उनसे किए गए वादे अब भी पूरे नहीं हुए हैं।
बताया जाता है कि उनके समर्थक विधायकों को भी तोड़ने की कवायद जारी है। ऐसे हालात में अब सचिन पायलट अगला कदम क्या उठाते हैं, इस पर सबकी निगाहें हैं। पायलट के नजदीकी लोगों ने उनके भाजपा में जाने की किसी भी संभावना से पूरी तरह इनकार किया है। पायलट ने बगावत के वक्त भी भाजपा में शामिल होने की संभावना को खारिज किया था। मौजूदा राजनीतिक हालात को देखते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत किसी विधायक को नाराज करने की हालत में नहीं हैं। मंत्रिमंडल विस्तार होने पर वंचित रहने वाले विधायकों के नाराज होने का खतरा बरकरार है। ज्यादातर विधायक मंत्री बनना चाहते हैं और 9 से ज्यादा सीट खाली नहीं है। कांग्रेस में असंतोष और आपसी खींचतान को कंट्रोल करने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अगले महीने मंत्रिमंडल विस्तार का दांव चल सकते हैं। इसके तहत सचिन पायलट खेमे के 3 से 4 विधायकों को मंत्री बनाकर कोल्ड वॉर पर कुछ समय के लिए विराम लगाया जा सकता है।
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